आर्थिक सुधारों से उड़ान भरेगी अर्थव्यवस्था: किसानों की आय, रोजगार और MSME ... जानिए मोदी सरकार 3.0 के एजेंडे में हैं कौन-से मुद्दे
Modi Government 3.0 Update प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सभी मंत्री अपने 100 दिन के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। भारत के तेज आर्थिक विकास की राह में चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं। कृषि क्षेत्र में सुधार एक विवादास्पद मुद्दा है लेकिन सहमति बनाकर इसे लागू करना जरूरी है। श्रम सुधारों को लागू करना भी समय की मांग है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल की कैबिनेट में एक निरंतरता दिखती है। अहम मंत्रालयों में वही पुराने चेहरे हैं। यह एक संयोग या राजनीतिक जरूरत नहीं बल्कि स्थिरता और टिकाऊ विकास को लेकर प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है। इस रणनीतिक कदम का मकसद शासन में निरंतरता को आगे बढ़ाते हुए भारत को 2047 तक विकसित देश बनाने के लक्ष्य पर तेजी से आगे बढ़ाना है।
शासन के स्तर पर निरंतरता न सिर्फ नीतियों को आसानी से लागू करने में मदद करती है बल्कि इससे उभरती चुनौतियों के समाधान के लिए कदम उठाने में भी मदद मिलती है। इसके अलावा यह नेतृत्व में बदलाव से जुड़ी बाधाओं को भी कम करती है।लोकसभा में भाजपा को पूर्ण बहुमत न मिलने के बावजूद कैबिनेट में अनुभवी और जांचे परखे नेतृत्व को शामिल करना यह संकेत देता है कि जटिल चुनौतियों के बीच भारत को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए अनुभवी लोगों की जरूरत है।
बड़े बदलाव का साक्षी बन सकता है मोदी का तीसरा कार्यकाल
प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी का तीसरा कार्यकाल भारत में बड़े बदलाव का साक्षी बन सकता है। यह कार्यकाल लोगों को सामाजिक और आर्थिक तौर पर सशक्त बनाते हुए समृद्धि की ओर ले जा सकता है। नरेन्द्र मोदी का अपने अनुभवी मंत्रियों को बनाए रखना यह दिखाता है कि वे पहले के कार्यकाल में हासिल की गई उपलब्धियों को आधार बनाकर उस पर सफलता की इमारत बुलंद करना चाहते हैं। सुनिश्चित करना चाहते हैं कि भारत के आर्थिक सुधारों और विकास के लिए शुरू की पहलों की गति बनी रहे। इसमें कोई बाधा न आए
मोदी के पहले कार्यकाल में कौन-सा काम हुआ था?
मोदी सरकार का पहला कार्यकाल (2014-2019) बड़े सुधारों के जरिये आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में अहम रहा। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ने भारत के बिखरे बाजारों को एक किया है। इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) ने गैर निष्पादित परिसंपत्तियों की समस्या का समाधान करते हुए कारोबार के परिचालन में सुधार किया। इससे निवेशकों का भरोसा मजबूत हुआ।डिजिटल इंडिया का मकसद डिजिटल विभाजन को खत्म कर प्रशासन की कुशलता को बेहतर बनाना और आम लोगों को प्रभावी तरीके से सेवाएं मुहैया कराने में तकनीक का उपयोग करना था। इन पहलों ने भारत की आर्थिक और शासन की संरचना को आधुनिक बनाते हुए सतत ग्रोथ और विकास की नींव रखी।इन पहलुओं से पता चलता है कि सरकार देश को किस दिशा में ले जाना चाहती थी। सरकार इन पहलुओं के जरिये एक प्रतिस्पर्धी और मजबूत अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना चाहती थी, जो डिजिटल युग में वैश्विक चुनौतियों के बीच अवसरों का फायदा उठा सके।
पिछले पांच वर्षों में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर तेजी से काम हुआ है और आर्थिक ग्रोथ में उछाल आई है। सड़क, रेलवे के विस्तार सहित परिवहन नेटवर्क में निवेश की वजह से कनेक्टिविटी बेहतर हुई और आवागमन में लगने वाला समय कम हुआ है।प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम ने घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को मजबूती देते हुए रोजगार के नए मौके पैदा किए हैं। जन कल्याण कार्यक्रम जैसे आयुष्मान भारत और प्रधानमंत्री आवास योजना के जरिये बड़े पैमाने पर लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं और घर मुहैया कराए गए हैं।
ये कार्यक्रम समावेशी विकास और लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दिखाते हैं। भविष्य के लिहाज से ये सभी सुधार महत्वपूर्ण हैं और ये आगे भी समावेशी विकास और आर्थिक समृद्धि को आगे बढ़ाने में अहम निभाएंगे। इससे भारत खुद को 21वीं की वैश्विक अर्थव्यवस्था के रूप में मजबूती से स्थापित कर सकेगा।