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Chandrayaan 2: चांद पर उतरने के आधे से ज्‍यादा मिशन रहे हैं विफल, Vikram को लेकर उम्‍मीद

चांद पर उतरने की कोशिशों के तहत भेजे गए मिशन में से ज्‍यादातर मिशन विफल रहे हैं। जहां तक भारत की बात है तो हमें अब भी इसके सफल होने की उम्‍मीद है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Mon, 09 Sep 2019 12:03 AM (IST)
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Chandrayaan 2: चांद पर उतरने के आधे से ज्‍यादा मिशन रहे हैं विफल, Vikram को लेकर उम्‍मीद
नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। भारत के मून मिशन Chandrayaan 2 में आई रुकावट की वजह भले ही कुछ भी रही हो लेकिन सच्‍चाई ये है कि इसरो के वैज्ञानिकों ने जो किया वह अतुलनीय प्रयास है। इसरो का लोहा पूरी दुनिया ने माना है। इसरो की सफलता दर दुनिया की दूसरी अंतरिक्ष एजेंसियों से कहीं बेहतर है। इतना ही नहीं दुनिया ने माना है कि भारत के इस मून मिशन ने जो राह दिखाई है उसको विफल तो कहीं से भी नहीं कहा जा सकता है। वहीं वैज्ञानिकों ने माना है कि विक्रम से संपर्क टूट जाने के बाद अब भी उम्‍मीद बाकी है। इस दिशा में बड़ी कामयाबी मिल भी गई है। इसरो को विक्रम लैंडर (ISRO- Lander Vikram) की लोकेशन का पता चल गया है। हालांकि उससे अभी संपर्क नहीं साधा जा सका है। 

वैज्ञानिकों की मानें तो विक्रम से संपर्क साधने के लिए दो सप्‍ताह काफी अहम होंगे। मुमकिन है कि इस दौरान विक्रम की कोई जानकारी मिल जाए। यदि ऐसा हुआ तो यह उन लोगों के मुंह पर जबरदस्‍त तमाचा होगा जो भारत के मून मिशन की हंसी उड़ा रहे हैं। पूरी दुनिया के वैज्ञानिक इसको लेकर उम्‍मीद से हैं।

भारत का प्रयास 
आपको यहां पर बता दें कि भारत ने जिस मिशन की शुरुआत अपने दम पर की है वह बेहद मुश्किल मिशन था। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि चंद्रमा की सतह पर उतरने के 50 फीसद से ज्‍यादा प्रयास अब तक विफल रहे हैं। यह जानकारी नासा की तरफ से सामने आई है। बीते 60 वर्षों में चांद पर लैंडिंग के कई प्रयास  किए गए हैं। नासा के रिकॉर्ड के मुताबिक 1958 से अब तक कुल 109 मून मिशन किए गए हैं। इनमें से 61 सफल रहे। हालांकि इसमें से केवल 46 मिशन चांद पर लैंडिंग से जुड़े थे, जिसमें से 21 सफल रहे जबकि दो को आंशिक सफलता ही मिली। इसमें रोवर की लैंडिंग और सैंपल रिटर्न भी शामिल हैं। इस तरह के मिशन वो होते हैं जिनमें नमूनों को एकत्रित करना और धरती पर वापस भेजना होता  है।

अमेरिका और रूस में प्रतियोगिता 
इस तरह के मिशन में पहली बार अमेरिका के अपोलो 12 ने बाजी मारी थी। यह नवंबर 1969 में शुरू किया गया था। पहले मून मिशन की योजना अमेरिका ने 17 अगस्त,1958 में बनाई थी। लेकिन उस दौरान पायोनियर-0 का लॉन्‍च असफल रहा था। इसके बाद 1958 से 1979 तक अमेरिका और रूस ने 90 बार मून मिशन को अंजाम दिया था। आपको यहां पर बता दें कि रूस की अंतरिक्ष में बादशाहत रही है। इसके बाद अमेरिका ने रूस की बराबरी करने और फिर उससे आगे निकलने की योजना पर काम किया। इनके बाद जापान यूरोपीय संघ, चीन, भारत और इजराइल ने भी इस क्षेत्र में कदम रखा। इन देशों के मून मिशन में- ऑर्बिटर, लैंडर और फ्लाईबाय शामिल थे। आपको यहां पर ये भी बता दें कि फ्लाईबाय का अर्थ चंद्रमा की कक्षा में रहना, चंद्रमा की सतह पर उतरना और चंद्रमा के पास से गुजरना होता है।

