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हिंदी की मशहूर लेखिका कृष्णा सोबती का निधन, 2017 में मिला था ज्ञानपीठ पुरस्कार

हिंदी साहित्य की जानी मानी हस्ताक्षर और प्रसिद्ध लेखिका कृष्णा सोबती का 93 साल की उम्र में निधन हो गया है। साल 2017 में 90 साल की उम्र में उन्हें पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था।

By JP YadavEdited By: Updated: Fri, 25 Jan 2019 02:28 PM (IST)
हिंदी की मशहूर लेखिका कृष्णा सोबती का निधन, 2017 में मिला था ज्ञानपीठ पुरस्कार
नई दिल्ली, जेएनएन। हिंदी साहित्य की जानी मानी हस्ताक्षर और प्रसिद्ध लेखिका कृष्णा सोबती का 94 साल की उम्र में निधन हो गया है। 18 फरवरी 1924 को गुजरात (वर्तमान पाकिस्तान) में जन्मी सोबती साहसपूर्ण रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती थीं। बतौर लेखिका 1950 में कहानी ‘लामा’ से साहित्यिक यात्रा शुरू करने वाली कृ्ष्णा सोबती स्त्री की आजादी और न्याय की पक्षधर थी और यह उनके उपन्यासों में भी दिखा।  'जिंदगीनामा' के लिए 1980 में सोबती को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और 1996 में साहित्य अकादमी का फेलो बनाया गया जो कि अकादमी का सर्वश्रेष्ठ सम्मान माना जाता है। उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार शाम को निगम बोध घाट पर विद्युत शव दाह गृह में होगा।

परिवार के एक सदस्य के मुताबिक, उन्होंने दिल्ली के अस्पताल में शुक्रवार सुबह अंतिम सांस ली। बीमार होने के चलते वह यहां पिछले दो महीने से अस्पताल के आइसीयू में भर्ती थी। कृष्णा सोबती के मित्रों में शुमार राजकमल प्रकाशन के मैनेजिंग डायरेक्टर अशोक माहेश्वरी ने बताया कि बीमारी के बावजूद समाज में क्या घट रहा है और अपने विचारों को लेकर जागरूक थीं।

अशोक माहेश्वरी के मुताबिक,कृष्णा जी अपने समय से सबसे अधिक संवेदनशील और सचेत लेखिका थीं। उन्होंने अपनी लेखन क्षमता से अपनी पहचान के साथ गरिमा भी बनाई। उनकी हालिया पुस्तक 'चन्ना'11 जनवरी को विश्व पुस्तक मेले में लॉन्च हुई थी।

कृष्णा सोबती को साहित्य के क्षेत्र में दिया जाने वाला देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार साल 2017 में मिला था। इसके अलावा, कृष्णा सोबती को उनके उपन्यास ‘जिंदगीनामा’ के लिए साल 1980 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। उन्हें 1996 में अकादमी के उच्चतम सम्मान ‘साहित्य अकादमी फैलोशिप’ से नवाजा गया था। इसके अलावा कृष्णा सोबती को पद्मभूषण, व्यास सम्मान, शलाका सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। 

कृष्णा सोबती की नामी रचनाएं

कृष्णा सोबती के कालजयी उपन्यासों में ‘सूरजमुखी अंधेरे के’, ‘दिलोदानिश’, ‘जिंदगीनामा’, ‘ऐ लड़की’, ‘समय सरगम’, ‘मित्रो मरजानी’, ‘जैनी मेहरबान सिंह’, ‘हम हशमत’, ‘बादलों के घेरे’ शामिल हैं। लेखिका की इन कृतियों ने साहित्य को समृद्ध किया है। 

चर्चित लेखिका के निधन पर छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने गहरा दुख जताते हुए ट्वीट किया है- 'कई पीढ़ियों को अपनी दमदार लेखनी से प्रभावित करने वाली कथाकार कृष्णा सोबती जी का चला जाना गहरा शोक पैदा करता है। उनका लिखा और उनका संघर्ष हमेशा याद किया जाता रहेगा। श्रद्धांजलि।'

पिछले कई दशक से अपनी लेखिनी से पाठकों अध्ययन की भूख को शांत कर रहीं लेखिका कृष्णा सोबती का  ‘बुद्ध का कमंडल लद्दाख’ और ‘गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिन्दुस्तान’ भी उनके लेखन के उत्कृष्ट उदाहरण है। 

वहीं, मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने ट्वीट किया है- ' अपने समय की दक्ष और बुलंद लेखिका के साथ वह प्रगतिशील और आधुनिक आवाज थीं। उन्होंने आजादी और साहस से लिखा और जिंदगी को जिया। श्रद्धांजलि।'

चर्चित रचनाएं

  • सिक्का बदल गया
  • बदली बरस गयी
  • जिन्दगीनामा
  • बादलों के घेरे
  • डार से बिछुड़ी
  • मित्रों मरजानी
  • यारों के पार तीन पहाड़
  • सूरजमुखी अंधेरे के
  • सोबती एक सोहबत इत्यादि
सम्मान व पुरस्कार

  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (1980)
  • शिरोमणी पुरस्कार (1981)
  • हिन्दी अकादमी पुरस्कार (1982)
  • शलाका पुरस्कार (2000-01)
  • ज्ञानपीठ पुरस्कार (2017)
यहां पर बता दें कि पाकिस्तान के गुजरात प्रांत में 18 फरवरी, 1925 जन्मीं भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद इनका परिवार दिल्ली में आकर रहने लगा। यहां रहने के दौरान कृष्णा ने साहित्य सेवा की शुरुआत की। अपनी रचनाओं के जरिये उन्होंने नारी पर होने वाले अत्याचारों को उजागर किया। इतना ही नहीं, इस बहाने उन्होंने उनकी विभिन्न समस्याओं के साथ उन्हें प्राप्त होनें वाले सामजिक अश्लीलता का बखूबी वर्णन किया   है।