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राजनीति में दूरदृष्टि के लिए जाने जाते थे मुफ्ती

जम्मू-कश्मीर के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश की कमान संभालने वाले पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद का दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। उन्हें सीने में दर्द की शिकायत के बाद आईसीयू में भर्ती कराया गया था और वो वेंटिलेटर पर थे।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Updated: Thu, 07 Jan 2016 09:03 AM (IST)
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नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश की कमान संभालने वाले पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद का दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। उन्हें सीने में दर्द की शिकायत के बाद आईसीयू में भर्ती कराया गया था और वो वेंटिलेटर पर थे।


मुफ्ती मोहम्मद सईद का जीवन

देश के गृहमंत्री रह चुके मुफ्ती मोहम्मद सईद का जन्म 12 जनवरी 1936 को जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के बिजबेहरा गांव में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद सईद ने श्रीनगर के एस पी कॉलेज और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से कानून और अरब इतिहास की पढ़ाई की।

राजनीति की शुरूआत

सईद ने 1962 में अपने गृहनगर से डीएनसी के नेतृत्व में चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत की और 1967 में फिर एक बार यहां से जीतकर राजनीतिक परिवक्वता का परिचय दिया।
सईद 1972 में पहली बार कांग्रेस की तरफ से विधान परिषद के नेता और कैबिनेट मंत्री बने। इसके बाद 1975 में कांग्रेस ने उन्हें विधायक दल का नेता और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया लेकिन वह लगातार अपने दो चुनाव हार गए।
1986 में केंद्र की सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार में सईद को पर्यटन मंत्री बनाया गया इसके एक साल बाद ही मेरठ में हुए दंगे और उस दंगे से निपटने के सरकार के तौर तरीके और उसकी कथित संलिप्पता से नाराज होकर सईद ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।
बोफोर्स कांड की वजह से 1989 में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ। विश्वनाथ प्रताप सिंह के राष्ट्रीय मोर्चे को भाजपा और वामदलों का समर्थन मिला और वो प्रधानमंत्री और मुफ्ती मुहम्मद सईद पहली बार देश के गृहमंत्री बने।

मुफ्ती के साथ जुड़ा ये विवाद

देश के पहले मुस्लिम गृह मंत्री की छवि को उस समय आघात लगा था जब वी पी सिंह की अगुवाई वाली उनकी सरकार ने उनकी तीन बेटियों में से एक रूबिया की रिहाई के बदले में 5 लोगों को छोड़ने की आतंकवादियों की मांग के आगे घुटने टेक दिए थे।
रूबिया की रिहाई के बदले में आतंकवादियों की रिहाई के संवेदनशील राज्य जम्मू कश्मीर की राजनीति में दूरगामी प्रभाव पड़े। दो दिसंबर 1989 को राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार के गठन के 5 दिन के बाद ही रूबिया का अपहरण कर लिया गया था।
इसके अलावा मुफ्ती के गृह मंत्री रहते हुए ही घाटी में आतंकवाद ने सिर उठाना शुरू किया और उसी समय 1990 में कश्मीर की वादियों से कश्मीरी पंडितों के विस्थापन का विस्थापन भी शुरू हुआ।

राजनीतिक दूरदृष्टि के लिए जाने जाते थे मुफ्ती

अपनी बेटी महबूबा मुफ्ती के साथ 1999 में खुद की राजनीतिक पार्टी ‘जम्मू कश्मीर पीपुल्स डेमोकेट्रिक फ्रंट का गठन करने से पूर्व सईद ने अपने राजनीतिक कैरियर का लंबा समय कांग्रेस में बिताया। साल 2002 में मुफ्ती कांग्रेस के गठबंधन के साथ मात्र 16 सीटें लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उस समय जम्मू कश्मीर कई मोर्चो पर समस्याओं का सामना कर रहा था।

संसद पर हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के संबंध बहुत हद तक खराब हो गए थे। जम्मू-कश्मीर में भी सेना ने काफी सख्ती से साथ आतंक विरोधी अभियान छेड़ रखा था और सीमा पर बहुत तनाव बढ़ गया था। मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभालने के बाद मुफ्ती ने लोगों की शांति और गरिमा की पुकार को सुना और लोगों के टूटे दिलों को जोड़ने, उनकी गरिमा को बहाल करने, उनके दिलों में एक नई उम्मीद जगाने और राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी के जरिए उन्हें अपनी नियती तय करने के लिए प्रोत्साहित करने की दिशा में कदम उठाया और मरहम लगाने का प्रयास किया।

मुफ्ती मोहम्मद सईद की चुनावी सफलता का अधिकतर श्रेय उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती को दिया जाता है जिन्होंने पार्टी के लिए कैडर को सक्रिय और संगठित करने का काम किया । पिछले साल के विधानसभा चुनाव में उनके मोलभाव के कौशल के चलते प्रदेश में त्रिशंकु विधानसभा अस्तित्व में आयी।

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