सांसद और विधायकी का चुनाव लड़ने के लिए तय होनी चाहिए शैक्षिक योग्यता? इसका किस पर पड़ेगा असर
देश में इस साल कई राज्यों में चुनाव होने हैं। चुनावों के दौरान यह महत्वपूर्ण सवाल उठता है कि नेताओं के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता होनी चाहिए या नहीं। शिक्षा जरूरी है क्योंकि यह नीतिगत फैसलों और शासन को बेहतर बनाती है। आलोचकों का मानना है कि शिक्षा ईमानदारी की गारंटी नहीं देती लेकिन यह प्रभावी शासन के लिए आवश्यक उपकरण है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में अगले कुछ माह में कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। यह सही समय है जब हम असहज सच्चाई का सामना करें। ‘हमारा लोकतंत्र उतना ही मजबूत है, हम जितने मजबूत लोगों को चुन कर सत्ता में बैठाते हैं।’ यह एक बड़ा सवाल है कि जो लोग दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता बनना चाहते हैं, उनके लिए कुछ न्यूनतम शैक्षिक योग्यता तय की जानी चाहिए या नहीं। इसका जवाब निश्चित रूप से हां है।
हमने लंबे समय तक सबको चुनाव लड़ने के अधिकार को भारतीय लोकतंत्र के आधार स्तंभ के तौर पर देखा है और समान रूप से महत्वपूर्ण अच्छी सरकार और अच्छे शासन की जरूरत को उतना महत्व नहीं दिया।यह दावा करना कि चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता की जरूरत अलोकतांत्रिक और अभिजातवादी विचार है, निश्चित रूप से यथास्थिति को बनाए रखने के लिए एक चालाकी भरा तर्क है।
एक नेता और चुने हुए प्रतिनिधि के बीच अंतर है। नेता पार्टी के स्तर पर काम करता है, जबकि चुना गया प्रतिनिधि कानून बनाने की प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है। आज की दुनिया में प्रतिस्पर्धा दिनों दिन बढ़ती जा रही है। इस दुनिया में नीतिगत फैसलों के दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं। क्या हम अब भी ऐसे सांसद- विधायक को कानून बनाने देंगे, जो बुनियादी शिक्षा के स्तर को भी पूरा नहीं करते।
आलोचक उच्च शिक्षित नेताओं और सांसदों विधायकों के भ्रष्टाचार की कहानियों की ओर इशारा करेंगे। वे गलत नहीं हैं, लेकिन उनका तर्क सही नहीं है। शिक्षा ईमानदारी सुनिश्चित नहीं करती है, लेकिन यह प्रभावी सरकार और अच्छे शासन के लिए जरूरी उपकरण है।
शिक्षक से ड्राइवर तक सबके लिए...
बुनियादी शैक्षिक कौशल के बिना सांसद या विधायक उसी तरह से हैं जैसे मेडिकल प्रशिक्षण के बिना एक अच्छी नीयत वाला सर्जन, जो अपने काम के लिए खतरनाक तरीके से जरूरी तैयारी के बिना अपना काम करने जा रहा है। कोई भी अच्छे इरादे वाले लेकिन खराब तरीके से प्रशिक्षित और अयोग्य सर्जन के चाकू के नीचे आने का खतरा नहीं उठाना चाहेगा।
निश्चित रूप से यह अभिजात राजनीतिक वर्ग को मजबूती देने के बारे में नहीं है। यह एक बुनियादी मानक तय करने के बारे में है, जो हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों के काम की गंभीरता को दिखाती हो। हमारे देश में सभी दूसरे प्रोफेशन जैसे शिक्षक, ड्राइवर, इंजीनियर, इलेक्ट्रीशियन के लिए बुनियादी योग्यता की जरूरत है। देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण काम करने वालों के लिए ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए?यह भी पढ़ें - देश कैसे चलाया जाए, क्या शिक्षा काफी है; पढ़िए इस पर क्या बोले एक्सपर्ट
आम तौर पर कहा जाता है कि जनप्रतिनिधियों के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता तय करने से आबादी का एक बड़ा हिस्सा चुनाव नहीं लड़ पाएगा। यह तर्क सही है लेकिन इसमें दूरदर्शिता का अभाव है। हमे यथास्थिति को बनाए रखने के लिए एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल करने के बजाए इसे शैक्षिक तंत्र को सुधारने की जरूरत के तौर पर देखना चाहिए। राजनीतिक प्रतिनिधित्व को शैक्षिक योग्यता से जोड़ कर हम समुदायों को एक तरह का प्रोत्साहन देंगे कि वे शिक्षा पर जोर दें।
यह विचार कि सिर्फ औपचारिक शिक्षा से वंचित व्यक्ति ही गरीबों के मुद्दे को समझ सकता है, डरावना और खतरनाक है। शिक्षा व्यक्ति की सोच को विस्तार देती है और उसे समस्याओं का एक से अधिक तरीके से समाधान करने के लिए तैयार करती है।यह भी पढ़ें - Haryana Election 2024: हरियाणा में पंचायत चुनाव के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता तय है तो फिर सांसद और विधायक के लिए क्यों नहीं?
हरियाणा ने पंचायत चुनावों के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता तय की है। इस पहल से लोगों में शिक्षा के प्रति दिलचस्पी बढ़ी है और ज्यादा महिलाएं पंचायत स्तर की राजनीति में प्रवेश कर रहीं हैं।-देवेंद्र दिलीप पई , संस्थापक, इंडियन इंस्टीट्यूट आफ डेमोक्रेटिक लीडरशिप