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SC: अनुच्छेद 370 पर 'ब्रेक्जिट' जैसे जनमत संग्रह की जगह नहीं, सुनवाई आज भी रहेगी जारी : सुप्रीम कोर्ट

मुख्य न्यायाधीश बोले- भारत में लोगों की इच्छा स्थापित संस्थाओं के जरिये ही फलीभूत। सिब्बल ने बार-बार जम्मू-कश्मीर की निर्वाचक विधानसभा के बिना अनुच्छेद 370 को हटाने की संसद की शक्तियों पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि निर्वाचक या मूल विधानसभा का सत्र 1957 में ही खत्म हो गया था। केवल उसी विधानसभा के पास अनुच्छेद 370 में बदलाव करने या हटाने की शक्ति निहित थी।

By AgencyEdited By: Shashank MishraUpdated: Tue, 08 Aug 2023 11:50 PM (IST)
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सिब्बल ने कहा कि यह अदालत 'ब्रेक्जिट' को हमेशा याद रखेगी।
नई दिल्ली, पीटीआई। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर 'ब्रेक्जिट' जैसा जनमत-संग्रह कराने का सवाल ही नहीं उठता है। राज्य को स्वायत्तता देने वाले इस अनुच्छेद को हटाना संवैधानिक रूप से उचित है या नहीं पर जिरह के दौरान सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट किया कि भारत संवैधानिक रूप से एक लोकतांत्रिक देश है। यहां लोगों की इच्छा को केवल स्थापित संस्थाओं के जरिये ही फलीभूत किया जा सकता है।

कपिल सिब्बल की दलील खारिज

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता देने वाले अनुच्छेद 370 को केंद्र सरकार के हटाने को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलील को खारिज करते हुए कहा कि 'ब्रेक्जिट' एक राजनीतिक घटनाक्रम था जिसमें ब्रिटिश नागरिकों की राय एक जनमत संग्रह के जरिये ली गई थी।

पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने का मामला उससे एकदम अलग है। इस विषय पर सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी और वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यन अपने याचिकाकर्ताओं की ओर से जिरह करेंगे। कपिल सिब्बल अनुच्छेद 370 को हटाने को चुनौती देने के मामले में नेशनल कांफ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन की ओर से लगातार तीसरे दिन पेश हुए और कहा कि संसद ने इस अधिशासी अधिनियम को संविधान के प्रविधानों में एकतरफा बदलाव करके हटाया है। इसलिए अदालत को इस मुख्य सवाल को सुलझाना है कि केंद्र सरकार को यह करने का अधिकार है या नहीं।

लोकतंत्र में जम्मू-कश्मीर के लोगों की आवाज कहां है?

सिब्बल ने बार-बार जम्मू-कश्मीर की निर्वाचक विधानसभा के बिना अनुच्छेद 370 को हटाने की संसद की शक्तियों पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि निर्वाचक या मूल विधानसभा का सत्र 1957 में ही खत्म हो गया था। केवल उसी विधानसभा के पास अनुच्छेद 370 में बदलाव करने या हटाने की शक्ति निहित थी। इस लिहाज से जम्मू-कश्मीर का स्वायत्त रूप उसका स्थायी दर्जा बन गया था। उन्होंने कहा कि आप मध्य प्रदेश या बिहार को दो केंद्र शासित प्रदेशों में नहीं बांट सकते हैं। इस लोकतंत्र में जम्मू-कश्मीर के लोगों की आवाज कहां है?

सिब्बल ने कहा कि यह अदालत 'ब्रेक्जिट' को हमेशा याद रखेगी। 'ब्रेक्जिट' में जनमत संग्रह का कोई संवैधानिक प्रविधान (इंग्लैंड में) नहीं था। लेकिन जब आप कोई संबंध तोड़ना चाहते हैं तो आपको सीधे तौर पर जनता की राय लेनी चाहिए। क्योंकि इस मामले के केंद्र में केंद्र सरकार नहीं, बल्कि जनता है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कपिल सिब्बल की इस बात से पूरी तरह से असहमति दिखाते हुए कहा कि हमारे संविधान के तहत जनमत संग्रह की कोई जगह नहीं है। उल्लेखनीय है कि यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने की प्रक्रिया को 'ब्रेक्जिट' नाम दिया गया था। इसमें ब्रिटेन के लोगों ने राष्ट्रवादी सोच, आव्रजन के मुद्दों और पिछड़ती अर्थव्यवस्था के चलते यूरोपीय संघ से बाहर होने के लिए अपना मत दिया था।

पदमुक्त होने के बाद जज का कथन सिर्फ राय : सीजेआइ

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने पूर्व सीजेआइ रंजन गोगोई के संसद में आधारभूत ढांचे के सिद्धांत पर दिए बयान पर कहा कि जब बतौर जज हमारा सेवाकाल समाप्त हो जाता है तो उनका कथन सिर्फ एक राय होती है और वह इससे बंधे हुए भी नहीं होते हैं।

विगत सोमवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (संशोधन) विधेयक, 2023 पर राज्यसभा में चर्चा के दौरान नामित सदस्य और पूर्व सीजेआइ रंजन गोगोई ने कहा था कि केशवनंद भारती मामले में पूर्व सालीसिटर जनरल अंध्यारजिना की एक किताब है। उसे पढ़ने के बाद मेरा विचार है कि विधिशास्त्र के अनुसार संविधान के मूल ढांचे पर गहरी बहस हो सकती है। मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा।

मंगलवार को अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अनुच्छेद 370 हटाने के मामले पर सुनवाई के दौरान पूर्व सीजेआइ गोगोई के इसी बयान का हवाला दिया तो सीजेआइ चंद्रचूड़ ने उसे सिरे से खारिज कर दिया।