ऐसे में सवाल ये हैं कि इतनी ठंडी जगह पर गर्मी का फ्लाइट उड़ने से क्या लेना-देना? जब दिल्ली में लेह से ज्यादा तापमान में फ्लाइट का टेक-ऑफ और लैंड होना जारी रहता है तो फिर गर्मी के चलते लेह-लद्दाख में फ्लाइट कैंसिल क्यों हुईं?
लेह स्थिति कुशोक बकुला रिम्पोछे एयरपोर्ट समुद्र तल से 10,682 फीट की ऊंचाई पर है। यह दुनिया के सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित हवाई अड्डों में से एक है। यहां पर उड़ान भरने और फ्लाइट उतारने के लिए पायलटों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। हाल के दिनों में यहां का तापमान 30 से 36 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है। इस कारण ये कई उड़ानें प्रभावित हुईं।
एयर बस फ्लाइट के सीनियर पायलट ने पीटीआई से बातचीत में बताया कि लेह जितनी ऊंचाई पर A320 Neo एयर प्लेन का उड़ान भरने के लिए 33 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान चाहिए होता है। इससे ज्यादा तापमान पर इस एयरप्लेन की उड़ानें प्रभावित होती हैं।
वहीं स्पाइसजेट की ओर से बताया गया कि लेह हवाई अड्डे पर बोइंग 737 के टेक-ऑफ और लैंड करने के लिए 32 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान चाहिए।
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विमान कैसे उड़ते हैं?
विमान के विंग्स के ऊपर का हिस्सा नीचे की तुलना में अधिक घुमावदार होता है। जब विमान रनवे पर तेजी से चलता है तो विंग्स के ऊपर की हवा तेजी से बहती है, जिससे विंग्स के ऊपर कम और नीचे अधिक दबाव बनता है। यह दबाव अंतर (बर्नोली सिद्धांत के अनुसार) एक बल उत्पन्न करता है जो विमान को कम दबाव की ओर धकेलता है। यानी ऊपर उठाने में मदद करता है।
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ज्यादा गर्मी का फ्लाइट के उड़ने से क्या लेना-देना?
तापमान ज्यादा होना फ्लाइट की उड़ान को कई तरीके से प्रभावित करता है। जैसे..
कम घनी हवा
उच्च तापमान के कारण हवा फैलती है, जिससे यह कम घनी (less dense) या पतली (thinner) हो जाती है। ऐसे समझिए हवा के अणुओं के बीच अधिक जगह बन जाती है। इससे विमान को लिफ्ट करने के विंग्स के नीचे कम अणु होते हैं, जिससे टेक ऑफ में दिक्कत आती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग (यूके) में वायुमंडलीय विज्ञान (atmospheric science) के प्रोफेसर पॉल विलियम्स ने 2023 में एक इंटरव्यू में बताया था कि आमतौर पर तीन डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर विमान को 1% कम लिफ्ट मिलती है।
इंजन की कार्य क्षमता
कम डेंस और थिन वाली हवा इंजन की दहन प्रक्रिया को भी प्रभावित करती है क्योंकि ईंधन के साथ मिलाने के लिए ऑक्सीजन के अणु कम होते हैं। पतली हवा के कारण इंजन द्वारा उत्पन्न थ्रस्ट भी कम होता है, जिससे विमान को आगे बढ़ाने की क्षमता घट जाती है।
रन-वे की लंबाई
उच्च तापमान के कारण विमानों को उड़ान भरने के लिए अधिक लंबी रन-वे की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए यदि विमान को 20 डिग्री सेल्सियस पर 6,500 फीट रनवे की आवश्यकता होती है तो 40 डिग्री सेल्सियस पर उसे 8,200 फीट रनवे की आवश्यकता होगी।बता दें कि लेह में 9434 फीट का रनवे है, लेकिन फ्लाइट के टेक-ऑफ करने के साथ ही पहाड़ों पर टकराने से बचने के लिए ऊंचाई पर जाना ले जाना होगा , जोकि तापमान बढ़ने पर मुश्किल हो जाता है। इसलिए लेह में तापमान बढ़ने पर विमान का उड़ान भरना असुरक्षित हो जाता है।
लैंडिंग की चुनौती
पतली हवा के कारण लैंडिंग के समय रिवर्स थ्रस्ट (विपरीत दिशा में बल) पर्याप्त नहीं हो सकता है, जिससे विमान को धीमा करने में कठिनाई होती है।
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लद्दाख में क्यों बढ़ रहा है तापमान?
इस बार उत्तर भारत खासकर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में तापमान में बढ़ोतरी देखी जा रही है। हालांकि, यह इसकी शुरुआत बहुत पहले ही हो चुकी थी। दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि पिछले 30 सालों में लद्दाख में औसत तापमान बढ़ा है।
यह भी पढ़ें -काम की खबर : फ्लाइट लेट होने पर 'नाराजगी' दिखाने से नहीं चलेगा काम, DGCA के इन नियमों का उठाएं लाभइसी तरह, साल 2023 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के एक अध्ययन बताया गया कि लद्दाख में ग्लेशियरों के आकार में उल्लेखनीय कमी दर्ज की जा रही है।
दरअसल, ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान में वृद्धि हो रही है। इसके अलावा वाहनों से होने वाला उत्सर्जन लद्दाख के प्राचीन पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है। यहां निजी और सैन्य वाहन दोनों ही उत्सर्जन के कारण हैं।लद्दाख में सीमाई क्षेत्र पर चीनी आक्रमकता को देखते हुए देश की भू-रणनीतिक आवश्यकताओं के कारण सैन्य वाहनों की उपस्थिति अनिवार्य है।
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