आधुनिक युग में पूर्वजों को अपनी भाषा में दें डिजिटल श्रद्धांजलि, भारत में नई शुरूआत
एकल परिवारों में लोगों का अपने एक्सटेंडेड रिश्तेदारों के बारे में जानना किसी चुनौती से कम नहीं है। कई लोग अपने दादा-दादी या नाना-नानी तक से नहीं मिले होते हैं।
By Amit SinghEdited By: Updated: Sat, 09 Mar 2019 02:55 PM (IST)
नई दिल्ली [अंशु सिंह]। हम अपने पूर्वजों व दिवंगत रिश्तेदारों को याद करने के लिए उनके समाधि स्थलों पर जाते हैं या अखबारों में शोक संदेश देते हैं। आधुनिक युग में अब न सिर्फ डिजिटली उन्हें याद कर सकेंगे, बल्कि अपने परिवार का डिजिटल फैमिली ट्री भी तैयार कर सकते हैं।
गुजरात के विवेक व्यास और विमल पोपट द्वारा शुरू किया गया श्रद्धांजलि प्लेटफॉर्म अपने आपमें एक अद्वितीय मंच है। यह देश का पहला जीवन वृत्तांत पोर्टल है, जहां आप अपने पूर्वजों, प्रियजनों को याद कर सकते हैं। उनसे जुड़ी यादों को तस्वीरों के जरिये साझा कर सकते हैं। एक बार ऑनलाइन अकाउंट क्रिएट होने पर आप अपने रिश्तेदारों को हर साल दिवंगत की पुण्यतिथि पर एक रिमाइंडर संदेश भी भेज सकते हैं, जिससे कि वे अपने संदेश पोस्ट कर सकें।
विवेक के अनुसार, पोर्टल का शुरुआत एक दिलचस्प कहानी के साथ हुआ है। वे बताते हैं, ‘2010-11 में एक दिन हम लोग राजकोट में सड़क किनारे की दुकान पर चाय-समोसे खाने के लिए रुके। दुकानदार ने जिस अखबार में समोसे लपेटकर दिए थे, उसमें लोगों के शोक संदेश छपे थे। हमें अच्छा नहीं लगा। सोचा कि कैसे लोगों की यादें कुछ घंटे ही रहती हैं और अखबार रद्दी बन जाता है। हमने इसके विकल्प के बारे में सोचना शुरू किया, जिससे यादों को हमेशा के लिए सहेजा जा सके।'
भारत में पहली शुरुआत
विवेक ने इंटरनेट पर भारत के मेमोरियल वेबसाइट्स एवं ऑनलाइन ओबिच्युरी एडवर्टिजमेंट सर्विस को लेकर काफी सर्च किए। उन्हें ऐसी कोई वेबसाइट नहीं मिली। तब इन्होंने लोगों से बात की। अखबार के विकल्प को लेकर सर्वे किया और आखिर में डिजिटल वर्ल्ड में एक संभावना दिखाई दी। इस तरह, तकनीकी क्षेत्र से ताल्लुक न रखने के बावजूद विवेक ने अपने दोस्त के साथ मिलकर श्रद्धांजलि डॉट कॉम की शुरुआत की। यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जहां 24 भाषाओं में कंटेंट (बायोग्राफी, फैमिली ट्री, वीडियो, फोटो आदि) इत्यादि अपलोड, स्टोर, प्रकाशित और साझा कर सकते हैं।IIM ने केस स्टडी का बनाया हिस्सा
अपनी भाषा में नमन, श्रद्धांजलि व्यक्त कर सकते हैं। पूर्वजों की जन्मतिथि, पुण्यतिथि तथा शोक संदेश भी ज्ञापित कर सकते हैं। यह पूरी तरह से विज्ञापन मुक्त मंच है। हां, इसके लिए वार्षिक या आजीवन सब्सक्रिप्शन लेना होता है। कुछ समय पूर्व आइआइएम, अहमदाबाद और एमडीआइ गुरुग्राम जैसे प्रमुख बिज़नेस कॉलेजों ने श्रद्धांजलि डॉट कॉम पर अपनी केस स्टडीज भी प्रकाशित की हैं। विदेश में पहले से प्रथा
विवेक की मानें, तो एकल परिवारों के आधुनिक दौर में लोगों का अपने एक्सटेंडेड रिश्तेदारों के बारे में जानना, किसी चुनौती से कम नहीं। कई लोग तो अपने दादा-दादी या नाना-नानी तक से नहीं मिले होते हैं। वे सेलिब्रेटीज, नेताओं-अभिनेताओं के परिवारों का तो इतिहास जानते हैं, लेकिन अपने पूर्वजों या उनकी जड़ों से वाकिफ नहीं होते। आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर साल औसतन 70 लाख लोग अपने प्राण त्यागते हैं। वहीं, किसी अपने को खोने के कारण 2 करोड़ 80 लाख लोग प्रभावित होते हैं। इस तरह, जाने वाली हर पीढ़ी के साथ उनका इतिहास भी गुम हो जाता है। विदेशों में कई सारे ओबिच्युरी वेबसाइट्स हैं। जैसे, न्यूयॉर्क में ऑनलाइन ओबिच्युरी कंपनी ‘मोरनर्स लेन’ है। ‘हेवनअड्रेस’ जैसी ऑनलाइन मेमोरियल कम्युनिटी है। यहां गुजर चुके परिजनों को ऑनलाइन मेमोरियल से लेकर वर्चुअल फूल अर्पित किए जा सकते हैं। यह भी पढ़ें-
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अपनी भाषा में नमन, श्रद्धांजलि व्यक्त कर सकते हैं। पूर्वजों की जन्मतिथि, पुण्यतिथि तथा शोक संदेश भी ज्ञापित कर सकते हैं। यह पूरी तरह से विज्ञापन मुक्त मंच है। हां, इसके लिए वार्षिक या आजीवन सब्सक्रिप्शन लेना होता है। कुछ समय पूर्व आइआइएम, अहमदाबाद और एमडीआइ गुरुग्राम जैसे प्रमुख बिज़नेस कॉलेजों ने श्रद्धांजलि डॉट कॉम पर अपनी केस स्टडीज भी प्रकाशित की हैं। विदेश में पहले से प्रथा
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