Chandrayaan-2: इसरो ने रचा इतिहास, ऑर्बिटर से सफलतापूर्वक अलग हुआ लैंडर 'विक्रम'
Moon Mission of ISRO इसरो के वैज्ञानिकों ने सोमवार को दोपहर 01 बजकर 15 मिनट पर चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के ऑर्बिटर से लैंडर विक्रम को सफलतापूर्वक अलग करा दिया।
By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Mon, 02 Sep 2019 03:53 PM (IST)
नई दिल्ली, एजेंसी। इसरो (ISRO) के वैज्ञानिकों ने सोमवार यानी दो सितंबर को चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के ऑर्बिटर से लैंडर 'विक्रम' (Lander Vikram) को सफलतापूर्वक अलग करा दिया। इसरो के मुताबिक, आर्बिटर से लैंडर 'विक्रम' को अलग कराने की प्रक्रिया दोपहर 12.45 बजे शुरू की गई। दोपहर 01 बजकर 15 मिनट पर लैंडर 'विक्रम' आर्बिटर को छोड़कर अलग हो गया। अब निर्धारित कार्यक्रम के तहत लैंडर 'विक्रम' सात सितंबर को तड़के 1.55 बजे चंद्रमा की सतह पर लैंड कर जाएगा।
ISRO: The Vikram Lander successfully separated from #Chandrayaan2 Orbiter at 1:15 pm today (September 2, 2019). The Vikram Lander is currently located in an orbit of 119 km x 127 km. The Chandrayaan 2 Orbiter continues to orbit the moon in its existing orbit. pic.twitter.com/YVnerza1wC
— ANI (@ANI) September 2, 2019
दो ऑर्बिटल चेंज से गुजरेगा लैंडर 'विक्रम'
इसरो ने ट्वीट करके बताया कि लैंडर 'विक्रम' इस वक्त चंद्रमा की 119km x 127km कक्षा में चक्कर लगा रहा है। वहीं चंद्रयान-2 का आर्बिटर उसी कक्षा में चक्कर लगा रहा है, जिसमें वह रविवार को दाखिल हुआ था। वैज्ञानिकों की मानें तो चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग के पहले लैंडर 'विक्रम' के साथ दो कक्षीय बदलाव किए जाएंगे। लैंडर 'विक्रम' 04 सितंबर को चांद के सबसे नजदीकी कक्षा में 35x97 होगा। कल कक्षा में किया था बदलाव
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation, ISRO) के वैज्ञानिकों ने रविवार को शाम छह बजकर 21 मिनट पर सफलतापूर्वक चंद्रयान की कक्षा में बदलाव किया था। चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद से यान के पथ में यह पांचवां व अंतिम बदलाव था। कक्षा बदलने में 52 सेकंड का वक्त लगा। अब चंद्रयान चांद से महज 109 किलोमीटर दूर रह गया है।
इसरो ने ट्वीट करके बताया कि लैंडर 'विक्रम' इस वक्त चंद्रमा की 119km x 127km कक्षा में चक्कर लगा रहा है। वहीं चंद्रयान-2 का आर्बिटर उसी कक्षा में चक्कर लगा रहा है, जिसमें वह रविवार को दाखिल हुआ था। वैज्ञानिकों की मानें तो चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग के पहले लैंडर 'विक्रम' के साथ दो कक्षीय बदलाव किए जाएंगे। लैंडर 'विक्रम' 04 सितंबर को चांद के सबसे नजदीकी कक्षा में 35x97 होगा। कल कक्षा में किया था बदलाव
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation, ISRO) के वैज्ञानिकों ने रविवार को शाम छह बजकर 21 मिनट पर सफलतापूर्वक चंद्रयान की कक्षा में बदलाव किया था। चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद से यान के पथ में यह पांचवां व अंतिम बदलाव था। कक्षा बदलने में 52 सेकंड का वक्त लगा। अब चंद्रयान चांद से महज 109 किलोमीटर दूर रह गया है।
