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Time Capsule: इंदिरा गांधी ने भी लालकिले में जमीन से 32 फीट नीचे रखा था टाइम कैप्सूल

कांग्रेस-जनता पार्टी में सियासी खींचतान का प्रतीक बने कैप्सूल को सत्ता बदलते ही बाहर निकाल दिया गया था।

By Manish PandeyEdited By: Updated: Mon, 27 Jul 2020 03:06 PM (IST)
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Time Capsule: इंदिरा गांधी ने भी लालकिले में जमीन से 32 फीट नीचे रखा था टाइम कैप्सूल

नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। अयोध्या में राम जन्मभूमि के इतिहास को सहेजने के उद्देश्य से मंदिर निर्माण स्थल पर जमीन में करीब 200 फीट नीचे राम मंदिर ट्रस्ट द्वारा टाइम कैप्सूल रखे जाने की तैयारियों ने 15 अगस्त 1973 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लालकिला परिसर में जमीन में 32 फीट नीचे रखे गए टाइम कैप्सूल की यादें ताजा कर दी हैं। स्वतंत्रता दिवस की 26वीं वर्षगांठ के मौके पर इंदिरा गांधी द्वारा भूमि में दबाए गए इस टाइम कैप्सूल का नाम कालपात्र रखा गया था और यह उस दौर में सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्ष के बीच सियासी खींचतान का प्रतीक बन गया था।

उस दौरान टाइम कैप्सूल को लेकर सियासत इस कदर चरम पर थी कि चुनाव में विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाया था। चुनावी प्रचार के दौरान भी विपक्षी नेताओं ने वादा किया था कि वे सत्ता में आए तो कालपात्र को जमीन से निकालेंगे और इसकी सच्चाई जनता के सामने पेश करेंगे। वर्ष 1977 में कांग्रेस को केंद्र की सत्ता से बाहर कर मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। सरकार गठन के कुछ दिनों बाद टाइम कैप्सूल को निकाला गया, लेकिन जनता पार्टी की सरकार ने इस बात को उजागर नहीं किया कि इसके अंदर क्या था। तब से लेकर आज तक यह टाइम कैप्सूल रहस्य बना हुआ है। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उस समय जहां टाइम कैप्सूल को आजादी के बाद के 25 वर्षों में देश की उपलब्धि और संघर्ष की कहानी की पाण्डुलिपि बताया था, वहीं विपक्ष का आरोप था कि इंदिरा गांधी ने टाइम कैप्सूल में अपना और नेहरू-गांधी परिवार का महिमामंडन किया है।

दस हजार शब्दों में था इतिहास

वर्ष 1973 में दिल्ली शहर युवक कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जय प्रकाश अग्रवाल बताते हैं कि उस समय कांग्रेस सरकार ने तांबे से निर्मित टाइम कैप्सूल तैयार कराया था। इसमें रखे गए दस्तावेज में स्वतंत्र भारत के 25 वर्षों की उपलब्धि व संघर्ष का इतिहास दस हजार शब्दों में दर्ज किया गया था। अग्रवाल ने बताया कि इंदिरा सरकार ने कैप्सूल को इस तरह से तैयार कराया था कि वह जमीन के भीतर एक हजार साल तक सुरक्षित रहे। सरकार का मानना था कि जब यह कैप्सूल जमीन से निकाला जाएगा तो इसमें रखे दस्तावेज युवा पीढ़ी को उनके गौरवशाली देश के इतिहास से परिचित करवाएंगे। उन्होंने बताया कि टाइम कैप्सूल को जमीन में डालने में कुल आठ हजार रुपये का खर्च आया था, जबकि मोरारजी देसाई सरकार द्वारा इसे निकाले जाने में 58 हजार रुपये खर्च हुए थे। हालांकि, दोबारा इसे जमीन के नीचे नहीं डाला गया और न ही यह तथ्य कभी सार्वजनिक किया गया कि इसके अंदर क्या था।

क्या है टाइम कैप्सूल

टाइम कैप्सूल धातु के एक कंटेनर की तरह होता है, जिसे विशिष्ट तरीके से बनाया जाता है। टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम का सामना करने में सक्षम होता है। उसे जमीन के अंदर काफी गहराई में रखा जाता है। काफी गहराई में होने के बावजूद भी न तो उसको कोई नुकसान पहुंचता है और न ही वह सड़ता-गलता है। टाइम कैप्सूल को दफनाने का मकसद किसी समाज, काल या देश के इतिहास को सुरक्षित रखना होता है, ताकि भविष्य की पीढ़ी को किसी खास युग, समाज और देश के बारे में जानने में मदद मिले।