रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में बढ़ते कदम, चीन से सबक लेने की जरूरत
आरबीआइ प्रयास कर रहा है कि रुपये में बाह्य वाणिज्यिक उधार को सक्षम बनाया जाए विशेषकर मसाला बांड के मामले में। एशियाई समाधान संघ विभिन्न देशों के बीच लेन-देन संबंधी विवादों को निपटान के लिए घरेलू मुद्राओं को उपयोग करने की एक योजना भी तलाश रहा है।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Fri, 11 Nov 2022 04:49 PM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। यह अच्छी बात है कि भारत अपनी मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाने का प्रयास कर रहा है, लेकिन इसके लिए केवल रुपये में व्यापार समझौता करना ही पर्याप्त नहीं है। रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को और विस्तृत होने की आवश्यकता है। डालर की मजबूती के पीछे अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर विश्व समुदाय का भरोसा है। भारत एक पूंजी की कमी वाला देश है और इसलिए इसके विकास के लिए विदेश पूंजी की जरूरत है।
चीन भी युआन के अंतरराष्ट्रीयकरण की लगातार कोशिश कर रहा है, परंतु अब तक इसमें उसे पूरी सफलता नहीं मिल सकी है, लेकिन चीन की असफलता से भारत को घबराने की नहीं, बल्कि सबक लेने की आवश्यकता है। चीन युआन के अंतरराष्ट्रीयकरण में 2015 से 2018 तक कुछ सफल भी दिखता है, लेकिन धीमी आर्थिक वृद्धि दर और युआन को कृत्रित तरीके से घटाने-बढ़ाने से वह इसमें अब तक असफल रहा है। ऐसे में भारत को इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तीव्र आर्थिक विकास दर की जरूरत है। रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए एक कुशल स्वैप बाजार और एक मजबूत विदेशी मुद्रा बाजार की भी आवश्यकता होगी।
समग्र आर्थिक बुनियादी तत्वों में और सुधार की जरूरत है। वित्तीय क्षेत्र की सेहत, इसके बाद रेटिंग में ऊपर की ओर बढ़ना भी रुपये में विश्वास को मजबूत करेगा। आरबीआइ ने जुलाई 2022 में ही रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार की सुविधा के लिए एक तंत्र पेश किया था। इसके साथ ही आरबीआइ प्रयास कर रहा है कि रुपये में बाह्य वाणिज्यिक उधार को सक्षम बनाया जाए, विशेषकर मसाला बांड के मामले में। एशियाई समाधान संघ विभिन्न देशों के बीच लेन-देन संबंधी विवादों को निपटान के लिए घरेलू मुद्राओं को उपयोग करने की एक योजना भी तलाश रहा है।