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1947 में कैसे हुआ था फौज, खजाना, बग्‍घी और हाथी का बंटवारा? 78 साल पहले बॉर्डर ही नहीं बहुत कुछ बंटा था

14 अगस्त 1947 को विभाजन होकर नया देश पाकिस्‍तान बना था। जब धर्म के नाम पर देश के टुकड़े हुए तो सबसे मुश्किल काम था चल-अचल संपत्तियों का बंटवारा। विभाजन के दौरान दोनों के देशों के बीच सैनिक व सैन्य संपत्तियां खजाना शाही वाहनकार्यालय फर्नीचर स्टेशनरी आइटम यहां तक कि बल्‍ब और पेन-पेंसिल तक का बंटवारा हुआ था। यहां पढ़िए विभाजन के समय संपत्तियों का बंटवारा कैसे हुआ..

By Deepti Mishra Edited By: Deepti Mishra Updated: Wed, 14 Aug 2024 08:28 PM (IST)
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Partition for India: ब्रिटिश भारतीय सैनिकों से बात करते भारत के अंतिम वायसराय एडमिरल लॉर्ड लुईस माउंटबेटन। फोटो- NAM

डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। Independence and Partition, 1947:  देश 78वां स्‍वतंत्रता दिवस का जश्‍न मना रहा है। इससे एक दिन पहले 14 अगस्त 1947.. यानी वो दिन जब ब्रिटिश राज से मुक्ति मिली। साथ ही भारत का बंटवारा हुआ और नया राष्ट्र बना पाकिस्‍तान। धर्म के नाम पर देश के टुकड़े हुए तो सबसे मुश्किल काम था विभिन्न संपत्तियों का बंटवारा। क्‍या आप जानते हैं कि उस वक्त बंटवारा कैसे हुआ था?  फौज, खजाना, बग्‍घी और हाथी को कैसे बांटा गया? जॉयमनी नाम की हथिनी को लेकर क्यों विवाद हुआ था?

यहां पढ़िए विभाजन के समय संपत्तियों का बंटवारा कैसे हुआ..

अंग्रेजों का जाना और भारत-पाकिस्तान का विभाजन होना तय हो गया था। तब ब्रिटिश वकील सर सिरिल रैडक्लिफ को बॉर्डर बनाने का काम दिया गया, जिसके उस पार का हिस्सा पाकिस्तान और इस पार भारत बना। इसी के साथ भौगोलिक विभाजन पूरा हो गया। अब सवाल यह उठा कि फौज, खजाना और सांस्कृतिक वस्तुओं का बंटवारा कैसे किया जाए।

16 जून 2024 को पंजाब विभाजन समिति का गठन किया गया। इसका काम था- वित्त, सेना और वरिष्ठ प्रशासनिक सेवाओं के विभाजन के साथ ही उनके कार्यालय और उपकरणों का बंटवारा कैसे किया जाए, यह हल निकालना। हालांकि, बाद में इस समिति का नाम विभाजन परिषद कर दिया गया था, जिसमें सरदार वल्लभभाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद और मुहम्मद अली जिन्ना भी शामिल थे।

कैसे हुआ था फौज का बंटवारा?

14 अगस्त 1947 को पुरानी भारतीय सेना को खत्म करने का आदेश आ गया। ऑर्डर पर औचिनलेक और मेजर जनरल रेजिनाल्ड सेवरी के हस्ताक्षर थे।  ब्रिटिश भारतीय सेना का यह आखिरी आदेश था।

सैनिकों से कहा गया कि वह अपनी मर्जी से भारत या नए बने राष्ट्र पाकिस्तान को चुन सकते हैं। इसमें भी एक शर्त रखी गई थी। एचएम पटेल की किताब 'राइट्स ऑफ पैसेज' के मुताबिक, शर्त यह थी कि पाकिस्तान का कोई भी मुस्लिम भारतीय राज्य में और भारत का कोई गैर-मुस्लिम पाकिस्तान के सशस्त्र बलों में शामिल नहीं हो सकता।

ब्रिटेन के नेशनल आर्मी म्यूजियम की रिपोर्ट के मुताबिक, विभाजन के बाद दो तिहाई जवान भारत को मिले और एक तिहाई पाकिस्तान चले गए। इस तरह 260,000 जवानों ने भारतीय सेना और करीब 140,000 ने पाकिस्तान को चुना था। पाकिस्तान को चुनने वालों में ज्यादातर मुस्लिम थे।

