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नवोन्मेष: देश में परिवहन की सूरत बदल देगी हाईपरलूप तकनीक, IIT मद्रास को पॉड बनाने में मिली सफलता

शोध व नवोन्मेषों के लिए ख्यात संस्थान में हाईपरलूप की स्वदेशी तकनीक तैयार की जा रही है। हाईपरलूप तकनीक में खंभों पर बनी ट्यूब में पॉड (कोचनुमा आकृति) अत्यंत तेज गति से चलते हैं। इसके पहले चरण में संस्थान की ‘आविष्कार’ टीम द्वारा पॉड तैयार करने में सफलता प्राप्त की जा चुकी है। अब दूसरे चरण में 500 मीटर की ट्यूब में तकनीक का परीक्षण किया जाना है।

By Jagran NewsEdited By: Yogesh SahuUpdated: Mon, 03 Jul 2023 07:17 PM (IST)
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नवोन्मेष: देश में परिवहन की सूरत बदल देगी हाईपरलूप तकनीक, IIT मद्रास को पॉड बनाने में मिली सफलता

रुमनी घोष, नई दिल्ली। सार्वजनिक परिवहन को अत्याधुनिक बनाने के साथ तेज गति देने पर देश में बीते कुछ समय से काफी नवोन्मेष हो रहा है। यात्री ट्रेन की गति बढ़ाने के साथ मालगाड़ी की रफ्तार भी तेज की जा रही है।

शहरों के बीच रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम जैसे नए परिवहन माध्यम तैयार हो चुके हैं। इसी क्रम में परिवहन का ‘भविष्य’ तैयार करने में आईआईटी मद्रास ने तेज कदम बढ़ाए हैं।

शोध व नवोन्मेषों के लिए ख्यात संस्थान में हाईपरलूप की स्वदेशी तकनीक तैयार की जा रही है। हाईपरलूप तकनीक में खंभों पर बनी ट्यूब में पॉड (कोचनुमा आकृति) अत्यंत तेज गति से चलते हैं।

इसके पहले चरण में संस्थान की ‘आविष्कार’ टीम द्वारा पॉड तैयार करने में सफलता प्राप्त की जा चुकी है। अब बेहद अहम दूसरे चरण में 500 मीटर की ट्यूब में तकनीक का परीक्षण किया जाना है। इस तकनीक के लिए आईआईटी मद्रास को अब तक तीन पेटेंट मिल चुके हैं।

निजी कंपनी स्पेसएक्स के माध्यम से अंतरिक्ष अभियान को नया रूप देने वाले एलन मस्क ने कुछ वर्ष पहले हाईपरलूप परिवहन तकनीक के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास आरंभ किया था।

इसके लिए वर्ष 2019 में आयोजित प्रतियोगिता में आईआईटी मद्रास की आविष्कार टीम को फाइनलिस्ट्स में स्थान मिला और स्पेस एक्स के मुख्यालय में इसके बनाए पॉड को सराहना मिली।

शुरुआत में आईआईटी मद्रास की टीम विश्व में 58वें स्थान पर थी, जो अब अलग-अलग श्रेणी में शीर्ष पांच तक की सफल यात्रा तय कर चुकी है।

आविष्कार टीम के असिस्टेंट प्रोजेक्ट लीडर रहे यश गौतम, भारत भावसार और विभोर जैन बताते हैं कि पॉड को वैश्विक स्तर की प्रतियोगिता में जेलरोस हाईपरलूप द्वारा 'मोस्ट स्केलेबल डिजाइन' का पुरस्कार दिया जा चुका है।

यही नहीं, मैकेनिकल क्षेत्र में आईआईटी मद्रास में बना पॉड विश्व के शीर्ष पांच प्रोजेक्ट में से चुना गया। पूरी तरह स्वदेशी आविष्कार 5.0 नामक पॉड यूरोपियन हाईपरलूप वीक-2022 में तीन श्रेणियों (इलेक्ट्रिकल सबसिस्टम, ट्रैक्शन सबसिस्टम और द कंप्लीट पॉड कैटेगरी) में भी वैश्विक शीर्ष पांच में स्थान बनाने में सफल रहा है।

