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कहीं आपका बच्चा ऑनलाइन गेमिंग की आड़ में जुए की जाल में तो नहीं फंस रहा, ऐसे रहे सतर्क

ऑनलाइन गेमिंग और पैसे कमाने के प्रलोभन की आड़ में जुए को प्रोत्‍साहित करना बच्चों-किशोरों की जिंदगी बर्बाद कर सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sat, 08 Aug 2020 10:11 PM (IST)
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कहीं आपका बच्चा ऑनलाइन गेमिंग की आड़ में जुए की जाल में तो नहीं फंस रहा, ऐसे रहे सतर्क
अमित निधि। बच्‍चों-किशोरों में ऑनलाइन गेमिंग के प्रति जबरदस्त क्रेज होता है, लेकिन गेम्स में पैसे जीतने जैसी बात शामिल हो जाए, तो गेम गैंबलिंग यानी जुए में बदल जाता है और इन दिनों इस तरह की गैंबलिंग की बाढ़ आई हुई है। ऑनलाइन गेमिंग और पैसे कमाने के प्रलोभन की आड़ में जुए को प्रोत्‍साहित करना बच्चों-किशोरों की जिंदगी बर्बाद कर सकता है। आइए जानें, कैसे इनकी चपेट में आने से बचा जा सकता है...

आज के दौर में अगर आप चाहें भी तो बच्चों को पूरी तरह से ऑनलाइन गेम से दूर नहीं रख सकते। कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान बच्चों का झुकाव इन गेम्स के प्रति और ज्यादा बढ़ा है, लेकिन अब खतरा सिर्फ ऑनलाइन गेमिंग तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी आड़ में गैंबलिंग यानी जुए का गेम भी खेला जा रहा है, जो किशोरों की जिंदगी को बर्बाद कर सकता है। इसके लिए लूडो, कैंडी क्रश, तीन पत्ती, पोकर आदि जैसे गेम्स की मदद ली जा रही है। आप सभी ने टीवी पर भी इन्‍हें प्रचारित-प्रसारित करने वाले विज्ञापन जरूर देखे होंगे। इस तरह के गेम्स को प्रोत्साहित करने के आरोप में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली और एक्ट्रेस तमन्ना भाटिया के खिलाफ पिछले दिनों मद्रास हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें ऑनलाइन जुए (गैंबलिंग) को बैन करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है। इतना ही नहीं, गैंबलिंग की श्रेणी में आने वाले ऑनलाइन गैंबलिंग गेम्स की तुलना ब्लू व्हेल गेम तक से की जा रही है, जिसके कारण कई किशोरों-युवाओं की जान चली गई थी।

गेम को न बदलें गैंबलिंग में: ऑनलाइन गेमिंग का क्रेज केवल बच्चों-किशोरों में ही नहीं, बल्कि बड़ों में भी खूब देखा जा रहा है। हर वर्ग के हिसाब से गेमिंग एप्स और सॉफ्टवेयर्स भी मौजूद हैं, लेकिन देश-दुनिया की कुछ कंपनियां अब ऑनलाइन गेमिंग की आड़ में युवाओं को गैंबलिंग के जाल में भी फंसाने लगी हैं। किशोर-युवा भी इसमें आसानी से फंस जाते हैं, क्योंकि उन्हें गेम में पैसे जीतने का मौका मिल जाता है। गेमिंग के दौरान जीतने पर गिफ्ट, नगद धनराशि के साथ दूसरे तरह के ऑफर्स भी दिए जाते हैं। इन गेम्स के चक्कर में फंस कर युवा न सिर्फ अपना कीमती वक्त, बल्कि पैसा भी बर्बाद कर रहे हैं। पिछले दिनों चेन्नई के एक युवक ने ऑनलाइन जुए के लिए उधार में लिए पैसे न चुकाने पर आत्महत्या कर ली। इस तरह की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। अधिकतर गेम्स में व्यूइंग रूम एक्सपीरिएंस के साथ ऑनलाइन प्लेयर्स के साथ खेलने की सुविधा होती है, जिसमें लिंक को फ्रेंड्स आदि को शेयर कर गेम के परिणाम पर सट्टा लगा सकते हैं। हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने ऑनलाइन गेमिंग को नियंत्रित करने के लिए कानून की जरूरत पर प्रकाश डाला था। बेंच ने कहा था कि युवाओं के बीच ऑनलाइन गेमिंग या जुए की लत परिवारों को वित्तीय क्षति पहुंचा रही है। गूगल प्ले स्टोर पर भी ऑनलाइन गैंबलिंग से जुड़े बहुत सारे एप्स मौजूद हैं। ऐसे में अभिभावकों को बहुत ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।

न पड़ जाए लत: अभी जब स्कूल-कॉलेज बंद हैं और ऑनलाइन चीजों को ज्यादा बढ़ावा दिया जा रहा है, ऐसे में बच्चों को टेक्नोलॉजी/मोबाइल से पूरी तरह अलग भी नहीं रखा जा सकता है, लेकिन बच्चे छोटे हैं, तो पैरेंट्स को यह तय करना होगा कि वे कितनी देर तक मोबाइल पर गेम खेले या फिर मोबाइल देखें, कौन-सा गेम खेलें और कौन-सा नहीं। वैसे, अब बहुत सारे बच्चों को आउटडोर गेम्स की तुलना में ऑनलाइन गेम्स ज्यादा पसंद आते हैं। यहां पर गेमिंग के दौरान पल-पल बढ़ता रोमांच और आकर्षक थीम के साथ वास्तविक लगते म्यूजिक उन्हें बांधे रखते हैं। धीरे-धीरे बच्चों को ऑनलाइन गेम्स की लत पड़ने लग जाती है, लेकिन ऐसे ऑनलाइन गेम्स, जिनमें मल्टीप्लेयर्स या फिर ऑनलाइन प्लेयर्स के साथ खेलने की सुविधा होती है, उसे लेकर बच्चों को जागरूक करने की जरूरत है। मल्टीप्लेयर गेम्स में दुनियाभर के लोगों के साथ कनेक्ट होकर गेम खेला जा सकता है, लेकिन इसमें फेक आइडेंटिटी के साथ बहुत सारे प्लेयर मौजूद होते हैं, जिनका काम बच्चों-किशोरों को जाल में फंसाना होता है। ये बच्चों को ऑनलाइन गैंबलिंग के लिए उकसा सकते हैं, उन्‍हें ब्लैकमेल कर सकते हैं, उनकी फोटो मांग सकते हैं आदि।

तैयार करें सेफ प्लेस: स्‍कूल बंद होने से बच्चों की ऑनलाइन एक्टिविटीज इन दिनों काफी बढ़ गई हैं, लेकिन हो सकता है बच्चे और किशोर ऑनलाइन सेफ्टी के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते हों, लेकिन पैरेंट्स के लिए आज के दौर में इससे अवेयर रहना बहुत जरूरी है। आजकल हजारों की संख्या में पॉपुलर वीडियो गेम्स, गेमिंग एप्स आदि मौजूद हैं। वे किस साइट पर जा रहे हैं और किस एप्स पर विजिट कर रहे हैं, उसकी जानकारी पैरेंट्स को होनी चाहिए। ऑनलाइन गेमिंग बच्चों के लिए फन का एक माध्यम हो सकता है, लेकिन इसमें में सेफ्टी से जुड़े पहलू भी हैं। फिशिंग, क्रेडिट कार्ड थेफ्ट, आइडेंडिटी थेफ्ट, कंप्यूटर वायरस, साइबर बुलिंग आदि का खतरा भी हमेशा बना रहता है। ऐसी स्थिति में पैरेंट्स की जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है कि बच्चों को गेम खेलने की परमिशन दे रहे हैं, तो उनके लिए पहले सेफ प्लेस भी तैयार करें, जैसे कि डिवाइस के साथ किड्स मोड का इस्तेमाल, पैरेंटल टूल्स, एंटीवायरस टूल्स आदि। साथ ही, बच्चों को यह बात भी बतानी चाहिए कि किसी भी तरह के लिंक को ओपन न करें, क्योंकि फिशिंग और लिंक बेस्ड स्कैम आजकल काफी सामान्य हो चुके हैं।

