National Education Day 2022: अकादमिक रूप से समृद्ध होने के साथ-साथ समाज के योग्य नागरिक बनना भी जरूरी
National Education Day 2022 केवल शिक्षित देश ही विकसित देश बनने की आकांक्षा रख सकता है। हमें विश्वस्तरीय उच्च शिक्षण संस्थान तैयार करने के साथ-साथ उनकी संख्या में वृद्धि करने की भी आवश्यकता है। आज भारतीय शिक्षा का यही उद्देश्य होना चाहिए।
प्रो. नीलिमा गुप्ता। भारत की मौजूदा उच्च शिक्षा प्रणाली से प्रति वर्ष लगभग 3.7 करोड़ विद्यार्थी डिग्री लेकर देश के सामाजिक-आर्थिक विकास से स्वयं को जोड़ने का संकल्प लेते हैं, लेकिन सवाल है कि क्या हमारे ये उपाधिधारक अकादमिक रूप से समृद्ध होने के साथ-साथ समाज के योग्य नागरिक बनने और समकालीन युग की चुनौतियों का सामना करने में भी सक्षम होते हैं? निश्चित रूप से हमारी शिक्षा-प्रणाली उस स्तर की होनी चाहिए जिससे राष्ट्र के साथ-साथ समाज का भी चौतरफा एवं समुचित विकास हो सके। शिक्षा का लक्ष्य अंततः एक ऐसे उन्मुक्त और आत्मविश्वास से भरे व्यक्ति का निर्माण करना होता है, जो सभी विपरीत परिस्थितियों एवं चुनौतियों का सामना सफलतापूर्वक कर सके। ऐसे में निःसंदेह किसी राष्ट्र की शिक्षा की गुणवत्ता ही उसके राष्ट्रीय विकास के स्तर का आईना है। भारत जैसे बहुभाषी राष्ट्र में उच्च-शिक्षा के विकास-विस्तार में हमारे विश्वविद्यालयों की अहम भूमिका है।
भारतीय उच्च शिक्षा-प्रणाली में केंद्रीय विश्वविद्यालय, राज्य विश्वविद्यालय, डीम्ड विश्वविद्यालय और निजी विश्वविद्यालय शामिल हैं। पिछले कुछ वर्षों में खासकर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विश्वविद्यालयों, विश्वविद्यालय स्तर के संस्थानों, कालेजों आदि की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। विश्वविद्यालयों की संख्या 1950 में 20 थी, जो अब 54 केंद्रीय, 455 राज्य, 126 डीम्ड और 421 निजी विश्वविद्यालयों के साथ लगभग 1000 को पार कर गई है।
भारत की उच्च शिक्षा-प्रणाली के पास वर्तमान में विकास, गुणवत्ता और समान पहुंच जैसे कई उद्देश्यों को प्राप्त करने का दबाव है। अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है, जहां सबसे ज्यादा सार्वजनिक वित्तपोषित उच्च शिक्षा-प्रणाली की संस्थाएं हैं। अनुमान लगया जा रहा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन के कारण अधिक भौगोलिक गतिशीलता, बढ़ती हुई स्पर्द्धाओं, अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण एवं नए कौशल की मांग के चलते भारतीय शिक्षा-प्रणाली अधिक आकर्षक बनेगी। तद्नुसार भारत में नामांकन की मांग भी दिन-ब-दिन बढ़ती जाएगी। शिक्षा ही सामाजिक न्याय तथा समानता हासिल करने का एकमात्र एवं अचूक साधन है।
भारतवर्ष एक युवा राष्ट्र है। यह महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय क्षमता निश्चित ही भारत को एक अभूतपूर्व बढ़त प्रदान करती है। 2030 तक दुनिया में हर चार स्नातकों में से एक भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली का उत्पाद होगा। नवीनतम ज्ञानात्मक कौशल के विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए इस उच्च जनसांख्यिकीय लाभांश क्षमता का दोहन करने की तत्काल आवश्यकता है। कारपोरेट क्षेत्र में ‘उद्यमिता’ पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है। अधिकांश छात्र ‘बेहतर नौकरियां और उच्च वेतनमान’ चाहते जरूर हैं, परंतु ‘उद्यमिता’ में शामिल अनिश्चितताओं के साथ संघर्ष करने के लिए वे तैयार नहीं हैं। शैक्षिक संस्थान उद्यमिता अनुकूल तंत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आज शैक्षिक संस्थान उद्यमियों के विकास में मुख्य कारक की भूमिका निभाते हुए पूरे देश के लिए अधिक रोजगार एवं धन का उत्पादन कराने में सक्षम हैं। अब हमारे पास बड़ी संख्या में कुशल शिक्षक और टेक्नोक्रेट उपलब्ध हैं। नोबल पुरस्कार के विजेता पाल क्रुगमैन के अनुसार ‘जापान अब एक महाशक्ति नहीं रह गया है, क्योंकि इसकी कामकाजी उम्र ढल गई है, और चीन का भी यही हाल है। ऐसी स्थिति में पूरे एशिया में भारत नेतृत्व कर सकता है, लेकिन तब जब वह सेवाप्रदाता क्षेत्रों के साथ-साथ अपने विनिर्माण क्षेत्र को भी विकसित करे।’ केवल शिक्षित देश ही विकसित देश बनने की आकांक्षा रख सकता है। ऐसे में हमें उच्च शिक्षण संस्थान के मामले में विश्वस्तरीय संस्थान तैयार करने के साथ-साथ उनकी संख्या में वृद्धि करने की भी आवश्यकता है।
नवोन्मेषी मानसिकतायुक्त उच्च शिक्षा ही हमारे समाज एवं समुदाय दोनों को आगे ले जाने वाली कुंजी है। इसके लिए व्यापक सार्वजनिक और निजी भागीदारी की आवश्यकता है। जैसे-जैसे उपाधि धारक छात्र व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन के एक नए मोड़ में प्रवेश करते हैं, उन्हें अपने सभी निर्णय स्वयं लेने होते हैं। छात्रों को एक गंभीर और प्रतिबद्ध टीम के खिलाड़ी की भांति अपनी टीम के साथ सकारात्मक भावना प्रदर्शित करनी चाहिए। उन्हें सपनों पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए, उनमें जोखिम लेने का साहस होना चाहिए और असफलता की स्थिति में हताश नहीं होना चाहिए। एक छात्र जो शिक्षित एवं उपाधि धारक है, उसे एक सभ्य समाज का सच्चा नागरिक होना भी आवश्यक है। आज भारतीय शिक्षा का यही उद्देश्य होना चाहिए।
[कुलपति, डा. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर]