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क्या उत्तर भारत में आने वाला है बड़ा भूकंप, इन 29 शहरों में सबसे ज़्यादा खतरा

दिल्ली के बेतरतीब और बिना किसी प्लानिंग के विकास ने इसे एक जिंदा बम जैसा बना दिया है। राज्यों और केंद्र सरकार की अलग-अलग एजेंसियों ने रिस्क को लेकर एक अध्ययन किया है।

By JP YadavEdited By: Updated: Thu, 13 Sep 2018 11:14 AM (IST)
क्या उत्तर भारत में आने वाला है बड़ा भूकंप, इन 29 शहरों में सबसे ज़्यादा खतरा
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। दिल्ली-एनसीआर सहित भारत के कई राज्यों में एक सप्ताह के दौरान दर्जनभर बार भूकंप के झटके लग चुके हैं। रविवार शाम को दिल्ली-एनसीआर में पहला झटका लगा था और फिर बुधवार सुबह जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में भूकंप के झटके महसूस किए गए। जम्मू-कश्मीर में सुबह सवा पांच बजे भूकंप के झटके लगे। रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 4.6 मापी गई। सुबह 5:43 बजे हरियाणा में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए। 3.1 तीव्रता वाले इस भूकंप का केंद्र झज्जर था। इस बीच बिहार, पश्चिम बंगाल समेत उत्तर-पूर्व के कई राज्यों में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए।

वैज्ञानिकों की मानें तो पिछले एक सप्ताह के दौरान भूकंप के लगातार झटके काफी बड़ा संकेत दे रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली सिस्मिक जोन 4 में है। यहां 6 से अधिक तीव्रता का भूकंप तबाही मचा सकता है। दिल्ली चारों तरफ भूगर्भीय फाल्ट (भ्रंश) से घिरी हुई है, इसलिए बड़ा भूकंप आने से यहां बहुत ज्यादा नुकसान हो सकता है। 

दिल्ली समेत देश के 29 शहरों में भूकंप का ज्यादा खतरा
यहां पर बता दें कि भारत के 29 शहर भूकंप के साये में हैं। नेशनल सेंटर फोर सिसमोलॉजी (एनसीएस) के मुताबिक इन 29 शहरों पर भूकंप का गंभीर खतरा है। इन शहरों में दिल्ली समेत नौ राज्यों की राजधानियां भी हैं। ये ज़्यादातर शहर हिमालय जोन से लगे हैं। हिमालय से लगे शहरों का दुनिया के उन शहरों में शुमार हैं, जहां भूकंप का सबसे ज़्यादा खतरा रहता है। दिल्ली, पटना, श्रीनगर, कोहिमा, पुडुच्चेरी, गुवाहाटी, गंगटोक, शिमला, देहरादून, इम्फाल और चंडीगढ़ भूकंपीय क्षेत्र के ज़ोन चार और पांच में हैं। द ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (बीआईएस) ने भारत में भूकंपीय ज़ोन दो से पांच के बीच का अंतर बताया है। 

जोन-3  अधिक तीव्रता वाले भूकंप महसूस किए जा सकते हैं।  ऐसे भूकंप से इमारतों में हल्‍का नुकसान हो सकता है। इसे सामान्य तबाही के खतरे वाले क्षेत्र की श्रेणी में रखा गया है। इस जोन में केरल, गोवा, लक्षद्वीप समूह, उत्तर प्रदेश के बाकी हिस्से, गुजरात और पश्चिम बंगाल, पंजाब के हिस्से, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक शामिल हैं। सामान्य तीव्रता वाले इस जोन में रिक्‍टर पैमाने पर 7 तीव्रता तक का भूकंप आ सकता है।

 जोन-2 भूकंप की दृष्टि से सबसे कम सक्रिय क्षेत्र है, लेकिन इसमें आने वाले भूकंप से फर्नीचर हिल सकते हैं। जोन-2 में देश का बाकी हिस्सा शामिल है, कम तीव्रता वाले इस जोन में 6 या उससे कम तीव्रता वाले भूकंप आ सकते हैं। जोन 5 देश के अधिकतम जोखिम का जोन है। भूकंपीय दृष्टि से सबसे ज्यादा सक्रिय क्षेत्र माना जाता है। इसके दायरे में सबसे अधिक खतरे वाला क्षेत्र आता है जिसमें रिक्‍टर पैमाने पर 8 से 9 या उससे ज्यादा तीव्रता के भूकंप आते हैं। इसमें रेल पटरियां मुड़ जाती हैं और सड़कों को नुकसान पहुंचता है और जमीन में दरारें पड़ जाती हैं और भूमिगत पाइपें फट जाती हैं। अधिक तीव्रता के भूकंप में नदियों का मार्ग तक बदलने की संभावना रहती है। इस जोन में मुख्‍य तौर पर पूर्वोत्तर भारत, जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्से, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात में कच्छ का रण, उत्तर बिहार का कुछ हिस्सा और अंडमान निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं।

