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10 से 50 वर्ष की महिलाओं को प्रवेश दिया तो सबरीमाला मंदिर की प्रकृति बदल जाएगी

अगर 10 से 50 वर्ष की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गई तो भगवान की प्रकृति में बदलाव हो जाएगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Updated: Wed, 25 Jul 2018 09:28 PM (IST)
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10 से 50 वर्ष की महिलाओं को प्रवेश दिया तो सबरीमाला मंदिर की प्रकृति बदल जाएगी
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी का समर्थन करते हुए वरिष्ठ वकील के. पारसरन ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट मे कहा कि सबरीमाला मंदिर के भगवान अयैप्पा बृम्हचारी हैं और उन्हें संविधान में संरक्षण प्राप्त है। अगर 10 से 50 वर्ष की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गई तो भगवान की प्रकृति में बदलाव हो जाएगा। परासरन नायर सर्विस सोसाइटी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलीलें रख रहे थे।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधानपीठ आजकल केरल के सबरीमाला मंदिर में निश्चित आयु की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी हटाने की मांग पर सुनवाई कर रही है। बुधवार को वरिष्ठ वकील के. पारसरन ने सबरीमाला मंदिर की परंपरा का जोरदार समर्थन करते हुए कोर्ट से उसमें दखल न देने की गुजारिश की। उन्होंने कहा कि 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर रोक लिंग आधारित भेदभाव नहीं है। केरल में ही कई और अयप्पा मंदिर हैं जहां किसी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं है।

सबरीमाला मंदिर के भगवान अयप्पा बृम्हचारी हैं वे एक योगी हैं और भगवान की विशेष प्रकृति के कारण वहां ये रोक है। अगर इस परंपरा को खतम कर दिया गया तो मंदिर की प्रकृति बदल जाएगी और भगवान अयप्पा को संविधान के तहत मिले अधिकार प्रभावित होंगे।

परासरन ने कहा कि मंदिर में सभी के प्रवेश की बात करने वाला अनुच्छेद 25 (2)(बी) जिसमें धार्मिक स्वतंत्रता की बात कही गई वह सिर्फ हिन्दू धार्मिक संस्थानों के लिए है क्योंकि छुआछूत सिर्फ हिन्दुओं में था। ये अनुच्छेद जाति और वर्ग की बात करता है ये लिंग की बात नहीं करता। इस दलील पर पीठ ने सवाल किया कि क्या इस प्रावधान के तहत दलित महिलाएं भी आती हैं। इस पर परासन का जवाब था कि ये अनुच्छेद वर्ग आधारित है लिंग आधारित नहीं है।

उन्होंने ये भी कहा कि धर्म जाति लिंग जन्मस्थान आदि के आधार पर भेदभाव की मनाही करने वाला अनुच्छेद 15 धार्मिक स्थलों और धार्मिक संस्थानों पर लागू नहीं होता। उन्होंने इस बारे मे संविधान सभा मे हुई बहस का भी हवाला दिया। बहस कल भी जारी रहेगी।