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कस्तूरबा गांधी: बापू से लड़ीं-तर्क किए, नहीं माना मनमाना आदेश; पर मरते दम तक साथ निभाया, उजागर नहीं किए मतभेद

कस्तूरबा गांधी महात्मा गांधी के सत्याग्रह समर्पण और त्याग में बराबर की सहभागी बनी। कुछ लोगों ने उन्हें महिला सशक्तिकरण की मिसाल माना तो कुछ ने सिर पर पल्लू लिए पति के पीछे-पीछे चलने वाली नितांत एक घरेलू महिला जिनकी अपनी कोई शख्सियत ही नहीं थी।

By Deepti MishraEdited By: Deepti MishraUpdated: Tue, 11 Apr 2023 07:48 AM (IST)
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मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी बनाने वाली कस्तूरबा गांधी की आज जयंती है।
दीप्ति मिश्रा, नई दिल्ली: ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी महात्मा गांधी बने। महान बने, देशवासियों के लिए भगवान बने। राष्ट्रपिता कहलाए, शांति और आजादी के दूत बने, लेकिन क्या यह सब उन्होंने अकेले अपने दम पर हासिल किया या फिर कोई मजबूत सहारा बन सालों साल खड़ा रहा?

इसके जवाब में एक नाम है- कस्तूरबा गांधी। यह वही नाम है, जो गांधी के सत्याग्रह, समर्पण और त्याग में बराबर का सहभागी बना। उनके हर कदम का साथी बना। तर्क-वितर्क किया, लेकिन हर फैसले को स्वीकार किया। कुछ लोगों ने उन्हें महिला सशक्तिकरण की मिसाल बना तो कुछ ने सिर पर पल्लू लिए पति के पीछे-पीछे चलने वाली नितांत एक घरेलू महिला, जिनकी अपनी कोई शख्सियत ही नहीं थी।

आज कस्तूरबा गांधी की जयंती है। इस अवसर पर पढ़िए कि 'बा' क्या थीं- एक घरेलू महिला या महिला सशक्तिकरण की मिसाल...

कस्तूरबा गांधी के जीवन पर किताब 'द सीक्रेट डायरी ऑफ कस्तूरबा' लिखने वाली लेखिका नीलिमा डालमिया आधार कहती हैं कि 'बा' बेहद पारंपरिक और पतिव्रता स्त्री थीं। शादी से लेकर आखिरी सांस तक गांधी के हर फैसले में साथ खड़ी रहीं। अच्छी पत्नी और मां बनने की कसौटी पर खरी उतरने में लगी रहीं।

घर संभाला, आश्रम संभाले। न सिर्फ अपने बच्चों, बल्कि आंदोलनकारियों पर भी ममता लुटाई। बा ने गांधी जी की अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ छेड़ी गई लड़ाई को और मजबूत बनाया। महिलाओं को इसमें जोड़ा, जिससे हिंदुस्तान का घर-घर आजादी के इस आंदोलन से जुड़ा।

नीलिमा कहती हैं कि जब मैंने शोध किया तो हैरान रह गई। कस्तूरबा के बारे में सब सोचते हैं कि वह एक घरेलू महिला थीं, जो सिर्फ अपने पति का अनुसरण करती थी, जिनकी अपनी कोई शख्सियत ही नहीं थी, जबकि वे इसके बिल्कुल विपरीत थीं। वह बहुत आत्मनिर्भर और साहसी महिला थीं, जो गांधी जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलीं।

वक्त के सितम भी सहे...

वह आगे बताती हैं कि आज ही के दिन, यानी 11 अप्रैल, 1869 में उनका जन्म हुआ। कस्तूरबा एक बेहद धनी परिवार की बेटी थी। उनके पिता पोरबंदर के पूर्व मेयर गोकुलदास मकनजी कपाड़िया बेहद सम्मानित व्यापारी थे, जिनका विदेशों में कपड़े, अनाज और कॉटन का व्यापार था। समुद्र में उनके जहाज चलते थे। चार भाइयों की इकलौती बहन थीं। बहुत लाड-प्यार से पली-बढ़ीं, लेकिन गांधी परिवार में आने के बाद वक्त और गांधी दोनों के अत्याचार सहने पड़े।