हाईपरलूप तकनीक को विकसित कर रही आविष्कार टीम में आईआईटी मद्रास के प्राध्यापकों के निर्देशन में 11 विभागों के 77 विद्यार्थियों की टीम निरंतर कार्य करती है।

हर वर्ष इस टीम में नए साथी शामिल होते रहते हैं, ताकि विचारों में नवीनता बनी रहे। इसे यात्री और कार्गो दोनों तरह के परिवहन के लिए विकसित किया जा रहा है।

इस नई परिवहन तकनीक की जरूरत और संभावनाओं को देखते हुए भारतीय रेलवे ने आईआईटी मद्रास के साथ तकनीक के विकास के लिए वित्तीय मदद उपलब्ध कराने का समझौता किया है।

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव आविष्कार टीम से मिल भी चुके हैं। कुछ ही समय पहले टाटा स्टील ने ट्यूब के विकास के लिए आईआईटी मद्रास की इस परियोजना से जुड़ने का फैसला किया है।

इसके अलावा हाईपरलूप तकनीक पर कार्य कर रहा टीयूटीआर स्टार्टअप भी इसमें साझीदार होगा। टीयूटीआर यूरोप में हाईपरलूप तकनीक विकसित कर रहे स्टार्टअप के साथ भी जुड़ा हुआ है।

आईआईटी मद्रास में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर और नेशनल कंबशचन रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रमुख प्रो. सत्य चक्रवर्ती भी इस परियोजना से जुड़े हैं।

वह कहते हैं कि इसे फिफ्थ जेनरेशन ट्रांसपोर्ट सिस्टम कहा जाता है। आईआईटी मद्रास में हम इसे स्वदेशी तरीके से विकसित करने पर तेजी से काम कर रहे हैं।

मैं कुल छह परियोजनाओं पर कार्य कर रहा हूं, जिनमें हाईपरलूप सबसे बड़ी और लंबी अवधि की परियोजना है।

ट्यूब सबसे अहम हिस्सा

आविष्कार टीम की कमान संभालने वाले मैकेनिकल इंजीनियरिंग छात्र श्रिड सुरेश बताते हैं कि इस तकनीक में ट्यूब सबसे अहम हिस्सा है।

इसके भीतर पॉड तेज गति से दौड़ सके, इसके लिए तीन चीजों का परीक्षण बहुत महत्वपूर्ण है- प्रोपलशन (गति देना), लेविटेशन (सतह से स्पर्श के बगैर चलना) और वैक्यूम टेस्ट।

एक मीटर गोलाई वाले 3.6 मीटर लंबे ट्यूब में परीक्षण सफल रहा है। अब संस्थान के दूसरे कैंपस तैय्यूर में 500 मीटर ट्रैक में परीक्षण किया जाएगा।

उद्देश्य कम ऊर्जा में चलने वाला किफायती ट्यूब तैयार करना है। इसके तीसरे चरण में वर्ष 2028 से 2030 के बीच चेन्नई से बेंगलुरु के बीच 340 किमी लंबे ट्रैक पर परीक्षण किया जाएगा।

इसकी अनुमानित लागत 9,100 करोड़ रुपये है। ट्यूब के भीतर पॉड करीब एक हजार किमी प्रतिघंटा की गति से दौड़ता है।

भारत जैसे अधिक जनसंख्या वाले देश में यह स्वदेशी मॉडल परिवहन क्षेत्र की तस्वीर बदल देगा। रेलवे और टाटा स्टील जैसी कंपनियां इसमें साझीदार बनी हैं। कई और कंपनियां भी साथ आ रही हैं। इसलिए परियोजना के लिए फंडिंग की कोई समस्या नहीं है। -प्रो सत्य चक्रवर्ती, एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी मद्रास