काफी तेज था सेपरेशन
इसरो वैज्ञानिकों की मानें तो दो सितंबर को होने वाला सेपरेशन काफी तेज था। यह उतनी ही गति से अलग हुआ जितनी गति से कोई सेटेलाइट लॉन्चर रॉकेट से अलग होता है। इंटिग्रेटेड स्पेसक्राफ्ट को अलग-अलग करने के लिए इसरो के वैज्ञानिकों ने धरती से कमांड दिया जिसके बाद ऑनबोर्ड सिस्टम इसे एग्जिक्यूट किया। ऑर्बिटर करीब सालभर चांद की परिक्रमा करते हुए विभिन्न प्रयोगों को अंजाम देगा।
इसरो वैज्ञानिकों की मानें तो दो सितंबर को होने वाला सेपरेशन काफी तेज था। यह उतनी ही गति से अलग हुआ जितनी गति से कोई सेटेलाइट लॉन्चर रॉकेट से अलग होता है। इंटिग्रेटेड स्पेसक्राफ्ट को अलग-अलग करने के लिए इसरो के वैज्ञानिकों ने धरती से कमांड दिया जिसके बाद ऑनबोर्ड सिस्टम इसे एग्जिक्यूट किया। ऑर्बिटर करीब सालभर चांद की परिक्रमा करते हुए विभिन्न प्रयोगों को अंजाम देगा।
वैज्ञानिकों के सामने दोहरी चुनौती
अब लैंडर विक्रम ने अपने भीतर मौजूद प्रज्ञान रोवर को लेकर चांद की ओर बढ़ना शुरू कर दिया है। अब वैज्ञानिकों को एक साथ आर्बिटर और लैंडर विक्रम की सटीकता के लिए काम करना पड़ेगा। चार सितंबर के बाद अगले तीन दिनों तक लैंडर विक्रम चांद के सबसे नजदीकी कक्षा 35x97 में चक्कर लगाता रहेगा। इस दौरान विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर की जांच की जाती रहेगी। इस तरह 07 सितंबर को तड़के 1:55 बजे लैंडर विक्रम चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंड करेगा। बेहद चुनौतीपूर्ण होगी सॉफ्ट लैंडिंग
इसरो वैज्ञानिकों की मानें तो चांद पर चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग बेहद चुनौतीपूर्ण होगी। सात सितंबर को रोवर प्रज्ञान के साथ लैंडर चांद पर कदम रखेगा। लैंडर विक्रम दो गड्ढों, मंजिनस सी और सिमपेलियस एन के बीच वाले मैदानी हिस्से में लगभग 70° दक्षिणी अक्षांश पर सफलतापूर्वक लैंडिंग करेगा। चांद पर उतरने के बाद रोवर भी लैंडर से अलग हो जाएगा। लैंडर के साथ रोवर प्रज्ञान की लैंडिंग इसरो के लिए इस कारण से भी बड़ी चुनौती है क्योंकि इसरो ने अब तक ऐसा प्रयोग नहीं किया है। 500 मीटर की दूरी तय करेगा प्रज्ञान
रोवर प्रज्ञान 14 दिनों में कुल 500 मीटर की दूरी तय करेगा। इसके बाद यह निष्क्रिय हो जाएगा। प्रज्ञान से पहले चांद पर सोवियत यूनियन, अमेरिका, चीन आदि ने पांच रोवर भेजे हैं। दूसरी ओर ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर उसकी परिक्रमा करता रहेगा। ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में एक साल तक सक्रिय रहेगा। चंद्रमा की सतह पर लैंडिंगे वक्त लैंडर विक्रम की रफ्तार दो मीटर प्रति सेकंड होगी। इस दौरान वैज्ञानिक इसकी गति कम करते जाएंगे। इस पूरी प्रक्रिया के 15 मिनट बेहद तनावपूर्ण होंगे। लैंडिंग के दो घंटे बाद लैंडर से निकलेगा प्रज्ञान