भूकंप से असुरक्षित हैं दिल्ली के ये इलाके
एक शोध में 1200 बोरवेल और फ्लाईओवर का डेटा लेकर अध्ययन किया गया है। इसमें पाया गया है कि रोहिणी, पीतमपुरा, जहांगीरपुरी, राजौरी गार्डन, पंजाबी बाग, निर्माण विहार, सीलमपुर, मयूर विहार, लक्ष्मी नगर, मुखर्जी नगर, कश्मीरी गेट, तिमारपुर, नेहरू विहार, नई दिल्ली का पूरा इलाका बड़ेे भूकंप नहीं सह सकता।

दिल्ली ही नहीं पूरा देश खतरे में
गौरतलब है कि वर्ष, 2015 में आई एक रिपोर्ट में भारत के एक मशहूर भूकंप जानकार और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) एनडीएमए के सदस्य डॉ. हर्ष गुप्ता ने बताया था कि भारत के 344 शहर और नगर भूकंप के लिहाज से हाई रिस्क जोन-5 में रहते हैं। हर्ष गुप्ता के मुताबिक, अगर यहां 9 रिक्टर स्केल का कोई भूकंप आ जाए तो यह हिरोशिमा पर गिरे 27 हजार बमों के बराबर होगा। यही नहीं, इसके बाद सालों तक ऑफ्टर शॉक भी आते रहेंगे।

भारत में सबसे ज्यादा खतरा
इंडियन प्लेट हिमालय से लेकर अंटार्कटिक तक फैली है। यह पाकिस्तान बार्डर से सिर्फ टच करती है। यह हिमालय के दक्षिण में है, जबकि यूरेशियन प्लेट हिमालय के उत्तर में है। इंडियन प्लेट उत्तर-पूर्व दिशा में, यूरेशियन प्लेट जिसमें चीन आदि बसे हैं कि तरफ बढ़ रही है। ऐसे में यदि ये प्लेटें टकराती हैं तो भूकंप का केंद्र भारत में होगा। भूंकप के खतरे के हिसाब से भारत को चार जोन में विभाजित किया गया है। जोन दो-दक्षिण भारतीय क्षेत्र जो सबसे कम खतरे वाले हैं। जोन तीन-मध्य भारत, जोन चार-दिल्ली समेत उत्तर भारत का तराई क्षेत्र, जोन पांच-हिमालय क्षेत्र और पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा कच्छ। जोन पांच सबसे ज्यादा खतरे वाले हैं।

बता दें कि भूकंपीय क्षेत्रों के हिसाब से देश को चार जोन में बांटा गया है और दिल्ली भूकंपीय क्षेत्रों के जोन 4 में स्थित है। जोन-4 में होने की वजह से दिल्ली भूकंप का एक भी भारी झटका बर्दाश्त नहीं कर सकती। वैज्ञानिकों ने पहले ही अंदेशा जता दिया था कि पृथ्वी में हो रहे बदलाव के चलते अगले कुछ सालों में भयानक भूकंप आ सकते हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो दिल्ली हिमालय के निकट है जो भारत और यूरेशिया जैसी टेक्टॉनिक प्लेटों के मिलने से बना है। ऐसे में धरती के भीतर की इन प्लेटों में होने वाली हलचल के चलते यूपी के कानपुर और लखनऊ के साथ दिल्ली के तकरीबन सभी इलाकों में भूकंप का खतरा सबसे ज्यादा है।

...आ सकता है बड़ा भूकंप
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एससी राय का कहना है कि ऐसा लगता है कि अगले 50 साल में बड़ा भूकंप आ सकता है, क्योंकि हिमालयन प्लेट तिब्बतन प्लेट में प्रति वर्ष 45 मिमी घुस रही है। यह खतरे का संकेत है। धरती पर कुल छह प्लेट हैं, जो हमेशा चलती हैं। जब भी आपस में टकराती हैं, तो ऊर्जा निकलने से भूकंप आता है।

