Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

रोजगार पैदा करने के लिए दिए कई प्रस्‍ताव, बाजार में नई स्किल की मांग है; क्‍या युवाओं को सिखा पाएगी सरकार?

इस बार के बजट में सरकार ने रोजगार पैदा करने के लिए कई तरह से पहल करने का प्रस्ताव किया गया। बजट में युवाओं को रोजगार मुहैया कराने के लिए जो रोडमैप तैयार किया गया है अगर उस पर ईमानदारी से अमल किया जाए तो शत प्रतिशत न सही अधिकांश युवाओं को रोजगार मिल सकता है। केंद्र सरकार ने बजट में रोजगार के लिए किन प्रस्‍तावों पर जोर दिया है?

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Tue, 30 Jul 2024 08:39 PM (IST)
Hero Image
बेरोजगारी खत्‍म करने के लिए बड़ी संख्या में सृजित करनी होंगी नौकरियां। ग्राफिक्‍स जागरण टीम

 डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। बेरोजगारी भारत की सबसे बड़ी चुनौती है। कोरोना महामारी और अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक समस्याओं ने इस चुनौती को और बढ़ा दिया है। नौकरियां न सिर्फ आर्थिक गतिशीलता के लिए बल्कि सामाजिक प्रगति के लिए भी जरूरी है। रोजगार व्यक्ति को वित्तीय स्थिरता देता है। इससे वह अपना जीवन स्तर बेहतर बना कर बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं हासिल कर सकता है। इससे गरीबी का चक्र टूटता है और समाज में उसकी स्थिति बेहतर होती है।

साल 2024 के केंद्रीय बजट में रोजगार पैदा करने के लिए कई तरह से पहल करने का प्रस्ताव किया गया। इन पहलों में कौशल विकास कार्यक्रमों के लिए राशि का आवंटन बढ़ाना और स्टार्टअप के लिए प्रोत्साहन शामिल हैं। ये कदम सकारात्मक हैं, लेकिन बेरोजगारी की चुनौती से निपटने के लिहाज से काफी नहीं हैं।

बजट में कौशल विकास कार्यक्रमों के लिए राशि का आवंटन बढ़ाया जाना इस बात का संकेत है कि सरकार इस बात को समझती है कि युवाओं को इंडस्ट्री की जरूरत के हिसाब से स्किल से लैस करने की जरूरत है।

नौकरियों का बाजार तेजी से बदल रहा है और तकनीक के मोर्चे पर हो रही है प्रगति के कारण जरूरी स्किल में भी बदलाव आ रहा है। ऐसे में कौशल विकास कार्यक्रमों के लिए पिछले वर्षों की तुलना में बढ़ा हुआ आवंटन भी समस्या की तीव्रता से मेल नहीं खाता है।

बदलती मांग अनुरूप तैयार करना है चुनौती

भारत को अपने श्रम बल को वैश्विक बाजार में बदलती मांग के अनुरूप तैयार करने के लिए बड़े पैमाने पर स्किल बढ़ाने और नई नई स्किल सिखाने वाली पहलों की जरूरत है। मौजूदा बजट इस जरूरत को पूरा नहीं करता है। बजट बड़े बदलाव के बजाए चीजों को बेहतर बनाने पर जोर देता है।

भारत को अपने उच्च शिक्षा के इकोसिस्टम को बदलने की जरूरत है। बड़ी संख्या में छात्र स्नातक की डिग्री हासिल करते हैं, लेकिन उनके पास नौकरी हासिल करने के लिए जरूरी स्किल नहीं होती है। मौजूदा सिस्टम सोच विकसित करने पर और जानकारी का उपयोग करने के बजाए जानकारी को रटकर याद करने पर जोर देता है। इस अंतर को भरने के लिए जरूरी है कि शिक्षा प्रयोग के जरिये सीखने, इंडस्ट्री के साथ भागीदारी और बाजार की मांग के हिसाब से तैयार किए गए पाठ्यक्रम पर केंद्रित हो।

उच्च शिक्षा में बदलाव जरूरी

नवाचार को बढ़ावा देने, रोजगार हासिल करने क्षमता बढ़ाने और आर्थिक वृद्धि की रफ्तार बढ़ाने के लिए उच्च शिक्षा में बदलाव अहम है। इसके बिना भारत ऐसे चक्र में फंस रहा है, जहां लोग पढ़ते तो हैं लेकिन सही मायने में कुछ सीखते नहीं हैं। इस तरह से कॉलेज और यूनिवर्सिटी से निकलने वाले स्नातक श्रम बाजार की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार नहीं होते हैं।

इसी तरह भारत को श्रम की गरिमा को स्वीकार करना होगा। श्रम को सम्मान देकर श्रम बल में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है। अगर हम हर व्यवसाय को समान रूप से महत्व देंगे, तो बड़ी संख्या में कौशल से लैस युवा श्रम बाजार में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित होंगे। इससे न सिर्फ बेरोजगारी की समस्या का समाधान होगा बल्कि आर्थिक वृद्धि को भी बढ़ावा मिलेगा।

