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बारिश होते ही 66 फीसदी शहर क्यों बन जाते हैं 'तालाब', जलभराव से देश को हजारों करोड़ का नुकसान; क्‍या है समाधान?

देश की राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुंबई समेत तमाम शहरों में बारिश होते ही जलभराव हो जाता है जिससे हाईवे व लोकल सड़कों पर घंटों जाम लगा रहता है। अक्‍सर अंडर ब्रिज में स्‍कूल बस में बच्‍चे फंस जाते हैं तो कारों में भी पानी भर जाता है। आम लोगों का समय ऊर्जा और उत्‍पादकता भी बर्बाद होती है। आखिर इसकी वजह क्या है?

By Deepti Mishra Edited By: Deepti Mishra Updated: Fri, 26 Jul 2024 05:49 PM (IST)
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waterlogging Problem: बारिश के बाद सड़क पर जलभराव। जागरण ग्राफिक्‍स टीम
 दीप्ति मिश्रा, नई दिल्‍ली। दिल्‍ली-एनसीआर हो या फिर अन्य कोई शहर जरा-सी बारिश होते ही सड़कें पानी से लबालब हो जाती हैं। कहीं स्‍कूल बस फंसने तो कहीं कार में पानी भरने जैसी खबरें आम हो गई हैं।

क्‍या आपने कभी सोचा कि सामान्य से थोड़ी-सी ज्यादा बारिश होते ही हमारे देश के छोटे-बड़े तमाम शहर कुछ ही घंटों में 'तालाब' बन जाते हैं, आखिर इसकी वजह क्या है? जल निकासी के तमाम दावे मौका पड़ने पर हवा-हवाई क्यों हो जाते हैं? क्या अन्य देशों के मॉडल इस समस्या को सुलझाने में हमारी मदद कर सकते हैं? इन सभी सवालों के जवाब यहां एक्‍सपर्ट से जानें...

क्‍यों होता है जलभराव?

बारिश के दौरान इन कारणों से होता है शहरों में जलभराव...

1. खाली जमीन न होने के कारण

नई दिल्‍ली स्थित स्‍कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (SPA New Delhi) के प्रोफेसर डॉ. सेवा राम बताते हैं कि देश की आबादी बढ़ती जा रही है। पेड़-पौधे लगातार कम होते जा रहे हैं।

पुराने शहरों में नई-नई इमारतों का निर्माण हो रहा है, लेकिन जल निकासी की नई व मजबूत व्यवस्था पर काम नहीं किया जा रहा है। कंक्रीट बढ़ने के चलते जमीन पानी नहीं सोख पा रही है।

मुंबई में भारी बारिश के बाद जलजमाव वाली सड़क से निकलते वाहन। रॉयटर

शहरों से जल निकासी का एक ही उपाय है कि ड्रेनेज लाइन से पानी को इकट्ठा कर नदियों में छोड़ा जाए। हमारे यहां ड्रेनेज सदियों से वही साइज चला आ रहा है। इसमें भी 60 से 70 प्रतिशत ड्रेनेज सिस्‍टम ब्लॉक होते हैं। इसलिए जब बारिश होती है तो पानी की प्रॉपर निकासी न होने से बैकवॉटर के तौर पर वापस शहरों में घुसता है।

2. सीवर लाइन से नालों को जोड़ना

डॉ. सेवा राम के मुताबिक,  ज्यादातर छोटे-बड़े शहरों में बरसात के पानी की निकासी के लिए स्टॉर्म वॉटर ड्रेन (बरसाती नाले) बनी हुई हैं। जब बनाई जाती हैं, तब ये ठीक होती हैं। बाद में उनमें मिट्टी और कचरा भर जाता है।

दूसरी समस्या ये हैं कि स्टॉर्म वॉटर ड्रेन से ही सीवेज की लाइन भी जोड़ दी जाती है। जबकि ड्रेनेज तकनीक के मुताबिक, ड्रेन पाइप और सीवर पाइप अलग-अलग होने चाहिए।

ऐसे में जब तेज बारिश होती है तो स्टॉर्म वॉटर ड्रेन से पानी सीवर लाइन में आता है या गलियों व सड़कों पर। यही कारण है कि बारिश में सीवर ओवरफ्लो होते हैं, जिससे दूषित पानी गलियों और सड़कों में भर जाता है। 

बारिश के बाद सूरत की एक सड़क पर कुछ इस तरह जलभराव हो गया। एएनआई

3. भविष्‍य को ध्‍यान में रखे बिना टाउनशिप प्लान बनाना

डॉ. सेवा राम कहते हैं कि जरा-सी बारिश में शहरों के 'तालाब' बनने की बड़ी वजह टाउनशिप डेपलवमेट प्लानिंग में भविष्य और डेंसिटी दोनों पर ध्यान न दिए जाना है।

डेंसिटी प्लानिंग यानी किसी क्षेत्र या शहर विशेष में रहने वाले लोगों की संख्या के आधार पर योजना बनाना, लेकिन योजना बनाने वाले आगामी सालों में बढ़ती आबादी का अनुमान लगाए बिना ही बुनियादी ढांचा बना देते हैं।

