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Usne Kaha Tha; 'मैंने वो कर दिया जो उसने कहा था’- सौ साल पहले कहे शब्द‍ आज भी हैं जिंदा

मोहब्बत व इंसानियत से भरा हिंदुस्तानी लहना सिंह अपनी प्रेमिका को दिए एक वचन को मर कर भी निभाने के लिए सदियों तक प्यार करने वालों के दिलों में बसा रहेगा। लहना सिंह उसने कहा था कहानी का किरदार है।

By Jp YadavEdited By: Jp YadavUpdated: Thu, 13 Sep 2018 07:15 AM (IST)
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‘मैंने वो कर दिया जो उसने कहा था’- सौ साल पहले कहे शब्द‍ आज भी हैं जिंदा
नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। प्यार की अनगिनत कहानी और परिभाषा होगी और इंसान का वजूद जब तक रहेगा तब तक यह गढ़ी भी जाती रहेगी। भारतीय साहित्य के इतिहास में प्रेम को लेकर अद्भुत, अकल्पनीय और अप्रतिम कहानियां लिखी गई हैं, लेकिन 103 साल पहले 1915 में महान लेखक चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की कहानी ‘उसने कहा था’ अद्वितीय रचना है।

दरअसल, साहित्यिक रचना की सफलता उसके इस गुण में छिपी होती है कि वह दिल को छू जाए और ‘उसने कहा था’ इस मानदंड पर खरी उतरती है। शीर्षक अपने आपमें रहस्य और रोमांच लिए हुए है।

पाठक यह जानने के लिए कहानी शुरू करता है कि उसने क्या कहा था और अंत में जब इसका रहस्य खुलता है तो पाठक का हृदय द्रवित और आंखें नम हो जाती हैं। कहानी ‘उसने कहा था’ में प्रेमी का अकल्पनीय समर्पण है।

12 साल की उम्र में कहानी का नायक लहना सिंह अपनी जान पर खेलकर प्रेमिका की जान बचाता है। ...और फिर 37 साल बाद अपनी जान देकर प्रेमिका के बेटे व पति की जान की खातिर खुद को मौत के हवाले कर देता है, क्योंकि उसने (प्रेमिका) कहा था कि मेरे पति और बेटे की हिफाजत करना।

हकीकत के करीब लगती है कहानी

यूं तो कोई भी रचना लेखक के अनुभव-संघर्ष से ही जन्म लेती है। अपनी कलम की जादूगरी से एक अद्भुत प्रेम कहानी लिखने वाले चंद्रधर शर्मा की कहानी 'उसने कहा था' को 2018 में 103 साल पूरे हो रहे हैं।

हिंदी साहित्य में सबसे पुरानी कहानियों में शुमार 'उसने कहा था' को चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने 1915 में लिखा था। दरअसल, कहानी पढ़ते समय पाठक इसकी घटनाओं में खो जाता है। लहना सिंह, सूबेदारनी, वजीरा सिंह जैसे किरदार पाठक की आंखों के सामने घूमने लगते हैं।

कहानी की शुरुआत में अमृतसर की गलियों का सचित्र वर्णन नाहक पाठक को पुरानी यादों में ले जाता है। कहानी की सफलता इसमें भी छिपी होती है कि वह पाठक को कितना जोड़ पाती है। 'उसने कहा था' कहानी की सबसे बड़ी खूबी यही है कि हकीकत के करीब लगने वाली कहानी सच के करीब लगती है।

लहना और सूबेदारनी का अमरप्रेम

कहानी की शुरुआत दो मासूम और साफ दिल रखने वाले 12 साल के लहना सिंह और 8 साल की उस लड़की के साथ शुरू होती है, जो इस कहानी की रहस्यमय नायिका है। नायिका के नाम का खुलासा कहानी के मध्य में होता है या कहें नहीं होता है। नाम है-सूबेदारनी। नायक उसे इसी नाम से जानता है, क्योंकि वह सूबेदार की पत्नी है।

23 बरस पहले 12 साल का लहना सिंह और लड़की अमृतसर के बाजारों में किसी जगह मिले थे। एक हादसे में लहना सिंह ने खुद तांगे के पहिए के नीचे आकर भी लड़की की जान बचाई थी। इसके बाद लहना ने पूछा था ‘तेरी कुड़माई हो गई’? और जवाब मिला था ‘धत्त’।

यह सवाल मासूम सवाल कहानी के नायक द्वारा कई बार पूछा गया और आखिरी बार जवाब मिला ‘हां हो गई मेरी कुड़माई’...यह सुनकर और लहना सिंह पर जैसे आसमान गिर जाता है…। हालांकि, लहना सिंह का एक छोटा-सा सपना है कि वह नदी के किनारे गांव में अपने आम के पेड़ के नीचे अपने भाई की गोद में मरे, लेकिन उसकी यह चाहत पूरी नहीं होती और वह एक अनजान देश में युद्ध लड़ते हुए मरता है।