गेमिंग प्रोफाइल के दौरान रहें सतर्क: पीआइआइ यानी पसर्नल आइडेंटिफिशन इंफॉर्मेशन वह डाटा होता है, जिसकी मदद से आपको पहचाना जा सकता है। इसमें आपका पूरा नाम, उम्र, ईमेल एड्रेस, क्रेडिट कार्ड डिटेल्स आदि हो सकते हैं। साइबर क्रिमिनल्स पीआइआइ को डार्क वेब पर सेल कर सकते हैं या फिर इसका इस्तेमाल चोरी के लिए भी किया जा सकता है। ऐसे में पैरेंट्स को चाहिए कि बच्चों को उन गेम्स से दूर रखें, जिनमें प्रोफाइल बनाकर खेलने की जरूरत पड़ती है। कई गेम्स में चैट की सुविधा होती है, जिसमें मलिशस लिंक शेयर किया जा सकता है, जिसे ओपन करने से बचना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चे गेमिंग के दौरान वास्तविक नाम का इस्तेमाल न करें, आइपी ए़ड्रेस शेयर न करें और न ही किसी प्रलोभन में आकर पर्सनल इंफॉर्मेशन साझा करें। गेम पर प्रोफाइल तैयार करने के दौरान रियल प्रोफाइल पिक्चर लगाने से भी बचना चाहिए। ऑनलाइन गेमिंग को लेकर बच्चों को जागरूक करें कि उनके लिए कौन-सा गेम सही है, क्योंकि बहुत सारे गेम्स स्किल से जुड़े हुए भी हैं, जो यूजफुल हो सकते हैं। अगर ऑनलाइन एक्टिविटीज के दौरान कुछ संदेहास्पद दिखे तो उसके बारे में पैरेंट्स की जरूर बताना चाहिए।

पैरेंटल टूल्स हो सकते हैं यूजफुल

बच्चे मोबाइल की स्क्रीन या फिर लैपटॉप पर क्या एक्सेस कर रहे हैं, उस पर आप हर वक्त नजर नहीं रख सकते। ऐसी स्थिति में पैरेंटल कंट्रोल टूल्स आपकी मदद कर सकता है...

पैरेंटल कंट्रोल-स्क्रीन टाइम ऐंड लोकेशन ट्रैकर: बच्चों की स्क्रीन टाइम को मैनेज करने के लिए इस टूल का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह एंड्रॉयड और आइओएस डिवाइस के लिए उपलब्ध है। इसकी खासियत है कि यह पैरेंटल कंट्रोल फीचर के साथ आता है। इसकी मदद से वेब फिल्टरिंग, लोकेशन ट्रैकिंग, सोशल मीडिया मॉनीटरिंग, यूट्यूब वीडियो वॉच टाइम आदि पर नजर रख सकते हैं। साथ ही, स्पेसिफिक एप्स, साइट्स को ब्लॉक करने के साथ-साथ टाइम लिमिट को सेट करने की सुविधा भी मिलती है। इसकी मदद से बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखने में मदद मिल सकती है।

फैमिली सेफ्टी एप: पैरेंटल टूल के लिए माइक्रोसॉफ्ट के फैमिली सेफ्टी एप की मदद भी ले सकते हैं। बच्चों की ऑनलाइन एक्टिविटीज या फिर उनके लिए ऑनलाइन सेफ प्लेस तैयार करने में इससे मदद मिल सकती है। इसमें फिल्टर की सुविधा के साथ उन साइट्स-एप्स को ब्लॉक करने का विकल्‍प है, जो बच्चों के लिहाज से उपयुक्त नहीं हैं। यहां बच्चों का स्क्रीन टाइम तय करने के साथ लोकेशन शेयरिंग, पैरेंट्स कंट्रोल और फोन मॉनिटरिंग जैसी सुविधाएं भी मिलती हैं। इसे एंड्रॉयड और आइओएस डिवाइस के लिए डाउनलोड कर सकते हैं।

