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देश कैसे चलाया जाए, क्‍या शिक्षा काफी है; पढ़िए इस पर क्‍या बोले एक्‍सपर्ट

Minimum Educational Qualification for MPs and MLAs पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि सांसदों और विधायकों के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता तय की जानी चाहिए। इससे पहले 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने दागी सांसदों एवं विधायकों पर एक फैसले में कहा था कि न्यूनतम योग्यता होनी चाहिए। पढ़िए देश का शासन कैसे चलाया जाए इस पर क्‍या बोले एक्‍सपर्ट

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Mon, 09 Sep 2024 07:52 PM (IST)
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What is the Qualification for MPs and MLAs: माननीयों की प्रतीकात्‍मक फोटो
डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। Why is There No Minimum Educational Qualification for MPs and MLAs: हाल में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि सांसदों और विधायकों के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता तय की जानी चाहिए। इससे पहले, 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने दागी सांसदों एवं विधायकों पर एक फैसले में कहा था कि न्यूनतम योग्यता होनी चाहिए। भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने इस बात के लिए अफसोस जताया था कि संविधान में विधायिका के सदस्यों के लिए शैक्षिक योग्यता तय नहीं की गई है।

चलिए हम हम इस मुद्दे पर कई नजरिये से गौर कर लेते हैं। पहला, इस तरह की योग्यता तय न करने के कारण क्या हैं? क्या ये कारण आज भी वैध हैं? विश्व के दूसरे देशों में क्या होता है? वर्तमान लोकसभा में कितने सांसद शिक्षित हैं?

संविधान में सांसदों और विधायकों के लिए शैक्षिक योग्यता क्यों तय नहीं?

1950 में जब संविधान अपनाया गया था, उस समय सांसदों, विधायकों के लिए शैक्षिक योग्यता तय न करने का सबसे अहम कारण साक्षरता का स्तर बहुत कम होना था। इस बात की आशंका था कि अगर ऐसा किया जाता है तो आबादी का बड़ा हिस्सा चुनाव लड़ने के लिए पात्र नहीं रह जाएगा।

हमने यह भी सुना है कि तमिलनाडु के असाधारण मुख्यमंत्री कुमारस्वामी कामराज ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी नहीं की थी। दरअसल, उस समय शिक्षा मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी थी।

तर्क यह था कि अगर सरकार एक बड़े तबके को शिक्षा मुहैया कराने के अपने कर्तव्य को पूरा करने में असफल रही है तो लोगों को चुनाव में खड़े होने से अयोग्य घोषित करके दोबारा दंडित नहीं किया जा सकता है। वोटिंग के लिए पात्रता का मुद्दा इसी के करीब है।

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भारत ने आजादी के बाद ही सभी नागरिकों को वोट का अधिकार दिया था। इसके विपरीत, दूसरे देशों जैसे अमेरिका में पहले श्वेत पुरुषों और संपत्ति का मालिकाना हक रखने वालों को ही वोट देने का अधिकार दिया गया था। महिलाओं को अमेरिका की आजादी के लगभग दो दशक बाद 20वीं सदी के चौथे दशक में वोट देने का अधिकार मिला।

क्यों नहीं सोचा- सांसदों और विधायकों के लिए भी शिक्षा जरूरी

कुछ रूढ़िवादी लोग आज मानते हैं कि मतदाताओं के लिए न्यूनतम योग्यता की जरूरत है। विश्व के किसी भी देश में नेताओं के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता नहीं है। शायद ऐसा माना गया होगा कि अशिक्षित लोग नहीं चुने जाएंगे।

भारत में 77 प्रतिशत निर्वाचित सांसद स्नातक हैं। सिर्फ सात सांसदों ने 10वीं पास नहीं की है। इसका मतलब है कि 98.7 प्रतिशत निर्वाचित सांसदों ने 10वीं या इससे अधिक पढ़ाई पूरी की है। हालांकि, केंद्र सरकार के 15 प्रतिशत मंत्री स्नातक नहीं है।

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कार्यकारी पद पर भी योग्‍यता तय नहीं

भारत में शायद मंत्रियों के लिए योग्यता तय किए जाने की जरूरत है क्योंकि यह कार्यकारी पद है।  सवाल उठता है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के पीछे उद्देश्य क्या है? इन टिप्पणियों का कारण यह है कि सबसे अच्छे लोग राजनीति में नहीं आ रहे हैं। आज शैक्षिक योग्यता शायद राजनीति में मदद न करे क्योंकि ज्यादातर लोगों ने हाईस्कूल और कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर ली है।

संसद में आपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसदों की संख्या काफी अधिक है। मौजूदा समय में आपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसदों की संख्या 46 प्रतिशत है। 2019 में ऐसे सांसदों की संख्या 43 प्रतिशत और 2014 में ऐसे सांसदों की संख्या 34 प्रतिशत थी।

इसे सही ठहराने के लिए कई तरह के चालाकी भरे तर्क दिए जाते हैं, लेकिन यह तथ्य है कि राजनीतिक दलों के नेता आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को टिकट देते हैं। वे ऐसा करना बंद कर सकते हैं। सिस्टम अपने आपको सही नहीं करेगा। इसके लिए नियमों या कानून में बदलाव की जरूरत है।

जब हर क्षेत्र में विशेषज्ञ तो फिर संसद में क्‍यों नहीं?

 क्षेत्र दर क्षेत्र आज की दुनिया ज्यादा जटिल होती जा रही है। वित्तीय बाजारों में काफी अधिक विशेषज्ञता की जरूरत है। सही शिक्षा, अनुभव और कड़ी चयन प्रक्रिया के बिना लोग बैंक या वित्तीय संस्थानों की अगुवाई नहीं कर सकते हैं, लेकिन वित्त मंत्री को किसी योग्यता की जरूरत नहीं है।

वित्त मंत्री ऐसे निर्णय ले सकता है, जो पूरे वित्तीय तंत्र की कार्यप्रणाली को प्रभावित करता हो। शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून के लिए भी यह बात सही है।

आम तौर पर मंत्री विश्वविद्यालयों में शीर्ष पदों पर बैठे लोगों, डॉक्टरों और न्यायाधीशों की तुलना में कम पढ़े लिखे या अनुभवी हैं। यहां तक कि प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भी ज्ञान के क्षेत्र में हो रही प्रगति और कई क्षेत्रों में विशेषज्ञता के साथ कदम से कदम मिला कर नहीं चल पा रहे हैं।

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भारत में प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारी ही सभी सार्वजनिक मामलों- शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग, इंडस्ट्रीज व कृषि आदि में अहम भूमिका निभाते हैं। देश के लिए नीतियां बनाने से लेकर उनको लागू करने में उनकी बड़ी भूमिका होती है।  

हमें इस पर नए सिरे से गौर करना होगा कि देश का शासन कैसे चलाया जाए।  निश्चित रूप से शासन में में उत्साही और योग्य लोगों के होने से देश को मदद मिलेगी। लेकिन सिर्फ शिक्षा काफी नहीं है। जन सेवा के लिए प्रतिबद्धता भी जरूरी है।

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(सोर्स: आईआईएम बेंगलुरु के संस्थापक अध्यक्ष एडीआर व प्रोफेसर त्रिलोचन शास्त्री से बातचीत)