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Quota within quota: आरक्षण में भी 'दबंग' सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत जातियां; दशकों पुरानी है लाभ न मिल पाने की शिकायत

Supreme court quota within quota verdict आरक्षण का फायदा कुछ चुनिंदा जातियां ही उठा रही हैं बाकी कमजोर जातियों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस बात पर लंबे समय से चर्चा हो रही है। अब सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों-अनुसूचित जनजातियों यानी एससी-एसटी समुदाय में आरक्षण के भीतर आरक्षण का रास्ता साफ कर दिया है। इस मामले पर पहले कब-कब पहल हुई...?

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Wed, 07 Aug 2024 03:39 PM (IST)
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दशकों पुरानी है आरक्षण का लाभ न मिल पाने की शिकायत।

डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ शुरू हुए आंदोलन के चलते चुनी हुई सरकार गिर गई। अगर भारत की बात करें तो यहां अनुसूचित जातियों में अधिक पिछड़ी जातियों की यह शिकायत सदी के छठे दशक से ही रही है कि उनमें से ही सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत जातियां उनको आरक्षण के फायदे से वंचित कर रही हैं। हालांकि, कानून बनाकर उनकी शिकायतों को दूर करने की पहल होने में बहुत समय लगा।

पहली बार आंध्र प्रदेश ने बनाया कानून

पहली बार आंध्र प्रदेश ने एपी शेड्यूल्ड कास्ट्स (रेशनलाइजेशन आफ रिजर्वेशंस) एक्ट,2000 बनाया। इस कानून में अनुसूचित जातियों यानी एससी को चार श्रेणियों में बांटा गया और उनमें आरक्षण का विभाजन किया।

15% एससी आरक्षण को ऐसे बांटा

  • ग्रुप ए - 1 प्रतिशत
  • ग्रुप बी -  7 प्रतिशत
  • ग्रुप सी- 6 प्रतिशत
  • ग्रुप डी -  1 प्रतिशत

हाई कोर्ट ने इस कानून को बरकरार रखा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने ईवी चिन्नैया मामले में यह कहते हुए कानून को खारिज कर दिया कि एससी समरूप समूह है, इसका उप वर्गीकरण नहीं किया जा सकता।

पंजाब के कानून को हाईकोर्ट ने किया खारिज

साल 2006 में पंजाब शेड्यूल्ड कास्ट्स एंड बैकवर्ड क्लासेज (रिजर्वेशन इन सर्विसेज) एक्ट बनाया गया। इस कानून के तहत 25 प्रतिशत आरक्षण एससी को दिया गया। इस 25 प्रतिशत आरक्षण में से 50 प्रतिशत एससी जातियों जैसे वाल्मीकि और मजहबी सिख को सीधी भर्तियों में दिए जाने का प्रावधान था।

हाई कोर्ट ने 2010 में चिन्नैया फैसले के आधार पर इसे खारिज कर दिया। जब पंजाब ने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपील की तो सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में इस मामले को सात न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया। एससी समुदाय में जातियों के आरक्षण के फायदों से वंचित होने का इतिहास दशकों पुराना है।

एससी समुदाय को चार वर्गो में बांटने की सिफारिश

साल 1997 में आंध्र प्रदेश सरकार ने न्यायाधीश पी रामचंद्र राजू कमीशन गठित किया। कमीशन की राय थी कि एससी समुदाय में आरक्षण का फायदा कुछ खास जातियों को मिला है। इसलिए कमीशन ने एससी समुदाय को चार वर्गों में बांटने की सिफारिश की थी।

साल  2001 में उत्तर प्रदेश सरकार ने हुकुम सिंह समिति का गठन किया। इस समिति ने पाया कि आरक्षण का फायदा सबसे कमजोर वर्गों तक नहीं पहुंचा है। समिति ने एससी/ओबीसी की सूची के उप वर्गीकरण की सिफारिश की।

लहूजी साल्वे कमीशन

2003 में, महाराष्ट्र ने एससी की लिस्ट में मांग जाति की सामाजिक आर्थिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए लहूजी साल्वे कमीशन गठित किया। कमीशन ने एससी समुदाय के उप वर्गीकरण की सिफारिश की क्योंकि मांग जाति जातियों के पदानुक्रम में निचले पायदान पर थी और उनको आरक्षण का खास फायदा नहीं हुआ था।

न्यायाधीश सदाशिव पैनल

साल 2005 में कर्नाटक सरकार ने एससी समुदाय में आरक्षण का लाभ न पाने वाली जातियों की पहचान के लिए न्यायाधीश सदाशिव पैनल गठित किया। पैनल ने 101 जातियों को चार कैटेगरी में बांटकर एससी के लिए कुल 15 प्रतिशत आरक्षण प्रत्येक श्रेणी में बांटने की सिफारिश की।  

साल 2007 में बिहार के महादलित पैनल ने एससी की लिस्ट में से 18 जातियों को अत्यधिक कमजोर जातियों के तौर पर शामिल करने की सिफारिश की।

इसी वर्ष राजस्थान की न्यायाधीश जसराज चोपड़ा समिति ने गुज्जर जाति को अत्यंत पिछड़ा बताते हुए ओबीसी जातियों के लिए उपलब्ध सुविधाओं से बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने की सिफारिश की। 2008 में, तमिलनाडु के न्यायाधीश एमएस जनार्थनम पैनल ने सिफारिश की थी कि अरुंथथियर के साथ आरक्षण के मामले में अलग व्यवहार किया जाना चाहिए।

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एससी उप वर्गीकरण आंदोलन : 1994 से 2024

  • 1994 एससी समुदाय में उप वर्गीकरण की मांग को लेकर आंदोलन अविभाजित आंध्र प्रदेश में शुरू हुआ। नेतृत्व मदीगा आरक्षण पोराता समिति के अध्यक्ष मंदा कृष्ण मडिगा ने किया।
  • 1996 टीडीपी सरकार ने उप वर्गीकरण के मुद्दे का अध्ययन करने के लिए न्यायाधीश पी रामचंद्रन राजू कमीशन नियुक्त किया।
  • 1997 कमीशन ने एससी का उप वर्गीकरण चार समूहों में किए जाने की सिफारिश की। हर समूह के लिए अलग से आरक्षण का प्रस्ताव।
  • 2004 संप्रग सरकार ने एससी उप वर्गीकरण के परीक्षण के लिए न्यायाधीश उषा मेहता पैनल बनाया।
  • 2008 उषा मेहता कमीशन ने रिपोर्ट सौंपी, एससी समुदाय में उप वर्गीकरण की अनुमति देने के लिए अनुच्छेद 341 में संशोधन की सिफारिश की।  केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जारी मुकदमे का हवाला देते हुए रिपोर्ट लागू करने से इनकार कर दिया।
  • 2014 तेलंगाना के गठन के बाद बीआरएस सरकार ने विधानसभा में एससी उप वर्गीकरण के पक्ष में प्रस्ताव पारित करके केंद्र को भेजा।
  • 2023 विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस और भाजपा ने एससी उप वर्गीकरण का वादा किया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी भाजपा की ओर से उप वर्गीकरण का वादा किया।

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