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National Water Day 2021: गांवों की तरह जल संरक्षण के पुराने तौर-तरीकों को सीखने की जरूरत, पानी बचाएं !

National Water Day 2021 जल संकट ने शहरों को प्रभावित करना शुरू कर दिया है और बढ़ती जा रही है पानी की उपलब्धता व सही गुणवत्ता की समस्या। क्या भारत में इतना पानी है कि शहरी और ग्रामीण आबादी की जरूरतें पूरी की जा सकें?

By Shashank PandeyEdited By: Updated: Wed, 14 Apr 2021 10:23 AM (IST)
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भारत में शहरी और ग्रामीण आबादी के लिए क्या है पर्याप्त पानी ?(फोटो: दैनिक जागरण)
सुस्मिता सेनगुप्त। National Water Day 2021, देश में शहरों का विस्तार जारी है। साल 2001 तक भारत की आबादी का महज 28 फीसद हिस्सा शहरों में रहता था, लेकिन 2001-2011 के दशक में शहरी आबादी में वृद्धि की दर 30 फीसद पहुंच गई। अनुमान है कि साल 2030 तक देश की आबादी का 40 फीसद हिस्सा शहरों में रहने लगेगा। आसान शब्दों में कहें, तो साल 2001 में शहरी आबादी 29 करोड़ थी, जो साल 2011 में बढ़कर 37.7 करोड़ हो गई और साल 2030 तक यह 60 करोड़ हो जाएगी। इनमें से कितनी आबादी को साफ पानी व साफ-सफाई जैसी बुनियादी सेवाएं मिल पाएंगी, ये कल्पना से परे है।

जल संकट ने शहरों को प्रभावित करना शुरू कर दिया है और पानी की उपलब्धता व गुणवत्ता की समस्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत में इतना पानी है कि शहरी और ग्रामीण आबादी की जरूरतें पूरी की जा सकें?

इस समय भारत के 19.2 करोड़ ग्रामीण घरों में से 6.6 करोड़ घरों तक नल के जरिए पीने के पानी की आपूर्ति की जा रही है। जिसका मतलब है कि देश के 34.6 फीसद ग्रामीण घरों तक नल के जरिए जल पहुंच चुका है। यह जानकारी जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत द्वारा लोकसभा में दिए एक प्रश्न के जवाब में सामने आई है, जो जल जीवन मिशन (ग्रामीण) के आंकड़ों पर आधारित है। यदि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में 100 फीसद नल जल के लक्ष्य की बात करें तो आज देश के 2 राज्यों, 52 जिलों, 663 ब्लॉक, 40,086 पंचायतों और 76,196 गांवों तक नल के जरिए पीने का साफ पानी पहुंच चुका है।

केंद्रीय जल शक्ति व सामाजिक न्याय व सशक्तीकरण राज्य मंत्री रतन लाल कटारिया ने मार्च, 2020 में जानकारी दी कि साल 2001 में देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,816 घनमीटर थी, जो साल 2011 में घटकर 1,545 घनमीटर हो गई। साल 2021 में ये घटकर 1,486 घनमीटर और साल 2031 में 1,367 घनमीटर हो सकती है। स्पष्ट है कि आबादी में इजाफा होने के साथ देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता घट रही है।

नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर के सहयोग से हाइड्रोलॉजिकल मॉडल और वॉटर बैलेंस का इस्तेमाल कर सेंट्रल वॉटर कमीशन (सीडब्ल्यूसी) ने 2019 में ‘रिअसेसमेंट ऑफ वॉटर एवलेबिलिटी ऑफ वॉटर बेसिन इन इंडिया यूजिंग स्पेस इनपुट्स’ नाम की रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट से स्पष्ट पता चलता है कि देश जल संकट के दौर से गुजर रहा है। भू-जल का अत्यधिक दोहन एक और बड़ी चिंता है। अभी देश में पंप वाले कुएं 2 करोड़ से अधिक हैं, इनके कारण भू-जल में कमी आ रही है। सीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट कहती है कि इसके कारण देश में हर साल पानी की मात्रा 0.4 मीटर घट रही है। इस वजह से बड़े पैमाने पर मिट्टी का कटाव और गाद इकट्ठा हो रहा है।

