New Criminal Laws: हवा हुईं दफा 302 और 420; हत्या, दुष्कर्म और लूट-डकैती के लिए अब लगेंगी कौन-सी धाराएं?
एक जुलाई से देश में आईपीसी सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह तीन नए कानून- भारतीय न्याय संहिता (BNS) भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू हो गए हैं। रविवार रात 12 बजे से यानी एक जुलाई की तारीख शुरू होने के बाद घटित हुए सभी अपराध नए कानून में दर्ज किए जा रहे हैं। किस धारा में कौन-सा अपराध दर्ज होगा यहां पढ़िए
BNS यानी भारतीय न्याय संहिता में क्या बदला?
अपराध | आईपीसी की धारा | बीएनएस की धारा | सजा |
हत्या | 302 | 103 | मृत्यु या उम्रकैद और जुर्माना। |
लापरवाही से मौत | 304-A | 106 | 5 साल की सजा और जुर्माना या फिर दोनों। |
दहेज हत्या | 304(B) | 80 | सात साल से उम्रकैद तक की सजा और जुर्माना। |
हत्या का प्रयास | 307 | 109 | पांच साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा और जुर्माना। |
आत्महत्या का प्रयास | 309 | 226 | एक साल की जेल/ जुर्माना/फिर दोनों/सामुदायिक सेवा। |
बाल हत्या | 315 | 91 | साल की जेल या जुर्माना या फिर दोनों। |
दंगा करना | 147 | 191 (2) | दो साल की जेल या जुर्माना/जेल और जुर्माना दोनों। |
छेड़छाड़ | 354 | 74 | एक साल से पांच साल की सजा और जुर्माना। |
यौन उत्पीड़न | 354(A) | 75(2) | तीन साल की कठोर जेल/जुर्माना/फिर दोनों। |
पीछा करना | 354(D) | 75(2) | तीन साल की जेल या जुर्माना या फिर दोनों। |
दुष्कर्म | 376 | 64 | 10 साल की कठोर सजा, जिसे उम्रकैद भी किया जा सकता है और जुर्माना। |
रेप व हत्या/मृतावस्था में पहुंचाना | 376 (A) | 66 | 20 साल का कठोर कारावास जिसे उम्रकैद भी किया जा सकता है और जुर्माना। |
सामूहिक दुष्कर्म | 376(D) | 70 (1) | 20 साल का कठोर कारावास जिसे उम्रकैद भी किया जा सकता है और जुर्माना। |
चोरी | 379 | 303(2) | एक से पांच साल का कठोर कारावास और जुर्माना |
वाहन या घर-पूजा स्थल में चोरी | 380 | 305 | सात साल की सजा और जुर्माना। |
रंगदारी | 384 | 308(2) | गैर-जमानती; सात साल की जेल या जुर्माना या दोनों |
डकैती में हत्या | 396 | 310(3) | 10 साल का कठोर कारावास या उम्रकैद या मृत्युदंड और जुर्माना |
धोखाधड़ी | 420 | 318 | अधिकतम सात साल तक की सजा और जुर्माना/फिर दोनों |
गैर-कानूनी सभा | 141-144 | 187-189 | छह माह तक का कारावास या जुर्माना या दोनों। |
मानहानि | 499 | 356 | दो वर्ष तक जेल या जुर्माने या दोनों |
सोर्स: यह तस्वीर एआई से बनाई गई है।
भारतीय न्याय संहिता में नया क्या है?
- शादी का झांसा देकर यौन शोषण करना अब अपराध है।
- मॉब लिंचिंग के लिए अलग से कानून बनाया गया।
- आतंकवाद को आपराधिक कानूनों में शामिल किया।
- संगठित अपराध -डकैती, चोरी, कब्जा, तस्करी, साइबर क्राइम और रंगदारी के लिए अलग कानून बना।
- सरकारी अधिकारी को ड्यूटी करने से रोकने व सुसाइड का प्रयास करना अब अपराध होगा।
- विरोध प्रदर्शन के दौरान आत्मदाह व भूख-हड़ताल को रोकने के लिए इसको लागू किया जा सकता है।
- नाबालिग से गैंगरेप में फांसी की सजा होगी।
- नाबालिग पत्नी से जबरन संबंध बनाना अब रेप माना जाएगा।
- छोटे अपराधों में अब कम्युनिटी सर्विस की सजा देने का प्रावधान।
भारतीय न्याय संहिता से क्या हटाया गया?