जब 13 साल की उम्र में शादी कर मोहनदास की पत्नी बनी, तब कस्तूरबा मन से चंचल, लेकिन स्वभाव से समझदार व समर्पित पत्नी थीं। इसके इतर, गांधी बेहद डोमिनेटिंग एंड पजेसिव हजबैंड थे। वे कस्तूरबा को अपने मुताबिक चलाने के लिए, अपनी बात मनवाने के लिए तरह-तरह की जुगत भिड़ाते। गांधी ने कस्तूरबा को आदेश दिया था कि वे बिना उनसे पूछे न कहीं जाएंगी और न कोई काम करेंगी, लेकिन कस्तूरबा ने गांधी के इस आदेश को नहीं माना। इससे चिढ़ कर गांधी कस्तूरबा के प्रति और कठोर हो गए।

गांधी के मनमाने आदेश को नहीं माना..

'सत्य के प्रयोग' में गांधी ने इस बात का जिक्र करते हुए लिखा है, 'मुझे एक पत्नी व्रत का पालन करना है तो पत्नी को एक पति व्रत का पालन करना चाहिए, यह सोचकर मैं ईर्ष्यालु पति बन गया। पालन चाहिए से मैं पलवाना चाहिए के विचार पर चल पड़ा और मैंने पत्नी की निगरानी शुरू कर दी।

मैं सोचता... मुझे यह पता होना चाहिए कि मेरी पत्नी कहां जाती है और क्यों? मेरी अनुमति के बिना वह कहीं नहीं जा सकती, लेकिन कस्तूरबा ऐसी कैद सहन करने वाली थी ही नहीं। जहां इच्छा होती, वहां मुझसे बिना पूछे जरूर जातीं। मैं जैसे-जैसे दबाव डालता, वैसे-वैसे वह अधिक आजादी से काम लेतीं और उतना ही मैं ज्यादा चिढ़ता।' हालांकि, बाद में गांधीजी ने कहा कि जैसे-जैसे मैं कस्तूरबा को जानता गया, वैसे-वैसे उनके प्रति प्रेम बढ़ता गया और उनका ज्यादा सम्मान करने लगा।

जब बा ने गांधी से कहा- तुम्हें थोड़ी शरम नहीं आती

साउथ अफ्रीका में गांधी जी स्वावलंबन को आगे बढ़ा रहे थे। घर में नौकर नहीं थे। सभी को अपने काम स्वयं करने होते थे। उस वक्त अभी जैसे टॉयलेट नहीं होते थे, तब मैला खुद साफ कर फेंकना होता था। गांधी ने कस्तूरबा को अपने यहां आए मेहमान का मैला साफ करने को मजबूर किया तो वे गुस्से से फट पड़ी। कहा- बहुत हो चुका, अब वे नहीं करेंगी। इसके बाद दोनों के बीच बुरी तरह झगड़ा होने लगा। बात इतनी बढ़ गई कि गांधी  कस्तूरबा को बांह पकड़ कर घर से बाहर निकालने लगे। इसके बाद बापू अपने किए शर्मिंदा हुए, लेकिन उन्होंने चेहरे पर सख्ती लाता हुए दरवाजा बंद कर दिया। 

गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा, ''यह बिल्कुल वैसा ही था, जैसा मुझे एक अंग्रेज अधिकारी ने ट्रेन से धक्का देकर बाहर निकाला था। कस्तूर की आंखों से आंसू बह रहे थे। वह चिल्ला रहीं थी कि तुम्हें थोड़ी भी लाज शरम नहीं है? तुम अपने आप को इतना भूल गए? मैं कहां जाऊंगी? तुम सोचते हो कि तुम्हारी बीवी रहते हुए मैं सिर्फ तुम्हारा ख्याल रखने और तुम्हारी ठोकरें खाने के लिए हूं। भगवान के लिए अपना व्यवहार ठीक करो और गेट को बंद कर दो। इस तरह का तमाशा मत खड़ा करो।''

गांधी से लड़ीं, तर्क किए पर साथ नहीं छोड़ा

लेखिका नीलिमा डालमिया आगे बताती हैं कि कई जगहों पर कस्तूरबा और गांधी जी के विचार एक-दूसरे से नहीं मिलते। ऐसी स्थिति में वह विरोध भी करतीं और अपने तर्क रखतीं। इसके बावजूद वह गांधी के साथ अडिग खड़ी रहतीं। गांधी जी ने कई ऐसे फैसले किए जो अमान्य हो सकते थे, लेकिन बा ने उन्हें माना और गांधी जी का साथ नहीं छोड़ा। मां और पत्नी के रूप में वह हमेशा समर्पित मनस्थिति में रहीं।

