छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में नक्सल फरमान, पुरुषों पर गांव से बाहर जाने पर लगाई रोक
युवाओं या पुरुषों को किसी विशेष कार्य से जिला मुख्यालय जाना जरूरी हो तो नक्सलियों की जनताना सरकार से अनुमति लेनी होगी।
By Prateek KumarEdited By: Updated: Sat, 04 May 2019 10:33 PM (IST)
नारायणपुर [मो. इमरान खान]। नक्सलियों के आधार इलाके में सुरक्षाबलों के बढ़ते दबाव और सरकार की आत्मसमर्पण नीति से बौखलाए माओवादी संगठन ने इसका तोड़ निकालते हुए छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में नया फरमान जारी किया है। इसके तहत अबूझमाड़ के करीब दो दर्जन गांवों में जनअदालत लगाकर ग्रामीणों के गांव छोड़ने पर बंदिश लगा दी है।
वहीं महिलाओं को राशन दुकान और आसपास के हाट-बाजार जाने की छूट दी गई है। युवाओं या पुरुषों को किसी विशेष कार्य से जिला मुख्यालय जाना जरूरी हो तो नक्सलियों की जनताना सरकार से अनुमति लेनी होगी। वहीं नक्सलियों का एक कैडर उनके साथ रहेगा। फरमान की अवहेलना करने वाले आठ गांवों के 31 परिवारों को नक्सली पहले ही गांव से भगा चुके हैं, जो जिला मुख्यालय में शरण लिए हुए हैं। बताते हैं कि पुरुषों पर पुलिस मुखबिरी के शक में नक्सलियों ने यह कदम उठाया है।मेटानार पंचायत के उपसरपंच लालूराम मंडावी ने बताया कि माड़ का माहौल गर्म है। गांव में आपसी मतभेद के चलते ग्रामीण नक्सलियों तक झूठी खबर भिजवाकर एक-दूसरे को मरवा रहे हैं। नक्सली बिना किसी ठोस आधार के जनताना सरकार के बहकावे में आकर लोगों की बेरहमी से हत्याएं कर रहे हैं।
मेटानार के ही डोगाए ने बताया कि नक्सलियों ने गांव में बैठक कर साफ कह दिया है कि कोई भी आदमी गांव छोड़कर कहीं नहीं जाएगा। आदेश न मानने वालों के साथ पुलिस का मुखबिर बताकर मारपीट की जा रही है। गांव से भगा दिया जा रहा है। माड़ के टाहकाढोड, कदेर, ब्रेहबेड़ा, बालेबेड़ा, मेटानार, ताड़ोनार, गारपा, तुड़को, तुमेरादी, परियादी, ओरछापर, कोंगाली समेत कई गांवों में नक्सली बंदिश लगाने की सूचना है।वारदात की असल वजह
ग्रामीणों ने बताया कि पिछले कुछ साल से पुलिस उनके गांव तक आ रही है और नक्सलियों के ठिकाने तक पहुंच रही है। पुलिस जब भी गांव आती है, लोगों से पूछताछ कर आगे बढ़ जाती है। इस बीच अगर मुठभेड़ हो जाती है तो नक्सली उन ग्रामीणों को शिकंजे में ले लेते हैं, जो गांव आई पुलिस के जवानों से बात करते देखे जाते हैं। समर्पण नीति से नक्सलियों का कुनबा दिनों-दिन छोटा होता जा रहा है, जिससे दहशत फैलाकर वे मुख्यालय आने-जाने पर रोक लगा रहे हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि पिछले कुछ साल से पुलिस उनके गांव तक आ रही है और नक्सलियों के ठिकाने तक पहुंच रही है। पुलिस जब भी गांव आती है, लोगों से पूछताछ कर आगे बढ़ जाती है। इस बीच अगर मुठभेड़ हो जाती है तो नक्सली उन ग्रामीणों को शिकंजे में ले लेते हैं, जो गांव आई पुलिस के जवानों से बात करते देखे जाते हैं। समर्पण नीति से नक्सलियों का कुनबा दिनों-दिन छोटा होता जा रहा है, जिससे दहशत फैलाकर वे मुख्यालय आने-जाने पर रोक लगा रहे हैं।