अपने ही बनाए 'NEET' के खिलाफ खड़ी कांग्रेस, मनमोहन सरकार के 14 साल पहले लिए एक फैसले का अब विरोध क्यों?
2010 में मनमोहन सिंह की सरकार ने ऑल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट (एआइपीएमटी) के माध्यम से देशभर में मेडिकल कालेजों में नामांकन की प्रक्रिया शुरू की थी। अब वही कांग्रेस नीट को खत्म कर मेडिकल कालेजों में नामांकन को एक बार फिर से राज्यों के भरोसे छोड़ने की मांग उठा रही है। हालांकि 2019 में नीट की कमान सीबीएसई से लेकर एनटीए को दे दी गई।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। प्रतिभाशाली छात्रों के लिए मेडिकल की पढ़ाई का रास्ता साफ करने और गरीब छात्रों को कैपिटेशन फीस की मार से बचाने के लिए मेडिकल कॉलेजों में एक केंद्रीकृत परीक्षा को लागू करने वाली कांग्रेस 14 वर्ष बाद इसके विरुद्ध खड़ी हो गई है।
कांग्रेस की मांग, राज्यों के भरोसे
कांग्रेस की अगुआई वाली संप्रग सरकार ने कई राज्यों के विरोध के बावजूद 2010 में आल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट (एआइपीएमटी) के माध्यम से देशभर में मेडिकल कालेजों में नामांकन की प्रक्रिया शुरू की थी, जो 2017 में राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) के रूप में सामने आई। अब वही कांग्रेस नीट को खत्म कर मेडिकल कालेजों में नामांकन को एक बार फिर से राज्यों के भरोसे छोड़ने की मांग उठा रही है।
2019 में जब नीट की कमान NTA को दी गई
2019 में नीट की कमान सीबीएसई से लेकर एनटीए को दे दी गई। उसके पहले मनमोहन सरकार इसे एआइपीएमटी के रूप में लागू कर चुकी थी, जिसका उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक जैसे तमाम राज्यों ने विरोध किया। एआइपीएमटी के विरुद्ध विभिन्न अदालतों में 80 से अधिक दाखिल याचिकाओं को एक साथ लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में इस पर सुनवाई शुरू की और फैसला आने तक परीक्षा पर रोक लगा दी।एआइपीएमटी को दी हरी झंडी
2016 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी आपत्तियां खारिज करते हुए कैपिटेशन फीस के बोझ से छात्रों को मुक्ति दिलाने और मेडिकल की पढ़ाई में प्रतिभाशाली छात्रों के साथ अन्याय रोकने का हवाला देते हुए एआइपीएमटी को हरी झंडी दे दी। इस बीच भारत सरकार ने मेडिकल शिक्षा में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया (एमसीआइ) को भंग कर नेशनल मेडिकल कमीशन नाम की नई संस्था का गठन भी किया।
दरअसल, 2010 के पहले मेडिकल कालेजों में नामांकन पूरी तरह से राज्यों के अधिकार क्षेत्र में था और विभिन्न राज्य इसके लिए प्रवेश परीक्षा का आयोजन करते थे। तमिलनाडु और गुजरात दो राज्य ऐसे थे, जहां कोई प्रवेश परीक्षा नहीं होती थी और 12वीं की बोर्ड परीक्षा के परिणाम के आधार पर ही मेडिकल कालेजों में नामांकन दे दिया जाता था।
कैपिटेशन फीस की मार
गरीब छात्रों को फीस की मार से बचाने के लिए मेडिकल कालेजों की फीस राज्य सरकारें निर्धारित करती थीं। यही नहीं, राज्य सरकारों ने मेडिकल कालेजों में राज्य और केंद्र सरकार की आरक्षित श्रेणी का कोटा सुनिश्चित करते हुए मैनेजमेंट कोटा निर्धारित किया था, लेकिन इसकी काट निजी मेडिकल कालेजों ने नकद के रूप में मोटी कैपिटेशन फीस के रूप में निकाल ली थी। नीट लागू होने के बाद सबसे बड़ी मार इसी कैपिटेशन फीस पर पड़ी, जो प्रति छात्र करोड़ों रुपये में होती थी।