गांधी जी की बेटों के प्रति विचारों की असहमति का मुद्दा हो या फिर महिलाओं के साथ नाम जुड़ने का उन्होंने दोनों पर तक किए, लेकिन कभी भी किसी के सामने जाहिर नहीं होने दिया कि उनके बीच मतभेद भी होते हैं। उन्होंने अपनी पीड़ा को कभी बाहर नहीं आने दिया। हर फैसले में गांधी का साथ दिया।

अधिकार जताया, पर शक नहीं किया

आश्रम में गांधी महिलाओं के इर्द गिर्द घिरे रहते, लेकिन कस्तूरबा के मन में जरा भी संदेह नहीं हुआ। नीलिमा एक किस्सा सुनाती हैं, जब गांधी साउथ अफ्रीका में थे, तब कैंप में वे बीमार पड़ गए। उस वक्त एक ब्रिटिश महिला मीरा बेन गांधी की विशेष अनुयायी हुआ करती थी। मीरा बेन ने कहा कि गांधी जी उनके साथ रहेंगे ताकि वे अच्छे से देखरेख कर सकें। उस वक्त 'बा' ने अपना अधिकार जताया। कहा- नहीं, वो मेरे साथ रहेंगे और मैं उनका ख्याल रखूंगी।

इसी तरह जब सरला देवी से गांधी का नाम जुड़ा तो उनके करीबी भी चिंतित हो उठे। सबको लगा कि गांधी ब्रह्मचर्य का व्रत तोड़कर सरला से शादी तो नहीं कर लेंगे! गांधी के पोते तुषार ने एक इंटरव्यू में बताया कि बापू के करीबी लोग कस्तूरबा के पास पहुंचे और उनसे गांधी को समझाने की गुजारिश करने लगे, तब बा ने कहा, ''तुम मेरे पति को पहचानते नहीं हो। मेरे पति को जो मुझमें नहीं मिल रहा है, वह दूसरों में ढूढ़ रहे हैं, इसलिए आप बेफिक्र रहिए, वो कहीं नहीं जाएंगे।''

गांधी को बापू बनाने वाली सशक्त महिला

लेखिका बताती हैं कि एक बार की बात है, जब कस्तूरबा कलकत्ता (अब कोलकाता) में हरिलाल के दूसरे बेटे के जन्म के मौके पर गई थीं, तभी गांधी बीमार हो गए। जब कस्तूरबा को इसका पता चला तो वह लौट आईं। कस्तूरबा को देखकर गांधी जी बिलख पड़े और बोले कि तुम नहीं आती तो मैं मर जाता। दोनों के बीच प्रेम था। कस्तूरबा में पति के प्रति श्रद्धा थी, भक्ति थी।

कस्तूरबा ने अपनी आखिरी सांस पुणे की आगाखान डिटेंसन कैंप में बापू की गोद में ली। जब बा का अंतिम संस्कार किया गया तो गांधी वहां तब बैठे रहे, तब तक चिता पूरी नहीं जल गई। जब चिता जल रही थी और गांधी शांत भाव से खड़े-खड़े देख रहे थे, तब किसी ने गांधी जी से कहा- कब तक खड़े रहेंगे थक जाएंगे। तब बापू ने जवाब दिया, '62 साल के साथी को क्या इस तरह छोड़ सकता हूं, यह अंतिम विदाई है। इसके लिए तो बा भी मुझे माफ नहीं करेगी।

गांधी के जीवन में छोड़ गईं सूनापन

गांधी ने लिखा, 'बा को हमेशा ये अहसास रहा कि अगर वह चली जाएंगी तो मैं टूट जाउंगा। अगर बा का साथ न होता तो मैं इतना ऊंचा उठ ही नहीं सकता था। यह बा ही थीं, जिन्होंने मेरा पूरा साथ दिया। नहीं तो भगवान जाने क्या ही होता? मेरी पत्नी मेरे अंत: को जिस प्रकार हिलाती थी, उस प्रकार दुनिया की कोई स्त्री नहीं हिला सकती। वह मेरे जीवन का अविभाज्य अंग थीं, उनके जाने से जो सूनापन पैदा हो गया है, वह कभी भर नहीं सकता।'