'न्यायिक अधिकारियों की गरिमा और प्रतिष्ठा बनाए रखने की जरूरत', SC ने अवमानना के मामले में एक वकील को दोषी ठहराते हुए की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 के आपराधिक अवमानना के मामले में एक वकील गुलशन बाजवा को दोषी ठहराते हुए कहा कि न्यायिक अधिकारियों की गरिमा व प्रतिष्ठा बनाए रखने और उन्हें प्रायोजित व निराधार आरोपों से बचाने की जरूरत है।जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट ने वकील के माफीनामे को खारिज करने का सही फैसला किया क्योंकि इसमें गंभीरता का अभाव था।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 2006 के आपराधिक अवमानना के मामले में एक वकील गुलशन बाजवा को दोषी ठहराते हुए कहा कि न्यायिक अधिकारियों की गरिमा व प्रतिष्ठा बनाए रखने और उन्हें प्रायोजित व निराधार आरोपों से बचाने की जरूरत है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट ने वकील के माफीनामे को खारिज करने का सही फैसला किया क्योंकि इसमें गंभीरता का अभाव था। साथ ही माफीनामा देर से दायर किया गया था और यह सिर्फ एक दिखावटी कदम था। शीर्ष अदालत ने वकील की उम्र और कई बीमारियों से पीड़ित होने की बात पर गौर करते हुए हाई कोर्ट द्वारा वकील को दी गई तीन महीने के कारावास की सजा को बदलकर 'अदालत की कार्यवाही समाप्त होने तक' कर दिया।
2006 के फैसले के विरुद्ध बाजवा की याचिका पर सुनवाई
गुलशन बाजवा ने 17 अगस्त, 2006 को एक मामले में पेश होने के दौरान हाई कोर्ट की पीठ के समक्ष एक वकील को कथित तौर पर धमकी दी थी। जब उन्हें नोटिस जारी किया गया तो वह पेश नहीं हुए। इसके बाद बाजवा ने इसी मामले में अर्जी दाखिल कर हाई कोर्ट के जजों पर आरोप लगाए थे। शीर्ष अदालत दिल्ली हाई कोर्ट के 2006 के फैसले के विरुद्ध बाजवा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।वकील का आचरण कानूनी व्यवस्था की अनदेखी करने वाला रहा
अदालत ने कहा कि अवमाननापूर्ण कृत्य के संबंध में माफी में पछतावा दिखना चाहिए और इसका इस्तेमाल अपने अपराध के दोष से बचने के लिए नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के समक्ष और यहां तक कि इस अदालत के समक्ष भी वकील का आचरण कानूनी व्यवस्था की अनदेखी करने वाला रहा।यह भी पढ़ें- आपरेशन से आंख की रोशनी गंवाने वाले बुजुर्ग को 21 साल बाद मिला न्याय, आरोपी को दो महीने के अंदर मुआवजा दिए जाने का दिया निर्देश