66 फीसदी शहरों में खराब अर्बन प्लानिंग

एसपीए दिल्‍ली के प्रोफेसर डॉ. सेवा राम के तर्क को सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की ओर की गई रिसर्च पुख्‍ता करती है। सीएसई की रिसर्च में कहा गया है कि देश के करीब 66% से ज्यादा शहरों में अर्बन प्लानिंग खराब है, इस कारण बारिश के दौरान बाढ़ व जलभराव का खतरा रहता है।

जलभराव से होता है भारी आर्थिक नुकसान

जिन शहरों में बारिश में जलभराव होता है, उनको भारी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है। 'यूनाइटेड स्टेट ट्रेड एंड डेवलपमेंट एजेंसी' (USTDA) और केपीएमजी हर दशक में बाढ़ से हुए नुकसान का डाटा जारी करती है।

डेटा पर नजर डालें तो पता चलता है कि पिछले 10 साल में अकेले मुंबई में जलभराव से 14 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।

 बेंगलुरु में बाहरी रिंग रोड कंपनियों के एसोसिएशन (ORRCA) ने 225 करोड़ रुपये के कुल नुकसान का अनुमान लगाया था। हालांकि, अगर इस नुकसान को राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो यह आंकड़ा काफी बड़ा निकलेगा।

  • दिल्‍ली: सिर्फ 2023 में  बारिश के कारण आई भीषण बाढ़  10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ।
  • मुंबई: 10 साल में बाढ़ से बचाव और पानी के जमाव को रोकने के लिए करीब 7 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए।  
  • चेन्नई: जलभराव की वजह से क्षतिग्रस्त सड़कों के निर्माण-मरम्मत पर 25 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान।
  • बेंगलुरु: जल निकासी व्यवस्था और जलभराव समस्या को ठीक करने के लिए 2,800 करोड़ रुपये की जरूरत है।

आमजन को होती है परेशानी

बारिश के चलते शहरों में होने वाले जलभराव से सबसे ज्‍यादा दिक्‍कत आम नागरिकों को होती है। आमजन के वक्त, ऊर्जा और उत्पादकता की बर्बादी होती है। जलभराव के कारण कई-कई घंटों का जाम लग जाता है, जिससे न सिर्फ काम के घंटे बर्बाद होते हैं, बल्कि ईंधन जलता है।

दुर्घटनाएं भी होती हैं, जिनमें संपत्ति, वाहन और जान की हानि होती है। इस सर्वे में 64 फीसदी लोगों ने माना कि जलभराव का उनकी नौकरी और काम के घंटों पर भी बुरा असर पड़ता है, कई बार तो नौकरी जाने की नौबत आ जाती है।

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शहरों में जलभराव कैसे रुकेगा?

  • टाउनशिप प्लान में बदलाव की जरूरत: हर शहर की अपनी-ऊंचाई और जनसंख्या होती है। इसलिए शहर की आबादी, रिहायशी इलाकों और अगले 100 साल के अनुमान को ध्‍यान में रखते हुए ड्रेनेज सिस्टम बनाया जाना चाहिए।
  • जिम्मेदारी तय की जाना चाहिए: जिस तरह सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए 'रोड सेफ्टी ऑडिट' होता है। उसी तरह हर बार बारिश से पहले ड्रेनेज ऑडिट कराया जाए।
  • नेचुरल ड्रेनेज कैपेसिटी बढ़ाने पर ध्यान दिया जाए।
  • प्रॉपर कम्युनिकेशन हो: शहर की किन-किन सड़कों पर जलभराव है। लोगों के पास इसकी सूचना नहीं होती है, जिससे वे वहां फंस जाते हैं। कम्युनिकेशन सिस्‍टम बनाया जाए। 
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इन देशों से सीखें, शहरी बाढ़-जलभराव कैसे रोके?

जापान में फ्लड टनल्स और टैंक

जापान की राजधानी टोक्यो में बाढ़ को रोकने के लिए सुरंग बनाई गई हैं, जिन्हें  'फ्लड टनल्स' कहा जाता है। यहां 320 फीट लंबे और बड़े टैंक बनाए गए हैं।

जब भी बाढ़ के हालात बनते हैं तो फ्लड टनल्स के जरिए पानी इन टैंकों में चला जाता है। टैंक में भर जाने पर चार बड़ी टर्बाइन इस पानी को नदी में ले जाने में मदद करती हैं।

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ब्रिटेन ने अपनाई है ये टेक्‍नोलॉजी

ब्रिटेन में सस्टेनेबल अर्बन ड्रेनेज सिस्टम से बारिश के पानी का प्रबंधन किया जा रहा है। इस सिस्टम के जरिए बारिश का पानी जमीन के भीतर जा सके, इसकी व्यवस्था की गई है। शहर में पानी सोखने वाली जगहें और बारिश का पानी जमा करने वाले छोटे-छोटे तालाब बनाए गए हैं।

चीन: स्पंज शहरों के जरिए करता है ग्राउंड वाटर रिचार्ज

चीन ने जलभराव से बचने और ग्राउंड वाटर रिचार्ज करने के लिए  30 से ज्यादा स्पंज शहरों का विकास किया है। जिस तरफ स्‍पंज पानी को सोख लेता है और दबाए जाने पर पानी निकल जाता है, उसी तरह पूरे शहर में ऐसी पोरस (छिद्रदार) संरचनाओं का निर्माण किया गया। इनके जरिए अतिरिक्त पानी जमीन के भीतर चला जाता है। 

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