SC में करीब दो दशक पुराने मामले लंबित, सदन का विशेषाधिकार बनाम प्रेस की आजादी और मुस्लिम आरक्षण पर सुनवाई बाकी
सुप्रीम कोर्ट देश की शीर्ष अदालत है जो कि कानून और संविधान के जटिल मुद्दों पर व्यवस्था देने के लिए है। लेकिन समाज और राजनीति को प्रभावित करने वाले दो महत्वपूर्ण मामले संविधान पीठ में सुनवाई का करीब दो दशक से इंतजार कर रहे हैं। फाइल फोटो।
By Jagran NewsEdited By: Sonu GuptaUpdated: Sun, 09 Apr 2023 09:19 PM (IST)
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट देश की शीर्ष अदालत है जो कि कानून और संविधान के जटिल मुद्दों पर व्यवस्था देने के लिए है लेकिन आज की तारीख में 68847 मुकदमो के बोझ तले दबे सुप्रीम कोर्ट में संवैधानिक व्याख्या के महत्वपूर्ण मुकदमे इंतजार करते रह जाते हैं। वैसे तो सुप्रीम कोर्ट में इंतजार कर रहे मुकदमों की लंबी फेहरिस्त है लेकिन समाज और राजनीति को प्रभावित करने वाले दो महत्वपूर्ण मामले संविधान पीठ में सुनवाई का करीब दो दशक से इंतजार कर रहे हैं।
आंध्र प्रदेश में मुस्लिम आरक्षण का मामला 18 साल से लंबित
आंध्र प्रदेश में मुस्लिम आरक्षण का मामला 18 साल से और विधानसभा या सदन को प्राप्त विशेषाधिकार और छूट बनाम प्रेस की आजादी का 20 साल पुराना मामला संविधान पीठ में सुनवाई का अपना नंबर आने का इंतजार कर रहा है। अगर संविधान पीठ इस मामले को सुनकर फैसला दे देती है तो हमेशा के लिए यह व्यवस्था तय हो जाएगी कि आरक्षण धार्मिक आधार पर दिया जा सकता है कि नहीं।
2005 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है राज्य सरकार की अपील
मालूम हो कि यह मामला स्टेट आफ आंध्र प्रदेश बनाम बी. अर्चना रेड्डी के नाम से है, जिसमें राज्य सरकार ने कानून के जरिये मुसलमानों को पिछड़ा मानते हुए आरक्षण दिया था लेकिन हाई कोर्ट ने 2005 में इस आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। जिसके खिलाफ राज्य सरकार की अपील 2005 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की राज्य सरकार की मांग ठुकरा दी थी लेकिन थोड़ी राहत देते हुए यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था, जिसका मतलब था कि जिन लोगों को कानून का लाभ देकर शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश मिल चुका था वे डिस्टर्ब नहीं किये जाएंगे और जिन लोगों की इस कानून के आधार पर नियुक्ति हो चुकी है वे भी डिस्टर्ब नहीं किये जाएंगे।पंजाब का एक मामला सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ में लंबित
आरक्षण से ही जुड़ा पंजाब का एक मामला सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ में लंबित है। यह मामला पंजाब में अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित सीट सब क्लासीफिकेशन यानी उपवर्गीयता का मामला है। इस मामले की पृष्ठभूमि देखी जाए तो पंजाब सरकार ने पांच मई 1975 को एक सर्कुलर निकाला, जिसमें कहा गया कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों में से 50 फीसद रिक्तियां बाल्मीकि और मजहबी सिखों को जाएंगी। लेकिन हाई कोर्ट की खंडपीठ ने 25 जुलाई 2006 को वह सर्कुलर रद कर दिया था।
रद किए जाने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट आया और सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल विशेष अनुमति याचिका 10 मार्च 2008 को खारिज कर दी थी। लेकिन इस बीच पांच अक्टूबर 2006 को पंजाब एक्ट की धारा 4(5) अधिसूचित की गई, जिसमें ठीक वही प्राविधान थे जो सर्कुलर में थे। इसमें व्यवस्था की गई कि सीधी भर्ती में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीटों में से 50 फीसद रिक्तियां बाल्मीकी और मजहबी सिखों को ऑफर की जाएंगी हालांकि, ये उनकी उपलब्धता पर निर्भर करेगा लेकिन एससी वर्ग में उन्हें पहले प्राथमिकता दी जाएगी।
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ईवी चिन्नैया फैसले के आधार पर 29 मार्च 2010 को वह कानून रद कर दिया। मामला फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और यह मामला सात न्यायाधीशों को विचार के लिए रिफर कर दिया गया। सात न्यायाधीशों की पीठ में लोकतंत्र की संसदीय व्यवस्था में सदन के विशेषाधिकार को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण मामला लंबित है। तमिलनाडु विधानसभा का विशेषाधिकार का यह मामला एन. रवि बनाम स्पीकर विधानसभा के नाम से है।
विशेषाधिकार हनन का यह मामला 2003 का है जो पांच न्यायाधीशों के बाद सात न्यायाधीशों की पीठ को सुनवाई के लिए भेजा गया था। इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 194 की व्याख्या (विधानसभा के विशेषाधिकार एवं छूटें) तथा संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) अभिव्यक्ति की आजादी जिसमें प्रेस की आजादी शामिल है, की जानी है।कोर्ट के समक्ष संवैधानिक सवाल है कि क्या अुनच्छेद 194 के तहत विधानसभा को प्राप्त विशेषाधिकार और छूटें प्रेस को अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत प्राप्त शक्तियों के ऊपर हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु विधानसभा के स्पीकर द्वारा जारी वारंट पर अंतरिम रोक लगाई थी। इन मामलों में आने वाले फैसले राजनैतिक और सामाजिक स्थिति पर व्यापक असर डालेंगे।