लैंडिंग के करीब दो घंटे के बाद लैंडर विक्रम से छह पहियों वाला रोवर प्रज्ञान चांद की सतह पर कदम रखेगा। सात सितंबर को सुबह 5.05 बजे रोवर प्रज्ञान का सोलर पैनल खुलेगा जिसके जरिए उसे काम करने के ऊर्जा मिलेगी। बता दें कि यह भारत का दूसरा चंद्र अभियान है। साल 2008 में भारत ने आर्बिटर मिशन चंद्रयान-1 भेजा था। यान ने करीब 10 महीने चांद की परिक्रमा करते हुए प्रयोगों को अंजाम दिया था। चांद पर पानी की खोज का श्रेय भारत के इसी अभियान को जाता है। अब मिशन चंद्रयान-2 के जरिये इसरो चंद्रमा पर खनिज व अन्य रासायनिक घटकों की उपलब्धता का पता लगाएगा। यह भी पढ़ें- लैंडिग पर NASA की रहेगी पैनी नजर, चांद पर पानी मिलने की संभावनायह भी पढ़ें- सात सितंबर को फाइनल लैंडिंग, पीएम मोदी के साथ इन्हें मिला इवेंट देखने का मौका
अब लैंडर विक्रम ने अपने भीतर मौजूद प्रज्ञान रोवर को लेकर चांद की ओर बढ़ना शुरू कर दिया है। अब वैज्ञानिकों को एक साथ आर्बिटर और लैंडर विक्रम की सटीकता के लिए काम करना पड़ेगा। चार सितंबर के बाद अगले तीन दिनों तक लैंडर विक्रम चांद के सबसे नजदीकी कक्षा 35x97 में चक्कर लगाता रहेगा। इस दौरान विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर की जांच की जाती रहेगी। इस तरह 07 सितंबर को तड़के 1:55 बजे लैंडर विक्रम चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंड करेगा। बेहद चुनौतीपूर्ण होगी सॉफ्ट लैंडिंग
इसरो वैज्ञानिकों की मानें तो चांद पर चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग बेहद चुनौतीपूर्ण होगी। सात सितंबर को रोवर प्रज्ञान के साथ लैंडर चांद पर कदम रखेगा। लैंडर विक्रम दो गड्ढों, मंजिनस सी और सिमपेलियस एन के बीच वाले मैदानी हिस्से में लगभग 70° दक्षिणी अक्षांश पर सफलतापूर्वक लैंडिंग करेगा। चांद पर उतरने के बाद रोवर भी लैंडर से अलग हो जाएगा। लैंडर के साथ रोवर प्रज्ञान की लैंडिंग इसरो के लिए इस कारण से भी बड़ी चुनौती है क्योंकि इसरो ने अब तक ऐसा प्रयोग नहीं किया है। 500 मीटर की दूरी तय करेगा प्रज्ञान
रोवर प्रज्ञान 14 दिनों में कुल 500 मीटर की दूरी तय करेगा। इसके बाद यह निष्क्रिय हो जाएगा। प्रज्ञान से पहले चांद पर सोवियत यूनियन, अमेरिका, चीन आदि ने पांच रोवर भेजे हैं। दूसरी ओर ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर उसकी परिक्रमा करता रहेगा। ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में एक साल तक सक्रिय रहेगा। चंद्रमा की सतह पर लैंडिंगे वक्त लैंडर विक्रम की रफ्तार दो मीटर प्रति सेकंड होगी। इस दौरान वैज्ञानिक इसकी गति कम करते जाएंगे। इस पूरी प्रक्रिया के 15 मिनट बेहद तनावपूर्ण होंगे। लैंडिंग के दो घंटे बाद लैंडर से निकलेगा प्रज्ञान
लैंडिंग के करीब दो घंटे के बाद लैंडर विक्रम से छह पहियों वाला रोवर प्रज्ञान चांद की सतह पर कदम रखेगा। सात सितंबर को सुबह 5.05 बजे रोवर प्रज्ञान का सोलर पैनल खुलेगा जिसके जरिए उसे काम करने के ऊर्जा मिलेगी। बता दें कि यह भारत का दूसरा चंद्र अभियान है। साल 2008 में भारत ने आर्बिटर मिशन चंद्रयान-1 भेजा था। यान ने करीब 10 महीने चांद की परिक्रमा करते हुए प्रयोगों को अंजाम दिया था। चांद पर पानी की खोज का श्रेय भारत के इसी अभियान को जाता है। अब मिशन चंद्रयान-2 के जरिये इसरो चंद्रमा पर खनिज व अन्य रासायनिक घटकों की उपलब्धता का पता लगाएगा। यह भी पढ़ें- लैंडिग पर NASA की रहेगी पैनी नजर, चांद पर पानी मिलने की संभावनायह भी पढ़ें- सात सितंबर को फाइनल लैंडिंग, पीएम मोदी के साथ इन्हें मिला इवेंट देखने का मौका