- जबरन अप्राकृतिक संबंध बनाना अब गैरकानूनी नहीं है।
- एक्स्ट्रा मैरिटल विवाहेतर संबंध को अपराध की श्रेणी से हटाया। यानी अब ये जुर्म नहीं है।
- बच्चों से जुड़े अधिकतर अपराधों में लैंगिक असमानता को हटाया।
- अब पुरुषों और ट्रांसजेंडरों के साथ कुकर्म के लिए कोई कानून नहीं।
कानून में और क्या नया
1. पुलिस रिमांड: 15 दिन से बढ़ाकर 90 दिन
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में पुलिस रिमांड की समय-सीमा को 15 दिन से बढ़ाकर 90 दिन की गई। अब पुलिस के पास ये अधिकार है कि वह 90 दिन की रिमांड को एक साथ या टुकड़ों-टुकड़ों ले सकती है। यानी पुलिस तीन महीने तक आरोपी को हिरासत में रख सकती है।
- अगर किसी मामले में 15 दिन पूरे होने से पहले जमानत मिल गई तो पुलिस एक दिन पहले रिमांड के लिए आवेदन कर सकती है और ऐसे में जमानत रद हो जाएगी।
पहले क्या था कानून?
- सीआरपीसी की धारा 167(2) में प्रावधान था कि पुलिस अधिकतम आरोपी को 15 दिन ही रिमांड में रख सकती थी। 16वें दिन आरोपी को न्यायिक हिरासत यानी जेल भेजना अनिवार्य था। इसका उद्देश्य पुलिस को सही तरीके से समय पर जांच पूरी करने को प्रोत्साहित करना और रिमांड में यातना और जबरन कबूलनामे की आशंका को कम करना था।
2. पुरुष और ट्रांसजेंडर: इनके लिए नहीं है कुकर्म का कानून
भारतीय न्याय संहिता (BNS) में अप्राकृतिक यौन संबंध वाली आईपीसी की धारा 377 को पूरी तरह से हटा दिया गया है। यानी कि अप्राकृतिक यौन संबंध अब अपराध नहीं है। अब अगर कोई पुरुष दूसरे पुरुष या ट्रांसजेंडर संग बिना सहमति के अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है तो पीड़ितों के लिए कोई कानून नहीं है। इसके अलावा, अगर पति अपनी पत्नी से जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध (unnatural sex) बनाता है तो उस मामले में बीएनएस में कोई प्रावधान नहीं है।
3. थानों में डिजिटल डिस्प्ले पर नजर आएगा आरोपी का नाम
बीएनएसएस की धारा 37 के मुताबिक, पुलिस थानों और जिलों में एक नॉमिनेटेड पुलिस अधिकारी होगा, जो गिरफ्तार किए आरोपी का नाम, पता और उसके खिलाफ लगाए गए अपराध की जानकारी रखेगा। साथ ही उसकी यह भी जिम्मेदारी होगी कि आरोपी से संबंधित जानकारी हर पुलिस स्टेशन और जिला मुख्यालय में डिजिटल मोड सहित किसी भी तरीके से प्रमुखता से डिस्प्ले की जाए।
4. सजा के तौर पर सामुदायिक सेवा
भारतीय न्याय संहिता और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में सजा के तौर पर सामुदायिक सेवा (community service) को भी शामिल किया गया है। भारतीय न्याय संहिता की धारा 4 (F) के मुताबिक, मौत की सजा, आजीवन कारावास, कठोर और साधारण जेल जैसी सजाओं के बीच 'सामुदायिक सेवा' के बारे में बताया गया है। सामुदायिक सेवा यानी वह काम, जिससे समाज का भला हो और अदालत किसी दोषी को सजा के तौर पर ऐसा काम करने का आदेश दे सकती है।
5. गैरहाजिरी में चलेगा केस
बीएनएसएस की धारा 355(1) में किसी भी आपराधिक मामले में आरोपी पर उसकी गैर-हाजिरी में भी केस चलाया जा सकता है और दोषी भी ठहराया जा सकता है।
6. पुलिस को FIR से पहले करनी होगी प्राथमिक जांच
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 173(3) में ऐसे संज्ञेय अपराध जिनमें 3 से 7 साल की सजा है, उनकी FIR के पहले प्राथमिक जांच करने की बात कही गई है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में 'ललिता कुमार बनाम उत्तर प्रदेश सरकार' के मामले में फैसला सुनाया था कि संज्ञेय अपराध का पता चलने पर एफआईआर दर्ज होनी चाहिए।
