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MP News: बंजर जमीन को उपजाऊ बनाया, पानी संजोया और लिखी अपनी तकदीर

मरामाधौ पंचायत में कुल 646 परिवार हैं और 2256 लोगों की आबादी है। सरपंच अजय सोलंकी का कहना है कि गांव में सालों से चला आ रहा जलसंकट डेढ़ से दो साल में खत्म होना कोई चमत्कार नहीं बल्कि ग्रामीणों के सामूहिक प्रयास का नतीजा है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Updated: Sat, 17 Jul 2021 05:53 PM (IST)
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सागर जिले के आदिवासी गांव मरामाधौ के ग्रामीण
संजय पांडेय, सागर। मनुष्य यदि चाह ले तो आसमान में भी सुराख कर दे, पत्थर को सोना बना दे। मध्य प्रदेश के सागर जिले के आदिवासी गांव मरामाधौ के ग्रामीणों ने अपने श्रम से यह चरितार्थ भी किया। जिस गांव में बूंद-बूंद पानी के लिए लोग मोहताज हुआ करते थे, पथरीली बंजर जमीन होने से खेती का कोई साधन नहीं था। दूसरे गांवों में मजदूरी करना ग्रामीणों की मजबूरी थी। आज उसी गांव में भरपूर पानी है, खेती के लिए हर परिवार के पास पर्याप्त जमीन है और अब मजदूरी उनकी मजबूरी नहीं है। यह सब ग्रामीणों की एकजुटता और सामूहिक श्रम से संभव हुआ।

पहले संजोया बारिश का पानी

गांव के लोगों ने पहले बारिश का पानी संजोकर किल्लत दूर की। फिर अपनी बंजर जमीन को उपजाऊ बनाया। करीब दो साल की इस मेहनत को देखकर प्रशासन भी आगे आया और गांव की सौ एकड़ सरकारी जमीन खेती योग्य बनाकर ग्रामीणों को सौंप दी। अब ग्रामीण अपने खेतों में फसल ले रहे हैं।

यह चमत्कार नहीं सामूहिक मेहनत है

मरामाधौ पंचायत में कुल 646 परिवार हैं और 2,256 लोगों की आबादी है। सरपंच अजय सोलंकी का कहना है कि गांव में सालों से चला आ रहा जलसंकट डेढ़ से दो साल में खत्म होना कोई चमत्कार नहीं बल्कि ग्रामीणों के सामूहिक प्रयास का नतीजा है। लोगों ने शासन की योजनाओं का लाभ उठाया। तालाब, कुआं, चेकडैम सहित जल संग्रहण के करीब 173 विभिन्न स्रोत दो साल में तैयार किए। इनमें से मरामाधौ गांव में ही 60 से अधिक जलस्रोत तैयार किए गए हैं। जल संरक्षण के साथ ही गांव का भूजल स्तर भी तेजी से बढ़ा है।

इसी तरह ग्रामीणों ने मिलकर एक दूसरे के बंजर खेतों को खेती के लिए तैयार किया। इस काम में सभी ग्रामीण मजदूरी के बाद बचे समय का उपयोग अपने अपने स्तर पर किया करते थे। इधर प्रशासन ने भी गांव में राजस्व की करीब सौ एकड़ बंजर भूमि मनरेगा के तहत ग्रामीणों से ही खेती योग्य बनवाई और 28 आदिवासी परिवारों को भूस्वामी बनाकर प्रति परिवार दो से तीन एकड़ जमीन खेती के लिए वितरित कर दी। साथ ही, खेती के लिए बीज भी उपलब्ध करवाया और किसान क्रेडिट कार्ड भी बनवाए गए। इससे अब खरीफ के लिए गांव के सभी परिवारों के पास जमीन उपलब्ध है।

ठेके पर भी जमीन लेकर कर रहे खेती

गांव की रामदुलैया आदिवासी का कहना है कि मेरे पास छह एकड़ जमीन है, लेकिन पानी न होने से खेती नहीं होती थी। हम मजूदरी पर आश्रित थे। मुख्यमंत्री सरोवर योजना के तहत गांव में पहले खेत पर तालाब खोदा गया। सात फीट गहरे तालाब में अब सालभर पानी रहता है। इस साल हमने अपनी खेती के अलावा करीब 15 एकड़ आसपास की जमीन भी ठेके पर लेकर बोआई की है। जरूरत पडऩे पर दूसरे को भी सिंचाई के लिए पानी दिया। बीते साल गांव के कई और परिवारों ने रबी की फसल ली थी और 50 से 60 क्विंटल तक गेहूं का उत्पादन किया था। अब खरीफ के लिए गांव के सभी परिवारों के पास जमीन उपलब्ध है। प्रशासन ने भूमिहीन परिवार को जमीन पट्टे पर दी है, बीज भी उपलब्ध करवाए हैं।

मरामाधौ गांव में जल संरक्षण के लगातार प्रयासों का नतीजा है कि आज वहां सिंचाई के लिए भरपूर पानी है। वर्ष 2019-20 के लिए पंचायत को जल संरक्षण का पुरस्कार दिया गया। गांव में सौ एकड़ जमीन को खेती योग्य बनाया गया है। कुछ तालाबों मेें सालभर पानी रहता है, वहां मछली पालन कराया जाएगा।

डा. इच्छित गढ़पाले, जिपं सीईओ, सागर