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देश में सबसे हाईटेक हैं दिल्ली की जिला अदालतें, 15 राज्यों में आधी सुविधाएं भी नहीं

ताजा सरकारी सर्वे में पाया गया कि देश की जिला अदालतों में मूलभूत सुविधाओं का भारी अभाव है। 15 राज्यों में आधी सुविधाएं भी नहीं हैं। इससे कोर्ट की कार्यप्रणाली भी प्रभावित हो रही।

By Amit SinghEdited By: Updated: Sat, 03 Aug 2019 11:14 PM (IST)
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देश में सबसे हाईटेक हैं दिल्ली की जिला अदालतें, 15 राज्यों में आधी सुविधाएं भी नहीं
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भारतीय कानून व्यवस्था की खस्ताहालत किसी से छिपी नहीं है। देश की अदालतों में करोड़ों की संख्या में मामले लंबित पड़े हुए हैं और अदालतों में जजों की भारी कमी है। केवल जिला अदालतों में ही 2.8 करोड़ मामले सुनवाई के लिए लंबित हैं। इन जिला अदालतों में 6000 से ज्यादा जजों के पद रिक्त हैं।

समस्या यहीं खत्म नहीं होती, देश की ज्यादातर अदालतों में आवश्यक बुनियादी सुविधाओं का भी भारी अभाव है। किस कोर्ट में सबसे बढ़िया सुविधाएं हैं और कहां क्या कमी है, ये जानने के लिए हाल ही में देश की 665 जिला अदालतों का सर्वेक्षण किया गया है। सर्वे मेें दिल्ली की जिला अदालतों को बुनियादी सुविधाओं और इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में देश में सबसे बेहतरीन माना गया है।

नेशलन कोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम समिति ने किया सर्वे
नेशनल कोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम समिति (National Court Management System Committee) ने सर्वेक्षण में पाया गया कि 15 राज्यों की जिला अदालतों में आधी सुविधाएं भी नहीं हैं। इस समिति का गठन वर्ष 2012 में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) और केंद्रीय कानून मंत्रालय द्वारा किया गया था। समिति को अदालतों में आवश्यक इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी का आंकलन करन की जिम्मेदारी दी गई थी। समिति को ये भी अध्ययन करना है कि संशाधनों के अभाव की वजह से कोर्ट की दिन-प्रतिदिन की कार्यप्रणाली पर क्या असर पड़ रहा है।

इन नौ मानक पर हुआ सर्वेक्षण
समिति ने कोर्ट में आवश्यक संशाधनों का अध्ययन पूर्व में निर्धारित किए गए नौ मानक पर किया है। इसमें अदालत में आने-जाने की सुविधा, कोर्ट परिसर के अंदर दिशा सूचक, प्रतिक्षालय (वेटिंग एरिया), हाइजीन, बैरियर मुक्त प्रवेश, जिन मामलों में सुनवाई होनी है उनके डिस्प्ले की सुविधा, अदालत परिसर में मौजूद बेसिक सुविधाएं, सुरक्षा और अदालत की वेबसाइट शामिल है।

सर्वे में बेसिक सुविधाएं भी नदारद
सर्वेक्षण में समिति ने पाया कि जिन राज्यों या जिलों की अदालतें अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं, वहां भी निर्धारित मानक के हिसाब से बहुत सी बुनियादी सुविधाओं की कमी है। इसमें बैरियर मुक्त प्रवेश (बाधा रहित पहुंच), स्वच्छता और केस डिस्प्ले प्रमुख है। इतना ही नहीं सर्वे में पाया गया कि कोर्ट परिसर में अदालतें चलाने के लिए पर्याप्त कमरे तक नहीं हैं और न ही जजों के रहने के लिए पर्याप्त घर हैं। उदाहरण के लिए मुंबई में 2248 जजों के लिए केवल 1763 कोर्ट रूम हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश में भी 885 कोर्ट रूम कम हैं। इनमें से 371 कमरों का निर्माण कार्य चल रहा है।

15 राज्यों में आधी सुविधाएं भी नहीं

  1. सर्वे में केवल चंडीगढ़ कोर्ट को 100 फीसद सुविधाओं से लैस पाया गया।
  2. मणिपुर की चंदेल कोर्ट में सबसे कम मात्र छह फीसद सुविधाएं मिलीं।
  3. बिहार की अर्वल कोर्ट में दूसरे नंबर पर सबसे कम आठ फीसद सुविधाएं हैं।
  4. केरल की अदालतों को दूसरे नंबर पर सबसे अच्छे कोर्ट का दर्जा मिला है।
  5. बेंगलुरू की अदालतें निर्धारित मानक पर केवल 77 फीसद खरी मिलीं।
  6. 58 फीसद सुविधाओं के साथ पश्चिम बंगाल में बांकुड़ा कोर्ट सबसे बेहतरीन है।
  7. कोलकाता की तीन अदालतें बहुत खराब हालत में मिलीं।
  8. कोलकाता की दो सबसे खस्ताहाल अदालतों में मात्र 18 फीसद सुविधाएं हैं।
किस राज्य में कितने फीसद हैं सुविधाएं

उत्तर प्रदेश – 38
दिल्ली - 90
बिहार - 26
पंजाब - 68
हरियाणा - 70
उत्तराखंड - 55
झारखंड - 35
छत्तीसगढ़ - 47
मध्य प्रदेश - 56
हिमाचल प्रदेश - 74
जम्मू-कश्मीर - 41
पश्चिम बंगाल – 30
ओडिशा - 36
महाराष्ट्र - 48
गुजरात - 55
राजस्थान - 36

आधे से ज्यादा कोर्ट में शौचालय जैसी जरूरी सुविधाएं भी नहीं

  1. 19 फीसद अदालतों में सार्वजनिक परिवहन की पहुंच नहीं है।
  2. 20 फीसद अदालतों में पार्किंग सुविधा नहीं है।
  3. 80 प्रतिशत अदालत परिसर में दिशा सूचक नहीं है।
  4. 55 प्रतिशत अदालत परिसर में कोई हेल्प डेस्क नहीं है।
  5. 60 फीसद अदालतों में पूरी तरह से क्रियाशील शौचालय नहीं है।
  6. 47 फीसद अदालतों में प्रत्येक तल पर शौचालय मौजूद नहीं है।
  7. 74 फीसद कोर्ट में प्रवेश द्वार और वेटिंग एरिया में इलेक्ट्रॉनिक केस डिस्प्ले बोर्ड नहीं है।
  8. 46 प्रतिशत अदालत परिसर में प्रतिक्षालय एरिया का अभाव है।
  9. 89 फीसद कोर्ट की वेबसाइटों पर केस की सूची, केस ऑर्डर और उनकी स्टेटस अपलोड किया जाता है।
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