गुजारा भत्ता के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं मुस्लिम संगठन, अदालत ने महिलाओं के हक में सुनाया था फैसला
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के अधिकार के निर्णय के बाद अब मुस्लिम संगठन इस पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने पर विचार कर रहे हैं । संगठनों की आंतरिक बैठकों में विरोध का कानूनी रास्ता तलाशा जा रहा है। मुस्लिम संगठन फैसले के अध्ययन के बाद सोच- विचार कर अगला कदम उठाने के पक्ष में हैं।
सुप्रीम कोर्ट में डाली जा सकती है पुनर्विचार याचिका
भीड़ जुटाकर दबाव की राजनीति की जगह आंतरिक बैठकों में विरोध का कानूनी रास्ता तलाशा जा रहा है। जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएं डाली जा सकती हैं। कांग्रेस, सपा व द्रमुक जैसे विपक्षी दलों को भी साथ आने का आह्वान किया जा सकता है, जिससे देश में राजनीतिक हलचल तेज हो सकती है। मुस्लिम मामलों के जानकारों के अनुसार, मुस्लिम संगठनों का बदला रुख पहले से अलग इसलिए है, क्योंकि केंद्र में भाजपानीत राजग की सरकार है।एआईएमपीएलबी ने रविवार को दिल्ली में बुलाई बैठक
महमूद मदनी सोच समझकर कदम उठाने के पक्ष में
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के दूसरे गुट के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी इस मुद्दे पर सोच समझकर कदम उठाने के हक में हैं। उन्होंने कहा कि अभी कुछ तय नहीं हुआ है। जल्द ही जमीयत के कानूनी जानकारों की बैठक बुलाकर रणनीति तय की जाएगी। कुछ दिन पहले ही जमीयत मुख्यालय में संगठन की शीर्ष बैठक में उन्होंने सूर्य नमस्कार व सरस्वती वंदना को गैर इस्लामी बताते हुए मुस्लिम छात्रों और अभिभावकों से स्कूलों में विरोध का आह्वान किया था। इसी तरह, जमात-ए-इस्लामी हिंद जैसे बड़े संगठन भी इस मामले पर सोच विचार कर कदम उठाकर आगे बढ़ने के मूड में हैं।सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अध्ययन कर रहा है। इसके बाद ही इस पर बयान या टिप्पणी की जा सकेगी। वैसे भी पहले ही मुस्लिम कानून में तलाक देने के सवा तीन महीने तक महिला को गुजारा भत्ता देने का प्रविधान है। इसके बाद वह चाहे दूसरी शादी करे या कोई और काम करे। सभी धर्म का अपना नियम है। उसी नियम के तहत ऐसा किया जाता है।
-मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, इमाम ईदगाह ऐशबाग
सुप्रीम कोर्ट का फैसला महिलाओं के लिए हितकारी जरूर है, लेकिन सरकार को महिलाओं को रोजगार से जोड़ने की पहल भी करनी चाहिए। तलाकशुदा महिलाएं एक बार फिर उस पति के आगे हाथ फैलाएंगी, जो उन्हें पहले ही तलाक दे चुका है। ऐसे में सरकार को नौकरियों में और रोजगार के क्षेत्र में उनको आगे बढ़ाने की जरूरत है। तभी महिलाओं को सही मायने में न्याय मिल सकेगा।
-अजरा मोबिन, सामाजिक कार्यकर्ता
तीन तलाक पर कानून बनाने के लिए सबसे पहले वर्ष 2015 में हमने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा था। तीन तलाक कानून के बाद अब सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महिलाओं को अपना हक पाने में कारगर साबित बहोगा। मैं सुप्रीम कोर्ट का शुक्रिया अदा करती हूं। अब सरकार की जिम्मेदारी है कि इस कानून को सख्ती से लागू करे तभी महिलाओं को न्याय मिल सकेगा।
-शहनाज सिदरत, अध्यक्ष, बज्म-ए-ख्वातीन