जब हर नौकरी को श्रेष्ठ माना जाता है तो यह नवाचार और कुशलता को बढ़ावा देता है। श्रम का सम्मान करने वाला समाज उत्पादकता, अधिक आय और पारंपरिक नौकरियों के सेक्टर पर निर्भरता कम करने वाला चक्र बनाता है।

बनानी होगी समग्र नीति

नीति निर्माताओं को समग्र नीति बना कर ऐसे सेक्टर में नौकरियां पैदा करने पर जोर देना होगा, जहां बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिल सके। जैसे मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस, कपड़ा, पर्यटन और निर्माण।

ये सेक्टर में बड़े पैमाने पर नौकरियां पैदा कर सकते हैं, जो मांग को बढ़ाने के साथ अर्थव्यवस्था को गति दे सकता है। सिर्फ लोगों को कौशल से लैस करने पर फोकस रोजगार के समीकरण के एक हिस्से का समाधान करता है।

नौकरी के बाजार में मांग का पक्ष, खास नौकरियां पैदा करना अब भी एक बड़ी चुनौती है। जब तक हम ऐसा वातावरण नहीं बनाएंगे जहां सूक्ष्म उपक्रम बड़े होकर छोटे उपक्रम बन सके, छोटे उपक्रम बड़े होकर मध्यम उपक्रम बन सकें और मध्यम उपक्रम और विस्तार सकें, तब तक हम नौकरी से जुड़ी चुनौतियों का सामना करते रहेंगे।

 कौशल विकास कार्यक्रमों को बजट में मिली प्राथमिकता

2024 का बजट कौशल विकास कार्यक्रमों के लिए ज्यादा आवंटन और स्टार्टअप के लिए प्रोत्साहन के जरिये नौकरी के बाजार के आपूर्ति पक्ष की चुनौतियों का समाधान करने की दिशा में सकारात्मक पहल करता है। हालांकि, बेरोजगारी से निपटने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए, सरकार को अधिक समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जो नौकरी बाजार के आपूर्ति और मांग दोनों पक्षों को संबोधित करता हो।

यह भी पढ़ें - आधे युवा पढ़े-लिखे हैं पर जॉब के लिए जरूरी कौशल नहीं है, ऐसे युवाओं को काम सिखाएंगी इडस्‍ट्री

एमएसएमई को सशक्‍त बनाने से मिलेगा लाभ

एमएसएमई को सशक्त बनाकर मांग पक्ष को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है। 70 प्रतिशत से अधिक कार्यबल को रोजगार देने वाले ये उद्यम अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। एमएसएमई के सामने चुनौतियां बहुआयामी हैं। ये नियामकीय बोझ, वित्त तक पहुंच और तकनीक के मोर्चे पर संघर्ष कर रह हैं। सरकार को इन उद्यमों के लिए अधिक अनुकूल कारोबारी माहौल बनाने के लिए नियमों को सरल बनाना चाहिए।

वित्त तक पहुंच में सुधार एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र है।  डिजिटल दुनिया में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए इन उद्यमों के लिए तकनीकी उन्नयन और नवाचार का समर्थन करना भी आवश्यक है। इन्हें बाजार पहुंच के मामले में समर्थन की जरूरत है।

यह भी पढ़ें-Budget 2024: युवाओं की बल्‍ले-बल्‍ले! किसानों के लिए 1.52 लाख करोड़, करदाताओं को मामूली राहत; पढ़िए बजट की 12 बड़ी बातें

कर प्रोत्साहन, सुव्यवस्थित नियम और मजबूत उद्यमशीलता समर्थन एक अनुकूल व्यावसायिक माहौल को उत्प्रेरित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। अनुकूल कारोबारी माहौल को बढ़ावा देकर,भारत रोजगार वृद्धि को प्रोत्साहित कर सकता है, एक मजबूत अर्थव्यवस्था का निर्माण कर सकता है और अपनी पूर्ण आर्थिक क्षमता फायदा उठा सकता है।

भारत के कॉरपोरेट क्षेत्र को अपनी प्रतियोगी क्षमता बढ़ाने के लिए एक सुव्यवस्थित नियामक वातावरण की आवश्यकता है। दक्षता और उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया और श्रम कानूनों का आधुनिकीकरण आवश्यक है।

यह भी पढ़ें -इंटर्नशिप कार्यक्रम से खुलेगी रोजगार की राह, कृषि में सालाना 78.51 लाख नौकरियां सृजित करने की जरूरत; अभी देश में कितने श्रमिक हैं?

(सोर्स- वित्तीय एवं समग्र विकास के विशेषज्ञ विकास सिंह से बातचीत)