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SC: खत्म हुए IT Act की धारा 66ए के तहत नहीं चलेगा कोई केस : सुप्रीम कोर्ट

मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता में खंडपीठ ने बुधवार को कहा कि आइटी एक्ट की धारा 66ए के तहत जहां कहीं भी किसी नागरिक के खिलाफ केस दर्ज हो या मुकदमा चल रहा हो उसे तत्काल खत्म किया जाए।

By AgencyEdited By: Shashank MishraUpdated: Wed, 12 Oct 2022 07:06 PM (IST)
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खंडपीठ ने 66ए के तहत सभी लंबित मामलों का देश भर का ब्योरा केंद्र सरकार से मांगा है।

नई दिल्ली, पीटीआई। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वर्ष 2015 में ही खत्म किए जा चुके आइटी कानून, 2000 की धारा 66ए के तहत किसी भी नागरिक पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। सर्वोच्च अदालत ने इस बात पर आपत्ति जताई है कि वर्षों पहले खत्म की जा चुकी धारा पर अभी तक कैसे केस दर्ज हो रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता में खंडपीठ ने बुधवार को कहा कि आइटी एक्ट की धारा 66ए के तहत जहां कहीं भी किसी नागरिक के खिलाफ केस दर्ज हो या मुकदमा चल रहा हो, उसे तत्काल खत्म किया जाए।

खंडपीठ ने सभी लंबित मामलों का ब्योरा केंद्र सरकार से मांगा

उन्होंने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के डीजीपी और गृह सचिवों को निर्देश जारी किया कि धारा 66ए के उल्लंघन के तहत किसी भी नागरिक के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं करें। यह निर्देश पूरे पुलिस महकमे के निचले स्तर तक पहुंचाए जाएं।

खंडपीठ में शामिल जस्टिस अजय रस्तोगी और एसआर भट ने स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ इस धारा के अलावा भी कोई अन्य धाराएं लगीं हों तो उन पर कार्रवाई धारा 66ए के अलावा यथावत की जाए। खंडपीठ ने 66ए के तहत सभी लंबित मामलों का देश भर का ब्योरा केंद्र सरकार से तलब किया है।

कोर्ट का कहना है कि इस धारा के तहत आपराधिक मामलों की कार्यवाहियां कोर्ट के श्रेया सिंघल बनाम केंद्र सरकार (मार्च 2015 का फैसला) के तहत ही खारिज कर दी गईं थीं। इसके बावजूद अभी भी इस धारा के तहत मामले विचाराधीन हैं और नए केस भी दर्ज हो रहे हैं।

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उल्लेखनीय है कि खत्म की गई धारा 66ए के तहत किसी भी व्यक्ति को इंटरनेट मीडिया पर कोई आपत्तिजनक पोस्ट डालने पर तीन साल की जेल होने के साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता था।

सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च, 2015 को दिए अपने फैसले में अभिव्यक्ति की आजादी को बेहद अहम बताते हुए आइटी कानून की धारा 66ए के प्रविधान को खारिज कर दिया था। कोर्ट का कहना था कि जनता के जानने के अधिकार को सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट की धारा 66ए से प्रभावित किया जा रहा है।

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