Constitution Day: जब संविधान का प्रारूप लिखने के लिए सात लोगों को चुना गया था तो फिर अकेले डॉ. आंबेडकर ने क्यों लिखा?
भारत का संविधान सिर्फ़ एक दस्तावेज़ नहीं बल्कि एकता समानता और बंधुत्व का आधार स्तंभ है। आज हम भारत के जिस संविधान पर गौरव का अनुभव करते हैं उसके निर्माण में डॉ. बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के कुशल नेतृत्व एवं विचारों की अमिट छाप है। यह लेख संविधान निर्माण की चुनौतियों उसपर हुए हमलों और उसके मूल्यों पर प्रकाश डालता है...
कृष्णाम्माचारी का भाषण
सही मायने में क्या राष्ट्र का अर्थ, संविधान में क्या है जिक्र
वंश एक होने से, संस्कृति एक होने से, भूमि एक होने से राष्ट्र बनता है, ऐसा नहीं है। राष्ट्र का अर्थ ही यह होता है कि देश में रहने वाले सभी लोग एक-दूसरे से भावनात्मक रूप से गहराई से जुड़े होने चाहिए। बंधुत्व इस तरह की भावनात्मक एकता का निर्माण करता है। भारतीय राज्यकर्ता, विचारक, प्रसार-माध्यम, विद्वान, कलाकार यदि इन सूत्रों को सत्यनिष्ठा से आचरण में लाएं तो भारत को महान बनने से दुनिया की कोई ताकत रोक नहीं सकती-इतनी सामर्थ्य इन सूत्रों में है। भारत का संविधान भारतीय लोकतंत्र का आत्मा है।यह श्रमसाध्य कार्य सूझ-बूझ, दूरदर्शिता से ही संभव हो पाया; वह भी उस समय, जब देश परतंत्रता की जंजीरों से मुक्त हो रहा था। इसी संविधान के प्रकाश में, संविधान निर्माता महापुरुषों के विचारों के दिव्य आलोक में नए भारत का निर्माण हम सबका दायित्व है।संविधान पर सबसे बड़ा हमला
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में संविधान पर सबसे बड़ा हमला 1975 में हुआ था। 25 जून, 1975 को देश में इमरजेंसी लगी और इस दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं, लेकिन उनमें से सबसे महत्वपूर्ण रहा संविधान में निजी महत्वाकांक्षाओं से प्रेरित बदलाव।आपातकाल के दौरान संविधान में इस हद तक बदलाव किए गए कि इसे अंग्रेजी में ‘कांस्टीट्यूशन आफ इंडिया’ की जगह ‘कांस्टीट्यूशन आफ इंदिरा’ कहा जाने लगा था। ‘इंडिया इज इंदिरा’ कहने वालों ने 42वें संविधान संशोधन से भारत के संविधान को ‘इंदिरा का संविधान’ बना दिया था। आपातकाल लागू होने के एक महीने के भीतर 22 जुलाई, 1975 को संविधान में 38वां संशोधन पारित किया गया था, जिसमें न्यायपालिका से आपातकाल की न्यायिक समीक्षा करने का अधिकार छीन लिया गया। दो महीने बाद ही इंदिरा गांधी के लिए प्रधानमंत्री पद बरकरार रखने के इरादे से संविधान में 39वां संशोधन पेश किया गया।चूंकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया था, इसलिए 39वें संशोधन ने देश के प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त व्यक्ति के चुनाव की जांच करने का अधिकार उच्च न्यायालयों से छीन लिया। संशोधन के अनुसार, प्रधानमंत्री के चुनाव की जांच एवं परीक्षण केवल संसद द्वारा गठित समिति द्वारा ही की जा सकेगी। यह भी पढ़ें- डिजिटल अरेस्ट कैसे किया जाता है? पार्सल, गिफ्ट और वॉट्सएप कॉल पर असली सा दिखने वाला अधिकारी; क्या है पूरा खेल?संविधान में 1976 में क्या बदला गया?