सिर्फ 2% मुस्लिम सैनिक नहीं गए पाकिस्तान

रिपोर्ट की माने तो 98 फीसदी मुस्लिम सैनिकों ने मुल्‍क के तौर पर पाकिस्तान को चुना था, जबकि सिर्फ 554 मुस्लिम अधिकारियों ने ही भारत में रहने का फैसला किया था। विभाजन से भारतीय सेना में करीब 36 फीसदी मुसलमान थे, जो घटकर 2 फीसदी रह गए।

इनमें ब्रिगेडियर मुहम्मद उस्मान, ब्रिगेडियर मुहम्मद अनीस अहमद खान और लेफ्टिनेंट कर्नल इनायत हबीबुल्लाह जैसे कुछ अधिकारी शामिल थे, जिन्होंने भारत को अपना वतन चुना था।

कई सैनिकों का नहीं तय हो पाया वतन

प्रोफेसर वजीरा जमींदार की किताब ‘द लॉन्ग पार्टिशन एंड द मेकिंग ऑफ मॉडर्न साउथ एशिया’ में इसका जिक्र मिलता है। किताब के मुताबिक, लखनऊ के गुलाम अली कृत्रिम अंग बनाते थे। विभाजन के वक्त वह पाकिस्तान की मिलिट्री वर्कशॉप में थे। उनको लखनऊ वापस जाने से मना कर दिया और पाकिस्तान की सेना में शामिल कर लिया गया था।

पाकिस्तानी सेना ने 1950 में गुलाम अली को यह कहकर निकाल दिया कि तुम भारत के नागरिक हो। जब वह भारत लौटे तो उन्‍हें पाकिस्‍तानी सैनिक मानकर बिना परमिट के सीमा पार करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।

1951 में अली को जेल से रिहा कर पाकिस्तान भेज दिया। अली ने छह साल तक अली दोनों देशों की जेल और रिफ्यूजी कैंपों में काटे। इसके बाद उन्हें पाकिस्तान में एक मुसलमान सैनिक माना गया और इस आरोप में जेल भेज दिया गया कि वह हिंदू कैदियों के कैंप में रह रहा था।

वित्त का बंटवारा

सेना के बंटवारे के बाद दूसरी बड़ी चुनौती यह थी कि धन का बंटवारा कैसे किया जाए। विभाजन समझौते के अनुसार, पाकिस्तान को ब्रिटिश भारत की संपत्ति और देनदारियों का 17.5 प्रतिशत हिस्सा मिला।

विभाजन परिषद ने तय किया था कि..

  • एक ही केंद्रीय बैंक एक साल तक दोनों देशों में सेवाएं संचालित करेगी।
  • 31 मार्च, 1948 तक दोनों देश मौजूदा सिक्के और मुद्रा को जारी रखेंगे।
  • 1 अप्रैल से 30 सितंबर, 1948 के बीच पाकिस्तान नई मुद्रा पेश करेगा, लेकिन पुरानी करेंसी भी वैध रहेगी।
  • रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नोट पाकिस्‍तान सरकार की मुहर के साथ वहां सालों-साल चलते रहे। 

बंटवारे में पाकिस्तान को कितने रुपये मिले थे?

दस्‍तावेज बताते हैं कि बंटवारे में पाकिस्‍तान को कुल 75 करोड़ रुपये दिए गए थे। भारत ने समझौते के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान को 20 करोड़ रुपये दे दिए। बंटवारा होते ही पाकिस्तान की ओर से कबायलियों के भेष में आए सैनिकों ने कश्‍मीर में हमला किया।

इससे नाखुश भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल दो-टूक कह दिया था कि कश्‍मीर पर प्रस्ताव के बिना पाकिस्तान को कोई भुगतान नहीं होगा।

महात्मा गांधी से इससे नाराज हो गए। समझौते के मुताबिक पाकिस्तान को 75 करोड़ रुपये और दिए जाएं, इसके लिए अनशन पर बैठ गए। ऐसे में पटेल की आपत्तियों के बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को मजबूरन 15 जनवरी 1948 को पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने पड़े थे।

पाकिस्तान पर भारत का कितना कर्ज है?