... इसलिए दिल्ली-एनसीआर को है बड़ा खतरा
वहीं, डीयू के भूविज्ञान विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सीएस दुबे का कहना है कि दिल्ली चारों तरफ से फाल्ट से जुड़ी है और किसी भी फाल्ट में होने वाली हलचल इसको प्रभावित कर सकती है। दिल्ली-देहरादून फाल्ट इसे हिमालय से जोड़ता है। इसलिए हिमालय क्षेत्र में होने वाली हलचल का सीधा असर राजधानी पर पड़ता है। इसके अलावा दिल्ली सरगोधा रिज में भी भूकंप की प्रबल संभावनाएं हैं, क्योंकि 1720 में इस रिज में 6.7 क्षमता का भूकंप आया था। इसके कारण दिल्ली और उसके समीपवर्ती इलाकों में भारी तबाही हुई थी। पिछले लगभग 300 सालों से यह रिज शांत है। पूर्व के शोध से पता चला है कि जो इलाका भूगर्भीय हलचलों से जितनी देर शांत है, वहां पर तनाव उतना ही बढ़ता है और कभी भी वहां भूकंप भारी तबाही ला सकता है। दिल्ली में दो अन्य रोहतक -फरीदाबाद तथा दिल्ली-आगरा फाल्ट हैं।

दिल्ली में बड़े भूकंप का खतरा बरकरार
नोएडा आपदा प्रबंधन सेल के प्रमुख रहे विशेषज्ञ डॉ कुमार राका के मुताबिक, धरती के नीेचे एक प्लेट में कुछ होता है तो और प्लेटें भी प्रभावित होती हैं। सिस्मिक जोन-4 में होने के चलते दिल्ली-एनसीआर में बड़ा भूकंप तय है। ये कब आएगा इसका केवल अनुमान लगाया जा सकता है। बावजूद इससे निपटने के लिए हमारी कोई तैयारी नहीं है। प्रकृति लगातार चेतावनी  दे रही है।

कम नुकसान की तैयारी कर सकते हैं, रोक नहीं सकते
आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ नकुल तरुण के अनुसार भूकंप की पूर्व चेतावनी को लेकर अब तक कोई सटीक तकनीक विकसित नहीं हो सकी है। भूकंप आने से कुछ मिनट पहले इसका पता चलता है। इन चंद मिनट में पूरे देश या प्रभावित होने वाले इलाके को अलर्ट करने की कोई तकनीक आज तक विकसित नहीं हुई। भूकंप रोधी इमारतों के निर्माण या बन चुकी इमारतों को भूकंप रोधी बनाने को लेकर भी सरकारी अथवा व्यक्तिगत स्तर पर कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। न ही लोगों में भूकंप रोधी घर के प्रति जागरूकता है। हम इस खतरे के बारे में तभी बात करते हैं, जब झटके लगते हैं और अगले ही पल इसे भूल जाते हैं। भूकंप से बचाव के लिए लोगों को जागरूक और प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। विशेष तौर पर बच्चों को। भूकंप का झटका लगने पर हमें अपनी जान बचाने के लिए तकरीबन चार मिनट का मौका मिलता है। कोई भी इमारत भूकंप आने पर गिरने में लगभग इतना समय लेती है। अगर सही प्रशिक्षण दिया गया हो तो इतना समय जान बचाने के लिए पर्याप्त है।

दक्षिणी दिल्ली में होगा कम नुकसान

दक्षिणी दिल्ली में पथरीला इलाका होने के कारण वहां इस क्षमता का भूकंप आने पर भारी नुकसान होने की संभावना कम है।

दिल्ली के 80 फीसद लोग मारे जाएंगे
दिल्ली में रहने वाले टॉउन प्लानर सुधीर वोरा ने साल 2015 में नेपाल भूकंप के बाद कहा था कि 6 रिक्टर स्केल का भूकंप भारत को 70 फीसद तबाह कर सकता है। उन्होंने आगे कहा था कि अगर इस तीव्रता का भूकंप दिल्ली में आता है तो मुझे लगता है दिल्ली की 80 लाख जनसंख्या का सफाया हो जाएगा।

क्यों है दिल्ली को ज्यादा खतरा
दिल्ली के बेतरतीब और बिना किसी प्लानिंग के विकास ने इसे एक जिंदा बम जैसा बना दिया है। राज्यों और केंद्र सरकार की अलग-अलग एजेंसियों ने रिस्क को लेकर एक अध्ययन किया है। इस अध्ययन के अनुसार दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों की मिट्टी अलग है। यमुना पार का (पूर्वी) इलाका रेतीली जमीन पर बसा है और यह हाईराइज बिल्डिंगों के लिए मुफीद नहीं है। जबकि मध्य दिल्ली के रिज इलाके को काफी हद तक सुरक्षित माना जाता है।

