Nagaland assembly elections: मोन में रहने वाले प्रवासी बोले- स्थानीय लोग मददगार, खुले दिल से करते हैं स्वागत
नागालैंड के मोन जिले में तीन दशकों से रह रहे शंभू प्रसाद जो मूल रूप से बिहार के हैं का कहना है कि नागालैंड के लोगों ने खुली बाहों से हमें स्वीकार किया है। कई प्रवासी अब मोन टाउन निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता हैं। (फाइल फोटो)
मोन (नागालैंड), एजेंसी। मूल रूप से बिहार के रहने वाले शंभू प्रसाद नागालैंड के मोन जिले में लगभग तीन दशकों से रह रहे हैं। वह चाहते हैं कि उनका बेटा भी पूर्वोत्तर के इस राज्य में जिंदगी बिताए। उनकी पत्नी बसंती देवी भी यही चाहती हैं की उनके तीन बच्चे मोन में अपनी रोजी रोटी कमाएं।
प्रसाद ने कहा, “हमने अपनी सारी जवानी यहीं बिताई है। कभी-कभी समस्याएं आती हैं। लेकिन क्या कोई ऐसी जगह है, जहां कोई समस्या नहीं है? हम एक ‘धारणा’ का खंडन करना चाहते हैं कि यहां ‘बाहरी लोगों’ का जीना मुश्किल है।”
खुली बाहों से यहां के लोगों ने किया स्वागत
असम के करीमगंज से दशकों पहले यहां आए 70 साल के आलम ने कहा कि वह और उनका परिवार कभी मोन के बाहर जिंदगी बिताने के बारे में सोच भी नहीं सकता है, जिसने खुली बाहों से हमें स्वीकार किया है।
रोगजार के अवसर कम हैं, लेकिन बदलेगी स्थिति
आलम, प्रसाद और ऐसे कई प्रवासी अब मोन टाउन निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता हैं। वे आगामी विधानसभा चुनावों का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। नागालैंड की 60 सदस्यीय विधानसभा में 27 फरवरी को मतदान होगा, जबकि मतगणना दो मार्च को होगी। आलम ने कहा कि मोन में प्रवासियों के लिए रोजगार के अवसर अभी भी कम हैं। उम्मीद है कि स्थिति में सुधार होगा क्योंकि यहां अधिक विकास कार्य किए जाएंगे।
बच्चों को यहीं नौकरी दिलाने की करेंगे कोशिश- शंभू प्रसाद
लगभग 30 साल पहले अपने बड़े भाई के साथ बिहार के दरभंगा से यहां आए शंभू प्रसाद ने कहा, "जो कोई भी सत्ता में आता है, हम आशा करते हैं कि हमारे बच्चों को नौकरी मिले और समग्र विकास हो।" प्रसाद ने आगे कहा, “हम बच्चों को यहां नौकरी दिलाने की कोशिश करेंगे। लेकिन, अगर उसे अपना खुद का व्यवसाय शुरू करना है, तो हम उसे बिहार में परिवार के पास वापस भेज सकते हैं। मगर, हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे हमारे साथ रहें।”
बाहरी लोगों को करते हैं स्वीकार
प्रसाद का मानना है कि इस पूर्वोत्तर राज्य में साक्षरता के स्तर बढ़ने की वजह से लोग बाहरी लोगों को स्वीकार कर लेते हैं। उन्होंने कहा कि यहां के लोगों ने हम जैसे प्रवासियों का स्वागत किया है और हमें उम्मीद है कि आने वाले समय में भी ऐसा ही रहेगा।
अब साल में एक-दो बार जाते हैं बिहार- बसंती
बसंती शादी के बाद अपने पति के साथ नागालैंड के इस पूर्वी सिरे पर रहने आ गई थीं। वह अब साल में एक या दो बार बिहार जाती हैं। बसंती ने अपनी छोटी सी किराना और सब्जी की दुकान पर रखे सामान को ठीक करते हुए कहा, “यात्रा थकाऊ है। एक-तरफ के सफर में तीन-चार दिन से अधिक का समय लगता है। उसने बताया कि उनका बड़ा बेटा कॉलेज के अंतिम वर्ष में है। दो अन्य बच्चे अभी स्कूल में हैं।”
एक बेटा निजी कॉलेज से जुड़ा है, दूसरा गया दुबई- आलम
1970 में मोन में रहने आए आलम ने एक दुकान में काम करना शुरू किया था। वह बताते हैं, "मेरा एक बेटा डॉक्टरेट की डिग्री हासिल कर चुका है और एक निजी कॉलेज से जुड़ा हुआ है। दूसरे को दुबई जाना पड़ा क्योंकि उसे यहां कोई नौकरी नहीं मिली।