दरअसल, अपनी प्रेमिका सूबेदारनी के वचन की रक्षा करते हुए लहना सिंह सूबेदारनी के सुहाग और बच्चे को तो बचा लेता है पर अपनी बीवी और बच्चे को अनाथ कर जाता है। मौत से पहले वह बार-बार कहता है ‘उसने कहा था’।

फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के बाद लिखी गई है कहानी

त्याग और समर्पण से सराबोर प्यार के इस खूबसूरत अहसास को समझना बहुत मुश्किल है। यही वजह है कि इस रुहानी इश्क के लिए मशहूर शायर अमीर खुसरो ने लिखा है- ‘खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वाकी धार। जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।' युद्ध की विभीषिक और परिणाम को लेकर विश्व साहित्य में तमाम मर्मस्पर्शी उपन्यास और कहानियां लिखी गई हैं।

ये सभी रचनाएं एक ही नतीजे पर पहुंचती हैं कि युद्ध हमेशा प्रेमियों को मारता और मनुष्यता की हत्या करता है। खैर, यह कहानी इसीलिए अमर हो गई, क्योंकि 37 साल की उम्र में अपने परिवार की परवाह न करते हुए प्रेमिका सूबेदारनी को दिए वचन की रक्षा के लिए उसके घायल बेटे को उसके पति के साथ घर भेजकर खुद हंसते-मुस्कुराते मौत को दूसरी महबूबा की तरह गले लगा लेता है।

सामने थी मौत और लहना सिंह को याद था वचन

'उसने कहा था' कहानी की समीक्षा करने वाला मानना है कि लहना की भी एक पत्नी है पर उसका कोई जिक्र यह कहानी नहीं करती। ऐसा कहा जाता है कि मृत्यु से ठीक पहले हर शख्स को अपना अच्छा-बुरा अतीत तेजी से याद आता है। उसके जेहन में वह सबकुछ तेजी से बीतता है, जो वह जीता है।

लहना सिंह के साथ भी यही होता है, लेकिन लहना के जान गंवाते समय उसकी स्मृतियों में अमृतसर की गलियों वाली उसकी प्रेमिका (बाद में सूबेदारनी) याद आती है।...और याद आता है कि सूबेदारनी ने लहना सिंह से कहा था ‘मेरे पति और बेटे की रक्षा करना’ और जो उसने अपनी जान की बाजी लगाकर की भी।

कहानी में किरदार बहुत पर अमर लहना सिंह हुआ

कहानियां जीवन के अनुभव से निकलती हैं और लगता है ‘उसने कहा था’ के साथ भी ऐसा हुआ हो, क्योंकि लहना सिंह के साथ घटित कई बातें सच के करीब लगती हैं। खासकर अमृतसर की वह घटना जिसमें नायिका को लहना सिंह बचाता है और पूछता है ‘तेरी कुड़माई हो गई’ और जवाब मिलता है ‘धत्त’।

फिर इन दोनों की आखिरी मुलाकात जिसमें लहना सिंह यह सवाल पूछता है ‘तेड़ी कुड़माई हो गई’ और जवाब मिलता है ’हां’, इसके बाद के दृश्य का वर्णन जिस तरह से लेखक ने किया है वह लाजवाब है।

यहां पर बता दें कि कहानी भारत से शुरू होकर विदेश तक जाती है। ऐसे में इसमें बहुत से किरदार हैं। मसलन, लहना सिंह, सूबेदारनी, वजीर सिंह, बोधा के अलावा युद्ध के दौरान के कई पात्र, लेकिन नायक लहना और सूबेदारनी ही प्रमुख हैं।

नाम में छिपे रहस्य से बन गई बेजोड़ कहानी

किसी साहित्यिक रचना की सफलता में उसके शीर्षक की भूमिका अहम होती है। हिंदी ही नहीं, भारतीय साहित्य की श्रेष्ठ कहानियों में शुमार ‘उसने कहा था’ का शीर्षक ही तमाम रहस्य और रोमांच लिए हुए है।

दरअसल, इसका नाम ही साहित्य प्रेमी-रसिया पाठकों को अपनी ओर खींचता है और बाध्य कर देता कहानी पढ़ने के लिए। यही वजह है कि कहानी के लेखक चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ ने इसका शीर्षक ‘उसने कहा था’ रखा।

शीर्षक के गुण के चलते ही बॉलीवुड में 1960 में फिल्म बनी और उसका नाम ‘उसने कहा था’ रखा गया। अभिनेता सुनील दत्त और नंदा अभिनीत यह फिल्म ज्यादा तो नहीं चली, लेकिन जिन दर्शकों ने फिल्म देखी उनकी आंखों सिनेमा हॉल में नम जरूर हो आईं।

कथ्य और शिल्प था ‘उसने कहा था’ कहानी की जान

सफल और जनमानस के पटल पर छा जाने वाली कहानियों का सबसे बड़ा गुण होता है कि वह पाठक को बार-बार पढ़ने के लिए बाध्य करे। इस कहानी के साथ भी यही हुआ। लेख चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ इस कसौटी पर खरी उतरती है। इसका कथ्य और शिल्प पाठक के मन में बस जाता है।

