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National Water Mission: पानी के प्रबंधन के लिए एक निकाय पर राज्यों को मनाने की कोशिश, 21 सिफारिशों पर विचार

National Water Mission केंद्र सरकार के अधिकारियों का मानना है कि पानी का शुल्क वसूलना अहम मसला है लेकिन यह अच्छी बात है कि इसे लेकर समझबूझ बढ़ रही है और राज्य भी अपनी जिम्मेदारी समझ रहे हैं। महाबलीपुरम में इस पर विस्तृत चर्चा होगी। इसी से संबंधित विषय जियो सेंसिंग जियो मैपिंग और रिमोट सेंसिंग का इस्तेमाल है। इससे जल स्त्रोतों के बेहतर आकलन और नियोजन में मदद मिलेगी।

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Updated: Wed, 17 Jan 2024 08:13 PM (IST)
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केंद्र सरकार पानी के प्रबंधन के लिए एक निकाय पर राज्यों को मनाने की कोशिश कर रही है। (File Photo)

मनीष तिवारी, नई दिल्ली। क्या राज्यों के स्तर पर ऐसी एकल नियामक संस्था की जरूरत है जो भूजल के साथ-साथ नदियों-तालाबों की निगरानी और पानी की कीमत जैसे विषयों पर निर्णय करने में सक्षम हो, बर्बाद हो जाने वाले पानी के फिर से इस्तेमाल को कैसे बढ़ावा दिया जाए, पानी का बजट निर्धारण और प्रबंधन कैसे बेहतर हो... ऐसे तमाम सवालों पर केंद्र और राज्यों के बीच अगले सप्ताह अहम बातचीत होने वाली है। 23 और 24 जनवरी को तमिलनाडु के महाबलीपुरम में जलशक्ति मंत्रालय का राष्ट्रीय वाटर मिशन राज्यों के सचिवों का एक सम्मेलन आयोजित करने जा रहा है, जिसमें 21 सिफारिशों पर विचार होगा। इस सम्मेलन में चर्चा के लिए जो मसला सबसे अहम है वह है जल प्रशासन और पानी की गुणवत्ता।

वाटर गर्वेनेंस को लेकर प्रजेंटेशन प्रस्तावित

2047 के दीर्घकालिक लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने पानी के उपयोग की दक्षता बढ़ाने को अपनी प्राथमिकता बनाया है। इसके लिए जल प्रशासन सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि पानी को लेकर जो तमाम सुधार आगे बढ़ाए जा रहे हैं, उनके लिए मौजूदा ढांचे से बात बनने वाली नहीं है। इस सम्मेलन में वाटर गर्वेनेंस को लेकर एक प्रजेंटेशन भी प्रस्तावित है। पानी के लिए बजटिंग और मैनेजमेंट (आपूर्ति और मांग, दोनों स्थितियों में) ऐसा विषय है जिस पर राज्यों को एक राय पर लाना आसान नहीं है।

पानी के उपयोग को लेकर सिफारिश

केंद्र सरकार के सूत्रों के अनुसार, हाल ही में ब्यूरो आफ वाटर यूज इफिशिएंसी की जो रिपोर्ट आई, उसकी कई सिफारिशों से राज्यों ने असहमति जताई है। इसके चलते रिपोर्ट पर बने एक्शन प्लान में केवल उन्हीं विषयों को शामिल किया गया है जिन पर राज्यों को कोई आपत्ति नहीं है। असहमति के बिंदुओं में कृषि के लिए पानी के उपयोग को लेकर सिफारिश भी है। पानी की सबसे अधिक खपत कृषि और उद्योगों में होती है, लेकिन ज्यादा बातें घरेलू उपयोग को सीमित करने पर केंद्रित होती हैं। कृषि में पानी का इस्तेमाल एक राजनीतिक मुद्दा है, जिस पर आम सहमति कायम करना आसान नहीं है।

जल स्त्रोतों के बेहतर आकलन में मिलेगी मदद

केंद्र सरकार के अधिकारियों का मानना है कि पानी का शुल्क वसूलना अहम मसला है, लेकिन यह अच्छी बात है कि इसे लेकर समझबूझ बढ़ रही है और राज्य भी अपनी जिम्मेदारी समझ रहे हैं। महाबलीपुरम में इस पर विस्तृत चर्चा होगी। इसी से संबंधित विषय जियो सेंसिंग, जियो मैपिंग और रिमोट सेंसिंग का इस्तेमाल है। इससे जल स्त्रोतों के बेहतर आकलन और नियोजन में मदद मिलेगी। चर्चा के अन्य बिंदुओं में जलाशयों और नदियों तथा अन्य स्त्रोतों की सफाई भी शामिल है। पिछली बैठक में इसको लेकर काम तेज करने की सिफारिश की गई थी।

प्रगति की समीक्षा

सम्मेलन में अब तक हुई प्रगति की समीक्षा की जाएगी। ब्यूरो की एक अन्य अहम सिफारिश यह भी थी कि किसी अन्य इस्तेमाल के मुकाबले स्टोर किए जा सके पेयजल को सबसे अधिक प्राथमिकता मिलनी चाहिए। खासकर उन क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए जो पेयजल के लिहाज से बेहद खराब स्थिति में हैं। इन्हें वाटर ग्रिट से जोड़ने की जरूरत है।

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