मां धूमावती स्थापना दिवस: जानें- मां धूमावती की आराधना से क्या-क्या मिलता है फल
दतिया स्थित पीतांबरा पीठ की पहचान राजसत्ता वाद-विवाद और शत्रुओं का हनन करने वाली देवी पीतांबरा (बगलमुखी) व धूमावती की साधना के लिए सिद्ध स्थान के रूप में है।
By Vinay TiwariEdited By: Updated: Sat, 30 May 2020 07:04 PM (IST)
दतिया, जेएनएन। मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित पीतांबरा पीठ की ख्याति पूरे विश्व में है। देवी की दस महाविद्याओं में से दो-पीतांबरा(बगलामुखी) और धूमावती के तंत्र विधान से पूजे जाने वाले मंदिर और कहीं नहीं हैं। आज ही के दिन(तिथि के हिसाब से) यहां हुई थी धूमावती माता की स्थापना...
दतिया स्थित पीतांबरा पीठ की पहचान राजसत्ता, वाद-विवाद और शत्रुओं का हनन करने वाली देवी पीतांबरा (बगलमुखी) व धूमावती की साधना के लिए सिद्ध स्थान के रूप में है। दस महाविद्याओं में शुमार इन दो देवियों के मंदिर एक ही परिसर में स्थित हैं, जिनकी स्थापना पूज्य स्वामी जी ने कराई थी।जप साधना और शाक्ततंत्र में रुचि रखने वाले साधकों के अतिरिक्त आमजन, नौकरशाही व राजशाही से जुड़ी देसी-विदेशी हस्तियां यहां हर दिन दर्शन के लिए पहुंचती हैं। भक्तों की मान्यता है कि शनिवार का दिन धूमावती माता का होता है, इसलिए इस दिन यहां मेले जैसा माहौल होता है।
मान गए स्वामी जी श्मशान को दतिया पीठ के रूप में परिवर्तित करने वाले स्वामी जी 9 जुलाई 1929 को युवावस्था में दतिया पधारे थे और श्मशान में बने शिव मंदिर को साधना स्थली के रूप में चुना। 1933 में उन्होंने देवी पीतांबरा की स्थापना कराई।
मंदिर न्यास मंडल के वरिष्ठ कार्यकर्ता व सेवक के. पी. अंगल बताते हैं कि 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध में भक्तों व राजनेताओं के आग्रह पर स्वामी जी ने गोपनीय ढंग से राष्ट्ररक्षा यज्ञ कराया था, जिसमें चीन के खिलाफ शत्रु विजय हेतु 75 विज्ञ साधकों ने बगलामुखी और धूमावती माता का आह्वान किया था।
चमत्कार की बात है कि जिस समय यज्ञ की अंतिम आहुति पूरी हो रही थी, उसी समय चीन की सेना ने वापसी की घोषणा की थी। हालांकि मुंबई से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'इलस्टे्रटेड वीकली' को कहीं से यह खबर पता चल गई थी और इसे विशेष स्थान देकर प्रकाशित किया गया था। भक्त अक्सर इच्छा रखते थे कि यहां धूमावती माता का भी मंदिर हो तो स्वामी जी कहते थे कि धूमावती माता रौद्र रूप व विधवा वेश में हैं, उनकी साधना बहुत कठिन है। बस उन्हें मन से याद करो लेकिन भौतिक शरीर छोडऩे से ठीक एक साल पहले स्वामी जी ने भक्तों की बात मान ली और 13 जून 1978 ( ज्येष्ठ माह-शुक्ल पक्ष-अष्टमी) को यहां धूमावती माता की स्थापना कराई गई।
संयोग था या कोई रहस्यदतिया वाले स्वामी जी कौन थे? यह किसी को कुछ नहीं मालूम। कहा जाता है कि उनकी शिक्षा बनारस में हुई थी और किसी गुजराती संन्यासी से उन्होंने तंत्र दीक्षा ली थी। पत्राचार में वे अपना नाम स्वामी अथवा अमृतानंद लिखते थे। धूमावती माता की स्थापना के ठीक एक साल बाद स्थापना वाले दिन ही उन्होंने भौतिक शरीर छोड़ा था, इसलिए इसी तिथि पर स्वामी जी की पुण्यतिथि होती है।
विशेष अर्चना होती है यहां यह दुनिया की इकलौती पीठ है, जहां पूजन का विधान तांत्रिक व षोडशोपचार विधि से होता है। यह विधि स्वामी जी ने ही शुरू कराई थी। वे जप साधना के समर्थक थे। इधर कुछ सालों में शनिवार के दिन मंदिर में बहुत भीड़ होती है। जबकि ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि धूमावती माता का दिन शनिवार है।यह भी संयोग रहा कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी व महामहिम रामनाथ कोविंद अलग-अलग अवसर पर शनिवार को ही दर्शन करने आए थे। मंदिर प्रतिदिन दोनों समय दर्शनों के लिए खुलता हैं। धूमावती माता विधवा रूप में हैं इसलिए सौभाग्यवती महिलाओं का दर्शन निषेध माना जाता है।
खास बात यह है कि धूमावती माता के लिए प्रसाद के तौर पर सामान्य से इतर नमकीन भोजन अर्पित किए जाते हैं। लॉकडाउन के चलते इस समय मंदिर बंद है। (महेश दुबे, प्रबंधक-पीतांबरा पीठ दतिया-मध्य प्रदेश)