तीन कहानियां लिखकर भारतीय साहित्य में अमर हो गए चंद्रधर शर्मा गुलेरी

चंद्रधर शर्मा गुलेरी (1883-1922) संपादक के साथ-साथ निबंधकार और कहानीकार भी थे. उन्होंने कुल तीन कहानियां लिखी हैं – बुद्धू का कांटा, सुखमय जीवन और उसने कहा था. लेकिन हिंदी साहित्य में अमर कहानी बन गई ‘उसने कहा था और चंद्रशर्मा गुलेरी को एक-दूसरे का पर्याय माना जाता है और लंबे समय तक माना भी जाता रहेगा।

'उसने कहा था' हिंदी की 10 कहानियों में शुमार

एक सर्वेक्षण के मुताबिक, चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की लाजवाब कहानी ‘उसने कहा था’ न केवल प्रेम-कथाओं, बल्कि हिंदी की 10 उम्दा कहानियों में शुमार है। साहित्य जगह के नामी आलोचक नामवर सिंह की मानें तो गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का समुचित मूल्यांकन होना अभी बाकी है। अभी इसे और समझे और पढ़े जाने की जरूरत है।

पढ़िये- कहानी का वह अंश जो आपकी आंखों में ला देगा आंसू

भावों की टकराहट से मूर्छा खुली। करवट बदली। पसली का घाव बह निकला।

''वजीरा, पानी पिला'' 'उसने कहा था।'

स्वप्न चल रहा है। सूबेदारनी कह रही है, "मैंने तेरे को आते ही पहचान लिया। एक काम कहती हूं। मेरे तो भाग फूट गए। सरकार ने बहादुरी का खिताब दिया है, लायलपुर में जमीन दी है, आज नमक-हलाली का मौका आया है। पर सरकार ने हम तीमियों की एक घंघरिया पल्टन क्यों न बना दी, जो मैं भी सूबेदार जी के साथ चली जाती? एक बेटा है। फौज में भर्ती हुए उसे एक ही बरस हुआ। उसके पीछे चार और हुए, पर एक भी नहीं जिया।' सूबेदारनी रोने लगी, ''अब दोनों जाते हैं, मेरे भाग! तुम्हें याद है, एक दिन टाँगेवाले का घोड़ा दहीवाले की दुकान के पास बिगड़ गया था। तुमने उस दिन मेरे प्राण बचाये थे, आप घोड़े की लातों में चले गए थे, और मुझे उठा-कर दूकान के तख्ते पर खड़ा कर दिया था। ऐसे ही इन दोनों को बचाना। यह मेरी भिक्षा है। तुम्हारे आगे आंचल पसारती हूं।''

रोती-रोती सूबेदारनी ओबरी में चली गई। लहना भी आंसू पोंछता हुआ बाहर आया। ''वजीरासिंह, पानी पिला'' ... 'उसने कहा था।'

लहना का सिर अपनी गोद में रक्खे वजीरासिंह बैठा है। जब मांगता है, तब पानी पिला देता है। आध घण्टे तक लहना चुप रहा, फिर बोला, "कौन! कीरतसिंह?"

वजीरा ने कुछ समझकर कहा, "हां"

"भइया, मुझे और ऊंचा कर ले। अपने पट्ट पर मेरा सिर रख ले"। वजीरा ने वैसे ही किया।

"हां, अब ठीक है। पानी पिला दे। बस, अब के हाड़ में यह आम खूब फलेगा। चाचा-भतीजा दोनों यहीं बैठ कर आम खाना। जितना बड़ा तेरा भतीजा है, उतना ही यह आम है। जिस महीने उसका जन्म हुआ था, उसी महीने में मैंने इसे लगाया था।"

वजीरासिंह के आंसू टप-टप टपक रहे थे।

कुछ दिन पीछे लोगों ने अख़बारों में पढ़ा... फ्रान्स और बेलजियम... 68 वीं सूची... मैदान में घावों से मरा... नं 77 सिख राइफल्स जमादार लहनासिंह।

कई भाषाओं के जानकार थे गुलेरी

हिंदी के प्रमुख रचनाकारों में शुमार चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' का जन्म 7 जुलाई, 1883 को पुरानी बस्ती जयपुर में हुआ था। वह संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिंदी, बांग्ला, अंग्रेज़ी, लैटिन और फ्रैंच समेत कई भाषाओं पर एकाधिकार रखते थे। 11 सितंबर, 1922 को बनारस में महान लेखक चंद्रधर शर्मा गुलेरी का निधन हो गया। हिंदी साहित्य की अमर कहानी 'उसने कहा था' लिखने वाले गुलेरी जी ने दो और कहानी 'बुद्धू का कांटा' और 'सुखमय जीवन' लिखी है।