परिवार नियोजन भत्ता बंद करने पर मोदी सरकार फंसी, कैट ने जारी किया नोटिस
सातवें वेतन आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि अब जनसंख्या नियंत्रण के लिए अलग से परिवार नियोजन भत्ता दिये जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि छोटे परिवार के प्रति जागरुकता बढ़ गई है।
नई दिल्ली, माला दीक्षित। जनसंख्या नियंत्रण के लिए परिवार नियोजन मुहिम में शामिल होने वाले अपने कर्मचारियों का भत्ता रोकने पर सरकार फंस गई है। केन्द्रीय प्रशासनिक ट्रिब्युनल (कैट) ने केन्द्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कैट ने ये नोटिस नसबंदी करा कर भत्ता ले रहे दिल्ली पुलिस के सिपाही बाबूलाल मिठरवाल की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई के बाद जारी किया। इसके अलावा कैट ने मामले में पक्षकार बनाई गई दिल्ली पुलिस से भी जवाब मांगा है।
सुनवाई के दौरान कैट ने मौखिक टिप्पणी में सरकार और दिल्ली पुलिस के वकील से सीधा सवाल किया कि जब ये (याचिकाकर्ता सिपाही) नसबंदी करा चुका है तो फिर सरकार उसका भत्ता कैसे बंद कर सकती है। सुनवाई कर रही पीठ के अध्यक्ष केएन श्रीवास्तव ने कहा कि वैसे तो वह इस मामले को आज ही निपटाने के इच्छुक थे, लेकिन फिर भी वे नोटिस जारी कर रहे हैं। सरकार इस पर ध्यान दे। पीठ ने सरकार से याचिका पर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। 21 मई को मामले की फिर सुनवाई होगी।
नोटिस जारी होने से पहले सिपाही के वकील ज्ञानंत सिंह ने कहा कि भारत सरकार के 1979 के आदेश में दो या तीन बच्चों के बाद नसबंदी कराने वाले कर्मचारियों को विशेष प्रोत्साहन देते हुए परिवार नियोजन भत्ता दिये जाने की घोषणा की गई थी। उस आदेश के मुताबिक, नसबंदी कराने वाले कर्मचारी को पूरी नौकरी के कार्यकाल में परिवार नियोजन भत्ता मिलना था। 2011 से बाबूलाल को इसी प्रोत्साहन योजना के तहत भत्ता मिलने लगा जो कि गत जून माह तक मिला। लेकिन जुलाई में सरकार ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें स्वीकार करते हुए परिवार नियोजन भत्ता बंद कर दिया। सातवें वेतन आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि अब जनसंख्या नियंत्रण के लिए अलग से परिवार नियोजन भत्ता दिये जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि छोटे परिवार के प्रति जागरुकता बढ़ गई है।
मुवक्किल के वकील ने कहा कि भत्ता बंद करना उसके जीवन के मौलिक अधिकार का हनन है। कैट ने सिंह की दलीलें सुनने के बाद सरकार और दिल्ली पुलिस को याचिका का जवाब देने के लिए नोटिस जारी किये।