What is the Two Finger Test मेघालय सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राज्य में टू-फिंगर टेस्ट पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। अब सवाल ये है कि जब 2013 में ही सुप्रीम कोर्ट ने रेप केस में टू-फिंगर टेस्ट के इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक लगा दी थी तो फिर राज्यों में रेप केस के मामले में टू-फिंगर टेस्ट क्यों हो रहे हैं?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मेघालय सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि राज्य में रेप केस में होने वाली जांच 'टू-फिंगर टेस्ट' पर रोक लगा दी है। इसका पालन न करने वालों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
मेघालय सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल अमित कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि राज्य के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग 27 जून, 2024 को एक नोटिफिकेशन जारी करके पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था।
दरअसल, पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी करार व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने मेघालय में दुष्कर्म पीड़िता का टू फिंगर टेस्ट करने को लेकर फटकार लगाई थी।
दोषी ने दावा किया था कि पीड़िता का टू फिंगर टेस्ट किया गया था। अब अब मेघालय सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में खुद इसकी जानकारी दी है कि राज्य में टू फिंगर टेस्ट पर राज्य में प्रतिबंध है और इस संबंध में आदेश भी जारी किया जा चुका है।
अब सवाल ये है कि जब 2013 में ही सुप्रीम कोर्ट ने रेप केस में टू-फिंगर टेस्ट के इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक लगा दी थी तो फिर राज्यों में रेप केस के मामले में 'टू-फिंगर टेस्ट' क्यों हो रहे हैं? क्या इसके लिए अभी तक किसी राज्य में डॉक्टर पर कार्रवाई हुई है?
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क्या है टू-फिंगर टेस्ट?
रेप व गैंगरेप के आरोपों में टू-फिंगर टेस्ट से जांच होती है। इसमें डॉक्टर पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में दो उंगलिया डालकर यह पता लगाते हैं कि वह वर्जिन है या नहीं। अगर डॉक्टर की उंगलियां आसानी से चली जातीं तो माना जाता है कि महिला/लड्की सेक्सुअली एक्टिव थी। हालांकि, इससे यह साबित नहीं होता कि पीड़िता के साथ जबरदस्ती हुई है या नहीं।
भारत में कब बैन हुआ था टू-फिंगर टेस्ट?
देश में 2013 में टू-फिंगर टेस्ट पर रोक लगा दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने टू-फिंगर टेस्ट बंद करने का निर्देश दिया। साथ ही टेस्ट के नतीजों को काल्पनिक और निजी राय करार दिया था।सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- ''दुर्भाग्य है कि यह टेस्ट अब भी जारी है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इसके जरिये पीड़िता को बार-बार रेप की तरह ही प्रताड़ित किया जाता है। यह जांच गलत धारणा पर आधारित है। क्या एक सेक्शुअली एक्टिव महिला का बलात्कार नहीं हो सकता है। इसलिए किसी भी स्थिति में यौन उत्पीड़न या रेप सर्वाइवर का टू-फिंगर टेस्ट नहीं होना चाहिए।''
सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि टू-फिंगर टेस्ट करने वाले डॉक्टरों को दोषी ठहराया जाएगा और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। साथ ही भारत सरकार को कहा था कि इससे बेहतर किसी जांच की व्यवस्था करें। इसके बाद साल 2014 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने टू-फिंगर टेस्ट को लेकर गाइडलाइन जारी किए थे। इसके बावजूद कई राज्यों में धड़ल्ले से यह टेस्ट हो रहा है।
अप्रैल, 2022 में मद्रास हाईकोर्ट ने लगाया बैन
अप्रैल 2022 में मद्रास हाईकोर्ट ने टू-फिंगर टेस्ट पर पूरी तरह रोक लगाने का निर्देश दिया था।
WHO ने इसे यौन हिंसा करार दिया
सुप्रीम कोर्ट के रोक लगाने से पहले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) टू-फिंगर टेस्ट को अनैतिक बता चुका था।
डब्ल्यूएचओ ने कहा था-
'' रेप केस में सिर्फ हाइमन की जांच से पूरी जानकारी नहीं मिलती है। टू-फिंगर टेस्ट न सिर्फ मानवाधिकार का उल्लंघन है, बल्कि पीड़िता के लिए दर्द का कारण भी बन सकता है। यह जांच भी एक तरह की यौन हिंसा है, जो पीड़िता को दोबारा रेप का अनुभव कराती है।''
डॉक्टर्स पर लगा पांच लाख का जुर्माना
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 16 जनवरी को एक नाबालिक रेप पीड़िता का टू-फिंगर टेस्ट करने वाले डॉक्टरों को फटकार लगाई। साथ ही राज्य सरकार को आदेश दिया कि सभी दोषी डॉक्टरों से इस अपराध के लिए पांच लाख रुपये का जुर्माना वसूल कर पीड़िता को दिया जाए।जांच करने वाले पेशेवर डॉक्टर्स पर मुकदमा चलाया जाए। बता दें कि ये सभी डॉक्टर पालमपुर सिविल अस्पताल के थे।
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