डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव परिणाम आ गए। हरियाणा में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला है तो जम्मू-कश्मीर में आईएनडीआईए को बहुमत मिला है। हालिया विधानसभा चुनाव परिणाम देश की राजनीति के प्रमुख नेताओं के लिए बड़े संकेत हैं। आइए हम आपको बताते हैं कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव परिणाम देश के शीर्ष नेताओं के लिए क्या मायने रखते हैं...
नरेंद्र मोदी: मोदी मैजिक को मिली संजीवनी
भाजपा जब भी कोई चुनाव जीतती है तो सफलता का श्रेय पीएम नरेंद्र मोदी को जाता है, जबकि हार के कारण तलाशे जाते हैं। लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद केंद्र में भले एनडीए की सरकार बनी, लेकिन मोदी की राजनीतिक छवि कमजोर हुई थी।
हरियाणा चुनाव परिणाम संजीवनी का काम किया है। विपक्ष को संदेश गया- 'मोदी मैजिक और भाजपा का वर्चस्व अभी भी कायम है।'
जम्मू-कश्मीर चुनाव परिणाम ने प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी की छवि को और सशक्त किया है। वैश्विक स्तर पर भारत के लोकतंत्र की मजबूती और जम्मू-कश्मीर को लेकर संदेश गया है कि यह भारत का अभिन्न हिस्सा है।
अमित शाह: हार-जीत दोनों ही अहम
लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद अमित शाह की राजनीतिक प्रबंधन क्षमता पर सवाल उठने लगे थे। हरियाणा में भाजपा की जीत ने उनकी राजनीतिक क्षमता को फिर से साबित करता है। कश्मीर में भाजपा की सीटों में वृद्धि और हार दोनों के लिए शाह के लिए अहम हैं।धारा 370 हटाने के बाद राज्य को प्रभावी रूप से संभाला। फिर भी भाजपा जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने में असफल हुई। यानी कि वहां भाजपा की स्वीकार्यता अभी भी सीमित है। कश्मीर में समुदाय का भाजपा पर भरोसा अभी मजबूत नहीं हुआ है।
राहुल गांधी: सख्त चेतावनी
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 99 सीटें जीती थीं। हालांकि, यह सरकार बनाने के लिए बहुत के आंकड़े से बहुत दूर रहा। यह विधानसभा चुनाव परिणाम राहुल गांधी और कांग्रेस को चेतावनी देते हैं। नतीजों से संदेश दिया- जनता उन्हें विपक्ष का नेता मानती है, लेकिन अभी तक उन्हें सरकार चलाने के लिए तैयार नहीं समझती।भाजपा के खिलाफ माहौल तो बनाया, लेकिन पार्टी की आंतरिक गुटबाजी (हुड्डा, शैलजा, सुरजेवाला) के बीच सामंजस्य नहीं बना पाए। अब राहुल के लिए महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में नई चुनौती खड़ी हो गई है।
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उमर अब्दुल्ला: जनता के भरोसेमंद
साल 2014 में सत्ता खोने और 2019 में राज्य का विशेष दर्जा खत्म होने के बाद हुए इस चुनाव में उमर अब्दुल्ला ने शानदार वापसी की है। कठिन राजनीतिक परिस्थितियों में भी वह एक संतुलित नेता के रूप में उभरे हैं। कश्मीर की जनता ने अब्दुल्ला पर भरोसा जताया है।
महबूबा मुफ्ती: पिता के फैसला का खामियाजा
महबूबा मुफ्ती को उनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद का एक दशक पहले भाजपा संग गठबंधन करने के फैसले का खामियाजा भुगतना पड़ा। इस चुनाव में जनता ने पीडीपी को दिल्ली की करीबी पार्टी माना और महबूबा मुफ्ती की पार्टी पर भरोसा नहीं किया।
चुनाव परिणाम से संदेश मिला- घाटी में जो भी राजनीतिक पार्टी भाजपा के करीब आती है, उसका चुनाव में मतदाता गर्मजोशी से स्वागत नहीं करेंगे। महबूबा मुफ्ती के लिए यह समय पुनर्विचार का है कि दोबारा जनता का भरोसा कैसे जीता जाए।
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भूपिंदर सिंह हुड्डा: पुनर्विचार का समय
चुनाव परिणाम ने हरियाणा में 10 साल तक शासन करने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा की राजनीतिक छवि बेहद कमजोर करार दी है। हुड्डा के चलते कांग्रेस के वोट बैंक में सुधार हुआ, लेकिन कांग्रेस फिनिश लाइन से आगे नहीं बढ़ पाई। ऐसे में राज्य में फिर सरकार बनाने के सपने पर पानी गिरने के साथ हुड्डा की वापसी भी एक चुनौती बन गई है। भूपिंदर सिंह हुड्डा के लिए यह समय पुनर्विचार का है।
नायब सिंह सैनी: मजबूत नायक
हरियाणा चुनाव परिणाम में नायब सिंह सैनी एक मजबूत नायक बनकर उभरे हैं। सैनी का चेहरा गैर-जाट पिछड़ी जातियों के लिए एक प्रतीक बन गया, जिन्होंने उनकी पदोन्नति में भाजपा की प्रतिबद्धता को देखा।सैनी की लो-प्रोफाइल छवि और विवादों से दूर रहकर राज्य के विभिन्न मुद्दों को सुलझाने की कोशिश ने उन्हें एक सफल मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित किया है। हरियाणा में भाजपा की जीत ने सैनी की रणनीति और भाजपा की नीतियां सफल रहीं हैं। इसी के साथ उनके लिए नई संभावनाओं के द्वार भी खुले हैं।
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