हालांकि, अपवाद के तौर पर केवल कुछ मामलों में ही एफआईआर के पहले प्राथमिक जांच की छूट दी गई थी। यानी कि BNSS की यह धारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है।
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7. बच्चों व महिलाओं के खिलाफ अपराध में जांच की समय सीमा तय
BNSS की धारा 193 के तहत अब बच्चों और महिलाओं से जुड़े गंभीर अपराध के मामले में शिकायत मिलने के दो माह के भीतर जांच खत्म करना अनिवार्य कर दिया गया है। बता दें कि पहले सीआरपीसी की धारा 176 में केवल यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच दो महीने के अंदर खत्म करने के निर्देश दिए गए थे।
कानून में डिजिटल की भूमिका अहम
पुलिस चौकी-थाने जाए बिना भी हो सकेगी FIR
- बीएनएसएस की धारा 173 के मुताबिक, अब हत्या, लूट, रेप जैसे गंभीर मामलों में भी बगैर पुलिस स्टेशन जाए ऑनलाइन एफआईआर दर्ज करवा सकते हैं। बता दें कि पहले कुछ राज्यों में चोरी जैसे अपराधों में ही ई-एफआईआर दर्ज कराई जा सकती थी, लेकिन अब देश भर में किसी भी पुलिस स्टेशन में ई-एफआईआर दर्ज करवा सकते है।
- BNSS की धारा 173 में जीरो एफआईआर का भी प्रावधान है, जिसके मुताबिक, घटना किसी भी थाना क्षेत्र की क्यों न हो, उसकी एफआईआर किसी भी जिले अथवा थाने में कराई जा सकती है। बता दें कि पहले पुलिस फरियादी को थाना क्षेत्र का हवाला देकर वापस भेज देती थी।
सोर्स: यह तस्वीर एआई से बनाई गई है।
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केस और गिरफ्तारी की जानकारी अब फोन पर मिलेगी
- BNSS की धारा 193 के मुताबिक, मामला दर्ज कराने वाले शख्स को केस और उससे जुड़ी हर अपडेट 90 दिन के भीतर मोबाइल नंबर पर एसएमएस के जरिए मिलेगी। बता दें सीआरपीसी में इसकी सुविधा नहीं थी।
- BNSS की धारा 36 में प्रावधान है कि गिरफ्तार होने के बाद आरोपी को अपनी गिरफ्तारी की जानकारी किसी एक व्यक्ति को देने का अधिकार है। ताकि गिरफ्तार व्यक्ति को कानूनी मदद मिल सके और कानूनी प्रक्रिया में तेजी आ सके।
किन मामलों में फॉरेंसिक जांच जरूरी?
BNSS की धारा 176 के मुताबिक, गंभीर अपराध के सभी केस में फॉरेंसिक जांच जरूरी है। गंभीर अपराध यानी ऐसे मामले जिनमें सात साल से ज्यादा सजा का प्रावधान है, उनमे फॉरेंसिक एक्सपर्ट को अपराध वाली जगह (Crime scene) पर जाकर सबूत इकट्ठे करने होंगे। इतना ही नहीं, पुलिस को किसी के घर की तलाशी लेने के दौरान वीडियोग्राफी करनी होगी।
घर बैठे ई-एफआईआर कैसे दर्ज करें?
- दिल्ली पुलिस की वेबसाइट पर लॉग इन करें अथवा किसी भी ई-संचार के माध्यम से संबंधित पुलिस स्टेशन को शिकायत भेजें।
- घटना का विवरण, व्यक्तिगत जानकारी भरें और सहायक दस्तावेज अपलोड करें।
- ई-एफआईआर को शुरुआती जांच के लिए जांच अधिकारी के पास भेजा जाता है।
- मामला बनता है या नहीं, यह पता लगाने के लिए जांच अधिकारी के पास अधिकतम 14 दिन का समय होता है।
- अगर तत्काल कार्रवाई की जरूरत है तो शिकायतकर्ता मामला दर्ज कराता है और SHO एफआईआर रिवयू कर इसे जांच अधिकारी को सौंपता है।
- शिकायतकर्ता को निश्शुल्क एफआईआर कॉपी दी जाती है।
जीरो-एफआईआर कैसे होती है?
- कोई शिकायतकर्ता किसी भी पुलिस स्टेशन में संज्ञेय अपराध (cognisable) की शिकायत दर्ज करवा सकता है।
- ड्यूटी पर तैनात SHO/अधिकारी जीरो एफआईआर दर्ज कर सकता है।
- इसके बाद मामले को उस थाने में भेज दिया जाता है, जहां घटना हुई है।
- इसके बाद स्थानीय SHO आगे की कार्रवाई के लिए प्राथमिकी को एक जांच अधिकारी को सौंपता है।
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(सोर्स: भारतीय न्याय संहिता-2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023, भारतीय साक्ष्य अधिनियम-2023 और आईपीसी -1860)