1976 में जब लगभग सभी विपक्षी सांसद या तो भूमिगत थे या जेलों में थे, तब 42वें संशोधन ने भारत का विवरण ‘संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य’ से बदलकर ‘संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य’ कर दिया। 42वें संशोधन के सबसे विवादास्पद प्रविधानों में से एक था मौलिक अधिकारों की तुलना में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को वरीयता देना। इसके कारण किसी भी व्यक्ति को उसके मौलिक अधिकारों से वंचित किया जा सकता था। इस संशोधन ने न्यायपालिका को पूरी तरह से कमजोर कर दिया था, वहीं विधायिका को अपार शक्तियां दे दी गई थीं।संवैधानिक संशोधन के बाद से भारत के राष्ट्रपति के लिए मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करना अनिवार्य हो गया। मौलिक अधिकारों के महत्व का बहुत अधिक अवमूल्यन किया गया।इस संशोधन ने अनुच्छेद 368 सहित 40 अनुच्छेदों में परिवर्तन किया और घोषित किया कि संसद की संविधान निर्माण शक्ति पर कोई सीमा नहीं होगी और किसी भी मौलिक अधिकार के उल्लंघन सहित किसी भी आधार पर किसी भी अदालत में संसद द्वारा किए गए किसी भी संशोधन पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है।यह भी पढ़ें- IC814: इब्राहिम, शाहिद और शाकिर कैसे बन गए भोला, शंकर और बर्गर; द कंधार हाइजैक सीरीज में क्या है आतंकियों के नामों की सच्चाई?स्वर्णिम इतिहास के वे चार चरण
1. सर्वप्रथम संविधान के लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव पर चर्चा, बहस और स्वीकार किया जाना। नियम निर्माण समिति तथा सभा संचालन समिति का गठन 22 जनवरी, 1947 को हुआ। संविधान सभा ने आठ लक्ष्यों को स्वीकार किया, जिन्हें प्राप्त करने के लिए संविधान बनाया जाना था।
2.संविधान सभा द्वारा विभिन्न विषयों (मूलभूत और अल्पसंख्यकों के अधिकार, संघ की शक्तियां, प्रांतीय और संघ अधिकार समिति आदि) पर प्रारूप और प्रविधानों के प्रतिवेदन बनाने के लिए विभिन्न समितियों का गठन किया जाना था। संघ-शक्ति समिति में नौ सदस्य थे। इसके अध्यक्ष पं. जवाहरलाल नेहरू थे। कार्य संचालन समिति में तीन सदस्य थे और इसके अध्यक्ष थे डॉ. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी। प्रांतीय विधान समिति में 25 सदस्य थे और इसके अध्यक्ष थे सरदार वल्लभभाई पटेल। संघ विधान समिति में 15 सदस्य थे और इसके अध्यक्ष थे पं. जवाहरलाल नेहरू।
3. इन समितियों के प्रतिवेदनों को संविधान सभा के सलाहकार बी.एन. राव ने समग्र स्वरूप देते हुए संविधान का आधारभूत प्रारूप तैयार किया। 29 अगस्त, 1947 को संविधान सभा ने संविधान का वास्तविक मसौदा तैयार करने के लिए प्रारूप समिति (ड्राफ्टिंग कमेटी) का गठन किया, जिसके अध्यक्ष डा. भीमराव आंबेडकर बनाए गए।
4. फरवरी 1948 में प्रारूप समिति ने अपना मसौदा प्रकाशित किया। सभा के सदस्यों को आठ माह तक इस प्रारूप के अध्ययन का मौका मिला। नवंबर 1948 से 17 अक्टूबर, 1949 तक कई बैठकों में इस प्रारूप पर खंडवार चर्चा हुई। तीसरे और अंतिम प्रारूप पर चर्चा 14 नवंबर, 1949 को शुरू हुई और 26 नवंबर, 1949 को संविधान को पारित कर दिया गया।
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