मजेदार बात यह है कि दोनों देश दावा करते हैं कि आज भी एक-दूसरे पर उनका पैसा बकाया है। भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2022-2023 से पता चलता है कि पाकिस्तान पर भारत का 300 करोड़ रुपये का कर्ज है। वहीं, 2014 में पाकिस्तान के स्टेट बैंक ने कहा था कि भारत पर उसका 560 करोड़ रुपये बकाया है।

सिक्का उछाल कर हुआ बग्घी का बंटवारा

विभाजन के दौरान दोनों देशों में चल-अचल संपत्तियों को लेकर खूब हंगामा हुआ था, लेकिन सबसे ज्यादा खींचतान वायसराय की घोड़ागाड़ी या बग्घी के लिए हुई थी।

किताब फ्रीडम ऐट मिडनाइट के मुताबिक, वायसराय के पास हाथ से गढ़ी सोने और चांदी से बनी 12 बग्घी थीं। इनमें से छह बग्घी सोने और छह चांदी की थीं। जिन पर शानदार सजावट थी और लाल मखमली गद्दियां लगी थीं। भारत के वायसराय और शाही मेहमानों को इनमें बिठाकर राजधानी में घुमाया जाता था।

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समस्या ये थी कि बग्घियों के सेट को तोड़ना ठीक नहीं था। ऐसे में तय किया गया कि एक को सोने की और दूसरे देश को चांदी की बग्‍घी दे दी जाए। दोनों देश सोने की बग्घी लेने पर अड़े रहे। कई दिनों तक बहस-बाजी हुई, लेकिन कोई फैसला नहीं हो पाया।

फिर तय हुआ कि सिक्का उछाल कर फैसला कर लिया जाए। तब वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के ए.डी.सी. लेफ्टिनेंट कमांडर पीटर होज ने अपनी जेब से चांदी का सिक्का निकाला और हवा में उछाल दिया।

इस दौरान पाकिस्‍तानी सेना के उस वक्‍त नए-नए नियुक्त हुए कमांडर मेजर याकूब खां और भारतीय सेना के कमांडर मेजर गोविंद सिंह भी खड़े थे। विभाजन से पहले दोनों वायसराय के बॉडीगार्ड थे। सिक्‍का खनकता हुआ गिरा तो तीनों देखने लगे तभी मेजर गोविंद सिंह खुशी से चिल्‍लाए- सोने की बग्घियां भारत की हुईं।

ऐसे हुआ हाथी जॉयमनी का बंटवारा

अन्वेषा सेनगुप्ता के शोध पत्र 'ब्रेकिंग अप: डिवाइडिंग एसेट्स बिटवीन इंडिया एंड पाकिस्तान इन टाइम्स ऑफ पार्टीशन' (Breaking up: Dividing assets between India and Pakistan in times of Partition) के मुताबिक, संपत्ति के बंटवारे के दौरान बंगाल के वन विभाग के स्वामित्व वाला एक हाथी जॉयमनी को लेकर भी रस्‍साकसी हुई थी।

दरअसल, उस वक्‍त हाथी जॉयमनी की कीमत एक स्टेशन वैगन (लग्जरी कार) के बराबर थी। तय हुआ था कि पश्चिम बंगाल को वाहन मिलेगा और पूर्वी बंगाल को जॉयमनी। विभाजन के वक्त जॉयमनी पश्चिम बंगाल के मालदा में थी।

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जॉयमनी को पूर्वी बंगाल भेजने के खर्च को लेकर मालदा के कलेक्टर ने कहा कि पूर्वी बंगाल सरकार को हाथी का भुगतान करना चाहिए, क्योंकि यह उनके हिस्से में आई है।

वहीं पाकिस्‍तान की ओर से कहा गया कि मालदा ने हाथी का इस्तेमाल किया था, इसलिए उन्हें खर्च वहन करना चाहिए। अंततः राजनयिक हलकों में जाने के बाद यह विवाद सुलझा।

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(सोर्स: खबर में  फैक्‍ट और फोटो ब्रिटेन के नेशनल आर्मी म्‍यूजियम, नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी, जागरण अर्काइव और एजेंसी से लिए गए हैं)