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'अपराध की गंभीरता को देखते हुए लगाई जाएगी हथकड़ी', BNSS बिल से न्याय मुहैया कराने वाली प्रणाली में आएगा बदलाव

दंड प्रक्रिया संहिता के स्थान पर लाया जा रहा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक न्याय मुहैया कराने वाली प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव लाएगा। जीरो एफआइआर के संबंध में विधेयक का प्रस्ताव है कि कोई व्यक्ति अधिकार क्षेत्र की बंदिशों से बाहर किसी भी पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज करा सकता है। प्राथमिकी को 15 दिन के भीतर अपराध स्थल वाले पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित किया जाना चाहिए।

By AgencyEdited By: Anurag GuptaUpdated: Sun, 13 Aug 2023 11:29 PM (IST)
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भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, पीटीआई। दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) के स्थान पर लाया जा रहा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) विधेयक न्याय मुहैया कराने वाली प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव लाएगा। नए कानून में भारत और विदेश में घोषित अपराधियों की संपत्तियों की कुर्की तथा कुछ मामलों में व्यक्तियों की गिरफ्तारी के लिए हथकड़ी की अनुमति का प्रविधान शामिल है।

...तो इन पर हो सकता है हथकड़ी का प्रयोग

हथकड़ी के इस्तेमाल पर, इसमें कहा गया है कि पुलिस अधिकारी अपराध की प्रकृति और गंभीरता को ध्यान में रखते हुए किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय हथकड़ी का प्रयोग कर सकते हैं, जो आदतन अपराधी है या जो हिरासत से भाग गया हो।

इनमें संगठित अपराध, आतंकवादी कृत्य, नशीली दवाओं से संबंधित अपराध या हथियारों और गोला-बारूद रखने का अपराध, हत्या, दुष्कर्म, तेजाब हमला, सिक्कों और नोटों की जालसाजी का अपराध शामिल हैं। इसके अलावा मानव तस्करी, बच्चों के खिलाफ यौन अपराध, राष्ट्र के खिलाफ अपराध और आर्थिक अपराध भी इनमें शामिल हैं।

यौन अपराध को लेकर क्या है प्रस्ताव?

विधेयक में यह भी प्रस्ताव है कि यौन अपराध और तस्करी जैसे मामलों में किसी सरकारी अधिकारी पर मुकदमा चलाने के लिए किसी मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी। किसी लोक सेवक पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने या अस्वीकार करने का निर्णय अनुरोध प्राप्त होने के 120 दिन के भीतर सरकार द्वारा किया जाना चाहिए। अगर सरकार ऐसा करने में विफल रहती है तो मंजूरी दे दी गई मानी जाएगी।

बीएनएसएस में भारत के साथ शांति स्थापित करने वाले किसी देश की सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के साथ-साथ ऐसे राष्ट्र के क्षेत्र में लूटपाट करने को सात साल तक की जेल की सजा वाला अपराध बनाने का प्रविधान है।

इन लोगों को दी जा सकती है उम्रकैद

बीएनएसएस विधेयक की धारा 151 कहती है, जो कोई भी भारत सरकार के साथ शांति स्थापित करने वाले किसी राष्ट्र की सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ता है या युद्ध छेड़ने का प्रयास करता है या युद्ध छेड़ने के लिए उकसाता है, उसे उम्रकैद की सजा दी जाएगी या उसे जुर्माने/बिना जुर्माने के सात साल तक की सजा दी जा सकती है।

विधेयक में मजिस्ट्रेट के लिए प्रविधान है कि वह किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार किए बिना जांच के लिए अपने हस्ताक्षर, लिखावट, आवाज या अंगुलियों के निशान के नमूने देने का आदेश दे सकता है। पुलिस दंडात्मक कार्रवाई के तहत दिए गए निर्देशों का विरोध करने, इनकार करने या अनदेखी करने वाले किसी भी व्यक्ति को हिरासत में ले सकती है।

बीएनएसएस विधेयक किसी अपराध की जांच, प्राथमिकी दर्ज करने और इलेक्ट्रानिक मोड के माध्यम से समन भेजने के मामलों में प्रौद्योगिकी और फारेंसिक विज्ञान के इस्तेमाल का प्रविधान करता है।

मामले वापस लिए जाने के संबंध में विधेयक में कहा गया है कि यदि सात साल से अधिक की सजा वाला कोई मामला वापस लेना है, तो प्रक्रिया शुरू करने से पहले पीड़ित को सुनवाई का मौका दिया जाएगा।

जीरो एफआइआर को लेकर क्या है प्रस्ताव?

जीरो एफआइआर के संबंध में विधेयक का प्रस्ताव है कि कोई व्यक्ति अधिकार क्षेत्र की बंदिशों से बाहर किसी भी पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज करा सकता है। प्राथमिकी को 15 दिन के भीतर अपराध स्थल वाले पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित किया जाना चाहिए।

नए कानून में मौत की सजा के मामलों में दया याचिका दायर करने की समय सीमा के लिए प्रक्रिया का प्रविधान है। मृत्युदंड प्राप्त दोषी की याचिका के निपटारे के बारे में जेल अधिकारियों द्वारा सूचित किए जाने के बाद, वह या उसका कानूनी उत्तराधिकारी या रिश्तेदार 30 दिन के भीतर राज्यपाल के समक्ष दया याचिका दायर कर सकता है।

याचिका खारिज कर दिए जाने पर व्यक्ति 60 दिन के भीतर राष्ट्रपति के पास याचिका दायर कर सकता है। राष्ट्रपति के आदेश के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई अपील नहीं की जाएगी। बीएनएसएस विधेयक में 533 धाराएं हैं। पुराने कानून की 160 धारा बदली गई हैं, नौ नई धाराएं जोड़ी गई हैं और नौ धाराएं निरस्त की गई हैं।