गूगल फैमिली लिंक

गूगल का यह भी एक उपयोगी पैरेंटल कंट्रोल टूल है। इसकी मदद से एप्स, गेम्स, मूवी आदि के लिए चाइल्ड-फ्रेंडली फिल्टर का इस्तेमाल कर सकते हैं। पैरेंट्स अपनी सुविधा के हिसाब से बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम सेट कर सकते हैं। इससे तय समय के बाद फोन कार्य नहीं करेगा। इसकी खासियत है कि पैरेंट्स बच्चों के मोबाइल को रिमोटली भी कंट्रोल कर सकते हैं। इसे गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है।

जरूरी है इन बातों का ध्यान रखना...

  • पैरेंट्स को ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे को किस उम्र में कौन-सी डिवाइस देनी है
  • गेमिंग के दौरान अधिक देर तक स्क्रीन को देखने से नींद की समस्या हो सकती है
  • बच्‍चों के इंटरनेट पर गेम्स खेलने का वक्त तय करें। आधे घंटे से ज्यादा गेम्स न खेलने दें
  • बच्चे के ऊपर इंटरनेट गेम का असर दिखने लगता है। इस तरह के बच्चे मोटापे और डायबिटीज के शिकार हो सकते हैं
  • गेमिंग की लत वाले बच्चे सोशल लाइफ से दूर होकर अकेले रहना पसंद करने लगते हैं। इस तरह के बच्चे कई बार हिंसक व्यवहार भी करने लगते हैं
  • आउटडोर गेम्स को बढ़ावा दें। फिलहाल अगर आउटडोर गेम्स के लिए नहीं भेज सकते, तो घर में ही फिजिकल गेम्स में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करें
पैरेंट्स रखें नजर

टेक एक्सपर्ट बालेंदु शर्मा दाधीच ने बताया कि माता-पिता चाहें तो अपने बच्चों के डिजिटल उपकरणों में ऐसे सॉफ्टवेयर और एप्स इंस्टॉल कर सकते हैं, जो उन्हें जुआ खेलने वाली वेबसाइट्स पर जाने से रोक देंगे। विंडोज 10 कंप्यूटरों पर फैमिली सेफ्टी अकाउंट को सक्रिय किया जा सकता है, जो आपको ऐसी तमाम वेबसाइट्स पर रोक लगाने में मदद करता है, जो आपके बच्चों के लिए नुकसानदेह हैं। चाहें तो सर्विलस्टार (SurveilStar)(पेड) और बेट ब्लॉकर (BetBlocker) (फ्री) और मोबाइल एप्स में गमबन (Gamban)(पेड) और कस्टोडियो (Qustodio)(फ्री) का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि माता-पिता खुद भी बच्चों को बताएं कि इस तरह की वेबसाइट्स के क्या-क्या खतरे हैं, बच्चों के लिए ये गतिविधियां क्यों गैरकानूनी हैं और कैसे इनकी वजह से उनकी पढ़ाई और जिंदगी बर्बाद हो सकती हैं। कंप्यूटर और मोबाइल पर अपने बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखें और इंटरनेट के उपयोग के लिए सुस्पष्ट व कठोर नियम लागू करें। समय-समय पर ब्राउजर हिस्ट्री को चेक करते रहें। बच्चों के मोबाइल फोन में कौन-कौन से एप्स इंस्टॉल हैं, उन पर भी नजर रखें। यह भी देखें कि बच्चों के मोबाइल में ऐसे एप्स तो नहीं हैं, जिन्होंने कुछ हानिकारक एप्स की मौजूदगी को छिपा रखा हो। यदा-कदा बच्चों के पास मौजूद पैसों की जानकारी लेना और अपने क्रेडिट कार्ड का हिसाब-किताब, वॉलेट आदि को जांचते रहना भी जरूरी है।