हर साल औसतन सौ से ज्यादा मौतें , 400 तक घायल
85% दुर्घटनाएं मानवीय त्रुटि के कारण होती है। जबकि उपकरणों की विफलता और तोड़फोड़ के कारण क्रमश 5 फीसद और चार फीसद दुर्घटनाएं होती है। कुल दुर्घटनाओं में से डिरेलमेंट्स लेवल क्रॉसिंग दुर्घटनाएं टकराव और आग दुर्घटनाओं से क्रमशः 58% 32% 5% और 3% हादसे हुए थे।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी। 2 जून 2023 को उड़ीसा के बालासोर में भीषण रेल दुर्घटना से पूरा देश गमगीन है। कोरोमंडल शालीमार एक्सप्रेस नाम की एक यात्री ट्रेन पटरी से उतरकर बगल में खड़ी एक मालगाड़ी से टकराई। जिसके उसके डिब्बे पटरी से उतर गए और पटरी से उतरे डिब्बों से यशवंतपुर-हावड़ा सुपरफास्ट ट्रेन भी टकरा गई। इस हादसे में 275 लोगों की जान चली गई। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना था कि इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग के दौरान हुए बदलाव से यह हादसा हुआ। उन्होंने कहा कि यह किसने किया और कैसे हुआ, इसका पता उचित जांच के बाद लगेगा।
दरअसल, इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम के जरिए ट्रेन का ट्रैक तय किया जाता है। इस सिस्टम का उद्देश्य यह है कि किसी भी ट्रेन को तब तक आगे बढ़ने का संकेत नहीं दिया जाता, जब तक आगे का मार्ग सुरक्षित न हो जाए। वहीं रेलवे ट्रैफिक से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तरह की जानकारी आ रही है उससे लगता है कि यह हादसा बहुत बड़ी मानवीय गलती से हुआ है। वंदे भारत जैसी ट्रेनों को मूर्त रूप देने वाले सुधांशु मणि कहते हैं कि रेलवे के सिस्टम को कुछ इस तरह डिजाइन किया गया है कि अगर कोई तकनीकी खामी आए तो सिस्टम सेफ साइड में बंद होगा। ऐसे में हादसा होने की संभावना न के बराबर है। लेकिन अगर किसी मानवीय भूल या किसी की जानबूझ कर की गई लापरवाही से दुर्घटना की संभावना हो सकती है। इसकी जांच होना नितांत आवश्यक है। सीबीआई जांच का आदेश कर सरकार ने संवेदनशीलता दिखाई है।
सतीश भगवतराव अहीर और दीपक राज तिवारी ने रेलवे डिजास्टर इन इंडिया-कॉजेज, इफेक्ट्स और मैनेजमेंट नाम से शोध पत्र लिखा है। रिसर्च पेपर में वह लिखते हैं कि 85% दुर्घटनाएं मानवीय त्रुटि के कारण होती है। जबकि उपकरणों की विफलता और तोड़फोड़ के कारण क्रमश : 5 फीसद और चार फीसद दुर्घटनाएं होती है।
रेल हादसों की की चार प्रमुख श्रेणियां होती है। इसमें पटरी से उतरना, लेवल क्रॉसिंग दुर्घटनाएं, टक्कर और ट्रेनों में आग प्रमुख कारण है। यह हादसे मानव त्रुटि, उपकरण विफलता, और तोड़फोड़ की वजह होते हैं। कुल दुर्घटनाओं में से डिरेलमेंट्स, लेवल क्रॉसिंग दुर्घटनाएं, टकराव और आग दुर्घटनाओं से क्रमशः 58%, 32%, 5% और 3% हादसे हुए थे।
रिपोर्ट कहती है कि 2000-2016 के दौरान कुल 3515 दुर्घटनाएं हुईं। इसमें पटरी उतरने से सबसे अधिक ट्रेनों के आपस में टकराने की वजह से सबसे अधिक 2045 हादसे हुए। वहीं आपस में टकराने और लेवल क्रॉसिंग से क्रमश : 167 और 1125 दुर्घटनाएं हुई।
ऑल इंडिया रेलेवे मेंस फेडरेशन के अध्यक्ष शिव गोपाल मिश्र का कहना है कि रेलवे को कवच प्रणाली देश के सभी रूट्स पर जल्द से जल्द लगानी चाहिए। वहीं स्पीड और स्टेशन डेवलोपमेन्ट से ज्यादा संरक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए। इसके लिये बजट में किसी तरह की कमी नहीं करनी चाहिए
मानवीय गलती की बात भी हो सकती है
आमतौर पर इंटरलॉकिंग सिस्टम में खराबी आने पर सिग्नल लाल हो जाता है। जानकारी के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटरलॉकिंग बाहरी हस्तक्षेप मसलन मानवीय गलती, खराबी आदि के चलते खराब हो सकते हैं।
ताजा रेल दुर्घटना को लेकर भारतीय रेलवे के एक सिग्नलिंग विशेषज्ञ का कहना है कि सुरक्षा के लिए शर्तों को पूरा करना जरूरी है। यहां प्वाइंट को नॉर्मल लाइन पर सेट किया जाना चाहिए था न कि लूप लाइन पर। इस घटना में प्वाइंट को लूप लाइन पर सेट किया गया था। यह बिना मानवीय हस्तक्षेप के नहीं हो सकता।
यह कहती है एनसीआरबी की रिपोर्ट
