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NEP 2022: केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सभी भाषाओं को महत्व दिया गया

केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सभी भाषाओं को महत्व दिया गया है। यही वजह है कि वाराणी में काशी-तमिल समागम का आयोजन किया जा रहा है जिसमें तमिलनाडु के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े 2500 लोग आमंत्रित किए गए हैं।

By Achyut KumarEdited By: Updated: Sat, 05 Nov 2022 11:19 AM (IST)
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केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (फाइल फोटो)
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। Kashi-Tamil Samagam, National Education Policy, Dharmendra Pradhan: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) में सभी भाषाओं को महत्व दिया गया है। यही वजह है कि वाराणसी में एक महीने तक चलने वाले 'काशी-तमिल समागम' का आयोजन किया जा रहा है, जिसके तहत तमिलनाडु से करीब 25,00 लोग काशी की संस्कृति और महत्व को समझने के लिए यहां आएंगे।। यह बात केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने वाराणसी में कही।

तमिलनाडु के तीन शहरों से आएंगे 2500 लोग

धर्मेद्र प्रधान ने कहा कि काशी-तमिल समागम में तमिलनाडु के तीन शहरों रामेश्वरम, कोयंबटूर और चेन्नई से 12 समूहों में 2,500 लोगों को काशी आमंत्रित किया गया है। इनमें छात्र, शिक्षक, साहित्यकार , उद्यमी, कारीगर, पुरातत्वविद और कला, संगीत, नृत्य, नाटक, योग और आयुर्वेद से जुड़े लोग शामिल हैं।

प्रयागराज और अयोध्या का भी करेंगे दौरा

महीने भर चलने वाले इस आयोजन में तमिलनाडु के लोग काशी की संस्कृति और उसके महत्व को समझेंगे। आठ दिवसीय अपनी यात्रा में ये लोग श्री काशी विश्वनाथ धाम समेत वाराणसी के विभिन्न दर्शनीय स्थलों का दौरा करेंगे। इसके बाद वे प्रयागराज और अयोध्या भी जाएंगे।

धर्मेंद्र प्रधान ने तैयारियों का लिया जायजा

धर्मेंद्र प्रधान ने 17 नवंबर से 18 दिसंबर तक अपने विभाग द्वारा आयोजित किए जा रहे काशी-तमिल समागम की चल रही तैयारियों का भी जायजा लिया। इस दौरान उन्होंने अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश भी दिए। उन्होंने कहा कि एक माह तक चलने वाले इस कार्यक्रम में भारतीय संस्कृति की इन दो प्राचीन अभिव्यक्तियों के विभिन्न पहलुओं पर विशेषज्ञों के बीच अकादमिक आदान-प्रदान, सेमिनार, चर्चा आदि का आयोजन किया जाएगा।

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क्या है काशी-तमिल समागम का उद्देश्य?

धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि काशी-तमिल समागम का उद्देश्य ज्ञान और संस्कृति की दो परंपराओं को करीब लाना, साझा विरासत की समझ का निर्माण करना और इन लोगों से लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करना है।

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