वन नेशन, वन इलेक्शन को मंजूरी: 191 दिन में तैयार रिपोर्ट में क्या सुझाव दिए, कैसे बदलेगी चुनाव व्यवस्था; इससे देश का क्या फायदा?
मोदी कैबिनेट नेवन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी जिससे पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव होने का रास्ता साफ हो गया। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर यह फैसला लिया गया। वन नेशन वन इलेक्शन व्यवस्था लागू होने से देश में क्या बदलेगा क्या फायदा होंगे पढ़िए ऐसे ही 12 सवालों के जवाब...
78 वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्रचार से पीएम मोदी ने कहा-
देश में हर छह माह में कहीं न कहीं चुनाव हो रहे होते हैं। ऐसे में देश को आगे ले जाने के लिए वन नेशन, वन इलेक्शन को आगे लाना ही होगा।
मोदी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर गृह मंत्री अमित शाह -
हमारी योजना इस सरकार के कार्यकाल के दौरान ही वन नेशन वन इलेक्शन को लागू कराने की है। इसको लेकर तैयारियां की जा रही हैं।
क्या है वन नेशन वन इलेक्शन?
एक देश एक चुनाव यानी (One Nation, One Election) का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव हों। ऐसे समझिए, देश की सभी 543 लोकसभा सीटों और सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की कुल 4130 विधानसभा सीटों पर एक साथ चुनाव होंगे। वोटर सांसद और विधायक चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर अपना वोट डाल सकेंगे।क्या है मौजूदा चुनाव व्यवस्था?
देश में अभी लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं।क्या यह चुनाव व्यवस्था देश के लिए नई है?
नहीं, यह कांसेप्ट भारत के लिए नया नहीं है। देश में आजादी के बाद 1952 से लेकर 1957, 1962 और 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए थे। 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं तय समय से पहले भंग कर दी गई थीं। 1970 में लोकसभा भी समय से पहले भंग कर दी गई थी। इसके चलते एक देश एक चुनाव की गाड़ी पटरी से उतर गई।कमेटी ने कितने दिन में तैयार की रिपोर्ट?
वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर 2 सितंबर, 2023 को एक कमिटी गठित की गई थी। इसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे थे। कमेटी के सदस्यों ने सात देशों की चुनाव व्यवस्था का अध्ययन किया। स्टेकहोल्डर्स-एक्सपर्ट्स से चर्चा और रिसर्च के बाद 191 दिन में 18 हजार 626 पन्नों की एक रिपोर्ट तैयार की गई। कमेटी ने यह रिपोर्ट 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई। रिपोर्ट में सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक करने का सुझाव दिया है।राष्ट्रपति मुर्मू को रिपोर्ट सौंपते पूर्व राष्ट्रपति और कमेटी अध्यक्ष रामनाथ कोविंद, साथ में गृहमंत्री अमित शाह। फाइल फोटोवन नेशन वन इलेक्शन कमेटी कितने और कौन-कौन है सदस्य?
पूर्व राष्ट्रपति, एक वकील, तीन नेता और तीन पूर्व अफसर समेत आठ लोग कमेटी के सदस्य हैं।- रामनाथ कोविंद, अध्यक्ष (पूर्व राष्ट्रपति)
- हरीश साल्वे, वरिष्ठ अधिवक्ता
- अमित शाह, गृह मंत्री (बीजेपी)
- अधीर रंजन चौधरी, कांग्रेस नेता
- गुलाम नबी, डीपीए पार्टी
- इनके सिंह, 15वें वित्त आयोग पूर्व अध्यक्ष
- डॉ. सुभाष कश्यप, लोकसभा के पूर्व महासचिव
- संजय कोठारी, पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त
कमेटी ने क्या सुझाव दिए?
- सभी विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए।
- पहले चरण में लोकसभा-विधानसभा चुनाव और फिर दूसरे चरण में 100 दिन के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं।
- चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा व स्थानीय निकाय चुनावों के लिए सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आईडी कार्ड बनाए।
- देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग करने की भी सिफारिश की है।
वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने के क्या फायदे हैं?
लोकसभा के पूर्व सचिव एस के शर्मा बताते हैं कि देश में वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने से कई फायदे होंगे। जैसे-- चुनाव खर्च में कटौती: देश में बार-बार चुनाव कराने पर लॉजिस्टिक्स, सुरक्षा और जनशक्ति समेत कई चीजों पर बहुत पैसा खर्च होता है। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में अनुमानित कुल खर्च करीब 1.35 लाख करोड़ रुपये तक हुआ है, जोकि 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में बहुत अधिक है। 2019 में 60,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। अगर राज्यवार विधानसभा व स्थानीय चुनाव का खर्च भी जोड़ा जाए तो अंदाजा लगाइए कि ये खर्च कितना होगा। ऐसे में वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने पर चुनाव खर्च में कम होगा।
- प्रशासनिक कार्यक्षमता में वृद्धि: चुनाव के दौरान आचार संहिता लागू होने से नीति निर्माण और विकास कार्यों में रुकावट आती है। अगर पांच साल में सिर्फ एक बार आचार संहिता लागू होगी तो स्वाभाविक है कि प्रशासनिक कार्यों में तेजी आएगी।
- देश में हर छह माह चुनाव होने पर प्रशासनिक मशीनरी और सुरक्षाबलों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। एक साथ चुनाव कराने से संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकता है।
- लुभावने वादे नहीं आएंगे काम : बार-बार चुनाव लोकलुभावन नीतियों को बढ़ावा देते हैं। एक साथ चुनाव लंबी अवधि की नीति योजना और सतत विकास पर ध्यान केंद्रित करने में मददगार साबित होंगे।
- वोट प्रतिशत में वृद्धि: एक साथ चुनाव होने से मतदाता एक ही समय में कई वोट डाल सकते हैं, जिससे मतदाता भागीदारी में वृद्धि हो सकती है।
वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करने में चुनौतियां क्या हैं?
लोकसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा बताते हैं कि देश में एक राष्ट्र एक चुनाव व्यवस्था लागू करने के लिए संविधान में कई संशोधन करने की जरूरत पड़ेगी।क्षेत्रीय दल क्या कर रहे हैं विरोध?
विपक्षी दल जैसे - कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बसपा और सपा इसका विरोध करते इस असंवैधानिक और लोकतंत्र विरोधी करार देते आ रहे हैं। इतना ही नहीं, क्षेत्रीय दल को डर है कि अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे तो राष्ट्रीय मुद्दे प्रमुख हो जाएंगे और वे स्थानीय मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठा नहीं पाएंगे।साल 2015 में IDFC की ओर से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने पर 77 % संभावना इस बात की होती है कि मतदाता राज्य और केंद्र में एक ही पार्टी को चुनते हैं, जबकि अलग-अलग चुनाव होने पर केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी को चुनने की संभावना घटकर 61% हो जाती है।इन देशों में लागू है यह चुनाव व्यवस्था
- दक्षिण अफ्रीका
- स्वीडन
- बेल्जियम
- जर्मनी
- फिलीपींस
लोकसभा सीटों की संख्या 750 होगी?
देश में अभी 543 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव होता है। साल 2029 में होने वाले चुनाव से पहले जनगणना होती है तो परिसीमन भी होगा।ऐसे में चर्चा यह है कि साल 2029 में होने वाला लोकसभा चुनाव परिसीमन के बाद 543 की बजाय लगभग साढ़े सात सौ सीटों पर होगा। इनमें से नारी शक्ति वंदन अधिनियम के मुताबिक, एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।हालांकि, लोकसभा सीटों को बढ़ाने को लेकर दक्षिण के राज्य विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि अगर समान जनसंख्या के आधार पर परिसीमन के बाद लोकसभा सीटों पर निर्धारण होता है तो लोकसभा में दक्षिण के राज्यों का प्रतिनिधित्व गिर सकता है, जिस कारण वे विरोध कर रहे हैं। बता दें कि उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में दक्षिण भारत के राज्यों में जनसंख्या की बढ़ोतरी कम हुई है।पूरी खबर यहां पढ़ें - 543 नहीं... 750 सीटों पर होगा लोकसभा चुनाव 2029? पढ़ें सीटें बढ़ाने के विरोध में क्यों हैं दक्षिणी राज्यदेश में कुल कितनी विधानसभा सीटें हैं?
मौजूदा समय में देश के 28 राज्य और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 4130 विधानसभा सीटें हैं। सबसे अधिक विधानसभा सीटें उत्तर प्रदेश में 403 हैं तो सबसे कम राज्य के हिसाब से सिक्किम और केंद्र शासित प्रदेश को जोड़कर देखें तो पुडुचेरी में 30 सीटें हैं।यहां देखें किस राज्य में कितनी विधानसभा सीटें...
राज्य | विधानसभा सीटें |
आंध्र प्रदेश | 175 |
अरुणाचल प्रदेश | 60 |
असम | 126 |
बिहार | 243 |
छत्तीसगढ़ | 90 |
गोवा | 40 |
गुजरात | 182 |
हरियाणा | 90 |
हिमाचल प्रदेश | 68 |
झारखंड | 81 |
कर्नाटक | 224 |
केरल | 130 |
मध्य प्रदेश | 230 |
महाराष्ट्र | 288 |
मणिपुर | 60 |
मेघालय | 60 |
मिजोरम | 40 |
नगालैंड | 60 |
ओडिशा | 147 |
पंजाब | 117 |
राजस्थान | 200 |
सिक्किम | 32 |
तमिलनाडु | 234 |
तेलंगाना | 119 |
त्रिपुरा | 60 |
उत्तर प्रदेश | 403 |
उत्तराखंड | 70 |
पश्चिम बंगाल | 294 |
केंद्रशासित प्रदेश
केंद्रशासित प्रदेश | विधानसभा सीटें |
दिल्ली | 70 |
पुडुचेरी | 30 |
जम्मू-कश्मीर | 90 |
परिसीमन क्या होता है?
देश या राज्य में लोकसभा या विधानसभा सीटों की सीमा तय करने की क्रिया या प्रक्रिया को परिसीमन कहते हैं। इसका उद्देश्य जनसंख्या में हो रहे बदलाव के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या को संतुलित करना है ताकि प्रत्येक लोकसभा या विधानसभा क्षेत्र में एक समान संख्या में मतदाता हों।
इस प्रक्रिया को करने वाली संस्था को परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) के रूप में जाना जाता है।
परिसीमन कब होता है?
सामान्य तौर पर हर जनगणना के बाद परिसीमन किया जाता है, जिससे जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का संतुलन बनाया जा सके। हालांकि, देश में 1976 से परिसीमन पर पाबंदी लागू थी।
साल 2002 में परिसीमन आयोग का पुनर्गठन हुआ और 2008 में परिसीमन कराया गया। अगला परिसीमन 2026 में होने की संभावना है।
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