2022 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल की तुलना में 2021 में रेल दुर्घटनाओं में 38.2 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। रिपोर्ट के अनुसार, 17,993 दुर्घटनाओं में से 19.4 प्रतिशत महाराष्ट्र में हुई, इसके बाद पश्चिम बंगाल का नंबर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 के दौरान 17,993 रेल दुर्घटनाओं में 1,852 लोग घायल हुए और 16,431 लोगों की मौत हुई। इन हादसों की बड़ी वजह ड्राइवरों की गलती, रेलवे ट्रैक पर तोड़फोड़, सिग्नलमैन की लापरवाही और मशीनी खराबी शामिल हैं। इसके कारण ही देश में बड़ी रेल दुर्घटनाएं घटित हुई हैं।
कैग की रिपोर्ट में भी चेताया गया
2022 में CAG की तरफ से जारी की गई ऑडिट रिपोर्ट को देखा जाए तो इसमें रेल के पटरी से उतरने का पहले से ही जिक्र किया गया था और इसके पीछे के कारणों के बारे में भी बताया गया था। प्राथमिकता वाले कार्यों पर रेलवे फंड से ट्रैक रेनोवेशन पर खर्च होने वाले पैसे में कमी आने को एक मुख्य कारण बताया गया है। रेलवे सुरक्षा कोष या राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष एक रिजर्व फंड है, जिसे पिछले पांच सालों में 2017-2018 के बाद से 1 लाख करोड़ रुपये का फंड मिला है। कैग ने अपनी 2022 की रिपोर्ट में बताया था कि अप्रैल 2017 से मार्च 2021 के बीच, चार सालों में 16 जोनल रेलवे में 1129 डिरेलमेंट की घटनाएं हुईं। यानी हर साल लगभग 282 डिरेलमेंट हुए। इसमें कुल 32.96 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।
कैग ने रेलवे से की थी ये अहम सिफारिशें
कैग ने रेलवे को सलाह देते हुए कहा था कि दुर्घटना को रोकने के लिए आपसी कम्युनिकेशन को और मजबूत करने की आवश्यकता है। रेलवे को ट्रैक मेनटेनेंस को सुनिश्चित करने के लिए बेहतर टेक्नोलॉजी का उपयोग करना होगा और मजबूत निगरानी तंत्र विकसित करना होगा। रेल प्रशासन को प्राथमिकता कार्यों के क्षेत्र में धन की कमी से बचने के लिए फंड के लिए काम करना होगा।
इंटरलॉकिंग: रेलवे, स्विचेस में, जो पॉइंट्स और क्रॉसिंग जुड़े होते हैं, जिनके माध्यम से ट्रेन पटरियों से गुजरती है, वे बहुत महत्वपूर्ण बिंदु होते हैं। इन्हीं बिन्दुओं से ट्रेन का पटरी से उतरना जैसी विफलता की संभावनाएं हो जाती है। इसलिए, इन बिंदुओं पर सुरक्षा सुनिश्चित करना अनिवार्य है। इंटरलॉकिंग सिस्टम की मदद से सिग्नल और स्विच को एक सटीक सिंक्रनाइजेशन में संचालित किया जाता है। जिसमें एक को संचालित नहीं किया जा सकता जब तक कि दूसरे पर अपेक्षित ऑपरेशन नहीं किया गया हो। इंटरलॉकिंग का मतलब है कि अगर लूप लाइन सेट है, तो लोको पायलट को मेन लाइन का सिग्नल नहीं मिलेगा। वहीं, अगर मेन लाइन सेट है, तो लूप लाइन का सिग्नल नहीं मिलेगा। इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिग्नल अरेंजमेंट की एक व्यवस्था है, जो लाइन और ट्रेनों के बीच एक ऐसा सिस्टम तैयार करती है, जो ट्रेन कोलिजन होने से बचाती है।
ट्रैक सर्किटिंग: प्रत्येक सिग्नल के बीच का ट्रैक विद्युत से पहले और उसके बाद के ट्रैक से पृथक किया जाता है। एक विद्युत रिले को दो संकेतों के बीच दो रेल लाइनों से जोड़ा जाता है; विभिन्न ट्रैक के लिए विभिन्न रिले होते है। इस सर्किट का एक हिस्सा एक विद्युत बल्ब जबकि दूसरा रेलवे पटरियों से जुड़ा हुआ होता हैं।
जब ट्रेन नहीं गुजरती है तो दूसरे रास्ते का सर्किट अधूरा होता है और करंट पहले रास्ते से प्रवाह होता है और बल्ब रोशन हो जाता है। जैसे-जैसे ट्रेन गुजरती है, अलग-अलग बल्ब बंद होते जाते हैं जिसके द्वारा ट्रेन की स्थिति एक मॉनिटर पर निर्धारित की जा सकती है। इसलिए ट्रैक सर्किटिंग का सही रूप से काम करने भी जरुरी हैं।
स्वचालित ब्लॉक सिग्नलिंग (एबीएस) : ट्रैक सर्किटिंग ने सिग्नल की एक श्रृंखला की मदद से ट्रेन के स्थान की जानकारी एकत्र करना संभव बना दिया है। ये इलेक्ट्रिक सिग्नल अब प्रोग्राम डिवाइस के लिए एक इनपुट के रूप में उपयोग किए जाते है जो कि रेल के संकेतों को नियंत्रित करते है।