श्मशान बन जाएगी दिल्ली
दिल्ली सरकार ने अपनी वेबसाइट http://delhi.gov.in पर अनऑथराइज कॉलोनियों की एक लिस्ट अपलोड की हुई है। वेबसाइट के अनुसार दिल्ली में करीब 895 अनधिकृत कॉलोनियां हैं। वेबसाइट पर इन कॉलोनियों के नाम के साथ ही उनका मैप भी दिया गया है। जैसा कि सभी जानते हैं, इन अनधिकृत कॉलोनियों में न तो मैप पास होते हैं और न ही लोग ऐसा करने की कोशिश ही करते हैं। ज्यादातर निर्माण भी बेतरतीब और बिना पिलर के होता है। यहां कि ज्यादातर बिल्डिंगें इंटों पर खड़ी हैं और यही बात चिंता का विषय है। जानकार मानते हैं कि 6 रिक्टर स्केल का भूकंप भी दिल्ली को श्मशान में बदल सकता है।

कब आया था दिल्ली में सबसे बड़ा भूकंप
गौरतलब है कि दिल्ली में 20वीं सदी में 27 जुलाई, 1960 को 5.6 की तीव्रता का बड़ा भूकंप आया था। हालांकि, इसकी वजह से दिल्ली की कुछ ही इमारतों को नुकसान हुआ था, लेकिन तब दिल्ली की जनसंख्या कम थी। वहीं, 80 और 90 के दशक के बाद से दिल्ली की आबादी तेजी से बढ़ी है। अब दिल्ली की आबादी दो करोड़ के आसपास है। ऐसे में आवास की मांग के मद्देनजर पिछले तीन दशक के दौरान दिल्ली में नियमों की अनदेखी करते हुए अवैध निर्माण हुआ है। एक रिपोर्ट में दिल्ली की 80 फीसद इमारतों को असुरक्षित माना गया है। जाहिर है ऐसे में बड़ी तीव्रता का भूकंप आया तो दिल्ली की बड़ी आबादी इससे प्रभावित होगी।

खतरनाक हैं दिल्ली की 70-80% इमारतें
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि दिल्ली में भूकंप के साथ-साथ कमज़ोर इमारतों से भी खतरा है। एक अनुमान के मुताबिक, दिल्ली की 70-80% इमारतें भूकंप का औसत से बड़ा झटका झेलने के लिहाज से नहीं बनी हैं। वहीं, अतिक्रमण कर बनाई गई इमारतों की स्थिति और भी बदतर है।

क्यों आता है भूकंप
बता दें कि पूरी धरती 12 टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है। इसके नीचे तरल पदार्थ लावा है। ये प्लेटें इसी लावे पर तैर रही हैं और इनके टकराने से ऊर्जा निकलती है, जिसे भूकंप कहा जाता है। ये प्लेंटे बेहद धीरे-धीरे घूमती रहती हैं। इस प्रकार ये हर साल 4-5 मिमी अपने स्थान से खिसक जाती हैं। कोई प्लेट दूसरी प्लेट के निकट जाती है तो कोई दूर हो जाती है। ऐसे में कभी-कभी ये टकरा भी जाती हैं। भूकंप का केंद्र वह स्थान होता है जिसके ठीक नीचे प्लेटों में हलचल से भूगर्भीय ऊर्जा निकलती है। इस स्थान पर भूकंप का कंपन ज्यादा होता है। कंपन की आवृत्ति ज्यों-ज्यों दूर होती जाती हैं, इसका प्रभाव कम होता जाता है। फिर भी यदि रिक्टर स्केल पर 7 या इससे अधिक की तीव्रता वाला भूकंप है तो आसपास के 40 किमी के दायरे में झटका तेज होता है। लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि भूकंपीय आवृत्ति ऊपर की तरफ है या दायरे में। यदि कंपन की आवृत्ति ऊपर को है तो कम क्षेत्र प्रभावित होगा।

रिक्टर स्केल पर 5-5.9 के भूकंप मध्यम दर्जे के होते हैं तथा प्रतिवर्ष 800 झटके लगते हैं। जबकि 6-6.9 तीव्रता के तक के भूकंप बड़े माने जाते हैं तथा साल में 120 बार आते हैं। 7-7.9 तीव्रता के भूकंप साल में 18 आते हैं। जबकि 8-8.9 तीव्रता के भूकंप साल में एक आ सकता है। इससे बड़े भूकंप 20 साल में एक बार आने की आशंका रहती है। रिक्टर स्केल पर आमतौर पर 5 तक की तीव्रता वाले भूकंप खतरनाक नहीं होते हैं। लेकिन यह क्षेत्र की संरचना पर निर्भर करता है। यदि भूकंप का केंद्र नदी का तट पर हो और वहां भूकंपरोधी तकनीक के बगैर ऊंची इमारतें बनी हों तो 5 की तीव्रता वाला भूकंप भी खतरनाक हो सकता है।

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