शहरी आबादी की प्यास बुझाने के लिए अब दूर के जलस्रोतों से पानी लाया जा रहा है। दिल्ली शहर के लिए 300 किलोमीटर दूर हिमालय के टिहरी बांध से पानी लाया जाता है। सॉफ्टवेयर की राजधानी कहे जाने वाले हैदराबाद के लिए 116 किलोमीटर दूर कृष्णा नदी के नागार्जुन सागर बांध से और बंगलुरू के लिए 100 किलोमीटर दूर कावेरी नदी से पानी लाया जाता है। रेगिस्तानी शहर उदयपुर के लिए जयसमंद झील से पानी खींचा जाता है, लेकिन यह झील सूख रही है और आने वाले वक्त में नई आबादी की प्यास बुझाने में नाकाफी साबित होगी। मतलब साफ है कि शहरों में जलसंकट गहरा रहा है।

सदाबहार जल स्रोतों की कमी और अनिश्चित मानसून ने शहरों में जल संकट को और बढ़ा दिया है। शहरों और किसानों के लिए राज्यों में नदियों के पानी को लेकर लड़ाइयां हो रही हैं। यहां तक कि गांव के लोग अपने क्षेत्र के पानी पर पड़ोसी शहरों के अधिकारों को चुनौती दे रहे हैं। शहर से सटा इलाका, जो चारों तरफ से गांवों से घिरा हुआ है, वहां पानी की अत्यधिक निकासी के कारण फसलों का उत्पादन घट रहा है। बहुत सारे किसान पानी बेच रहे हैं, जिससे भू-जल स्तर में गिरावट आ रही है। गांव के पानी को शहर की तरफ मोड़ने से ग्रामीण इलाकों में रोष पनप रहा है। चेन्नई शहर के पानी की जरूरत के लिए जब वीरानाम झील में गहरी बोरिंग की गई थी, तो भी किसानों ने इसके खिलाफ प्रदर्शन किया था। गुस्साए किसानों ने पंपिंग सेट और पानी की सप्लाई के लिए लगाए गए पाइपों को क्षतिग्रस्त कर दिया था। किसानों की नाराजगी के कारण यह योजना वापस ले ली गई। 

साल 2009 की गर्मी में मध्य प्रदेश के कुछ शहरों में जल संकट इतना बढ़ गया था कि पानी की सप्लाई करने के लिए राशन दुकानों से कूपन बांटना पड़ा था। मध्य प्रदेश के सीहोर शहर में जब यह समस्या आई थी, तो शहर में पानी की सप्लाई करने के लिए प्रशासन ने 10 किलोमीटर के दायरे में आने वाले सभी ट्यूबवेल्स को अपने अधिकार में ले लिया था। देवास में तो 122 किलोमीटर लंबी वॉटर सप्लाई पाइपलाइन को किसानों से बचाने के लिए कफ्र्यू लगाना पड़ा। 

स्पष्ट है कि पानी की जरूरतों और उनकी प्रकृति में बदलाव आ रहा है। कृषि क्षेत्रों की जरूरतों को पूरा करने के बजाए इस वक्त विस्तार पाते शहर और औद्योगिक क्षेत्रों की पानी की जरूरतों पर ध्यान केंद्रित है। ऐसा लग रहा है कि जल अर्थव्यवस्था को एक रैक पर बांध दिया गया है और उसे खींचा जा रहा है।

यह भी बड़ी समस्या है कि ‘असंगठित’ जल अर्थव्यवस्था जो कृषि पर निर्भर आबादी की जरूरतों को पूरा करती है, अब भी अस्तित्व में है। भारत अब भी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था से उत्पादन-सेवा क्षेत्र संचालित अर्थव्यवस्था में तब्दील नहीं हुआ है। मौजूदा संकट ग्रामीण भारत के लोगों को भोजन और आजीविका की सुरक्षा के लिए पानी उपलब्ध कराना है। साथ ही साथ ही शहरी-औद्योगिक भारत की जरूरतों को भी पूरा करना है। 

ऐसे में सवाल है कि क्या पानी के इस्तेमाल के लिए अलग आदर्श प्रतिमान हो सकता है? ऐसा लगता है कि कल के शहरों को भविष्य में अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए गांवों की तरह जल संरक्षण के पुराने तौर-तरीकों को सीखने की जरूरत है।