सफलता की परिभाषा गढ़ने वाला पहला मून मिशन  
अगस्त 1958 से नवंबर 1959 के दौरान अमेरिका और तत्‍कालीन यूएसएसआर ने 14 अभियान शुरू किए थे। इनमें से सिर्फ 3- लूना-1, लूना 2 और लूना 3 सफल हुए। ये  सभी यूएसएसआर ने शुरू किए थे। 4 जनवरी 1959 में सोवियत संघ के लूना-1 को इस दिशा में पहली बार सफलता हासिल हुई थी। उसे भी यह सफलता छठे मून मिशन में मिली थी। इससे पहले रूस के पांच अभियान असफल हो चुके थे। जुलाई 1964 में अमेरिका ने रेंजर 7 मिशन शुरू किया, जिसने पहली बार चंद्रमा की नजदीक से फोटो ली। रूस द्वारा जनवरी 1966 में शुरू किए गए लूना 9 मिशन ने पहली बार चंद्रमा की सतह को छुआ और इसके साथ ही पहली बार चंद्रमा की सतह से तस्वीर मिलीं। पांच महीने बाद मई 1966 में अमेरिका ने सफलतापूर्वक ऐसे ही एक मिशन सर्वेयर-1 को अंजाम दिया। चांद पर भेजे गए अभियान में 1969 मील का पत्‍थर साबित हुआ था। इस वर्ष अमेरिका ने अपोलो 11 के जरिए चांद पर मानव मिशन पूरा किया था। इस मिशन में पहली बार कोई इंसान चांद की धरती पर उतरा था। तीन सदस्यों वाले इस अभियान दल की अगुवाई नील आर्मस्ट्रांग ने की।

एक नजर यहां भी  

मिशन प्रक्षेपण तिथि  परिणाम  
सर्वेयर-4 14 जुलाई 1967 लैंडिंग से पहले रॉकेट में विस्फोट से टूटा संपर्क
बेरेशीट  22 फरवरी 2019 चंद्रमा की सतह से 10 किलोमीटर की दूरी पर दुर्घटनाग्रस्त
सर्वेयर-2  20 सितंबर 1966 चांद के ‘कॉपरनिकस क्रेटर’ के पास जा गिरा 
 स्पुत्निक-25    4 जनवरी 1963 खराबी के चलते पृथ्वी की कक्षा से बाहर ही नहीं निकल पाया  
 लूना ई-6/3   : 3 फरवरी 1963  प्रक्षेपण के कुछ ही देर बाद संपर्क टूटा 
 लूना-4    2 अप्रैल 1963 8336 किमी. से चूका
 लूना ई-6/6  21 मार्च 1964 रॉकेट में आई दिक्‍कत, पृथ्वी की कक्षा में पहुंचने से पहले ही बंद पड़ा यान 
 कॉसमोस-60   12 मार्च 1965 पृथ्वी की कक्षा से बाहर नहीं निकला यान 
 लूना ई-60/8  10 अप्रैल 1965 उड़ान के तीसरे चरण में गैस आपूर्ति रुकने से इंजन ठप
 लूना-5   9 मई 1965  चांद के क्रेटर’ के पास गिरा
 लूना-6   8 जून 1965 1.6 लाख किलोमीटर की दूरी से उड़ गया यान
 लूना-7   4 अक्तूबर 1965 रेट्रो रॉकेट बंद पड़ा और गिर गया 
 लूना-8   3 दिसंबर 1965 सतह से जा टकराया यान
 लूना-18   2 सितंबर 1971 लैंडिंग के प्रयास में पहाड़ियों से टकराया
 Chandrayaan 2: तो क्‍या विक्रम के स्पिन हो जाने की वजह से हुआ ये सब कुछ!