Nobel Peace Prize 2022: रूस-युक्रेन युद्ध की भयावह त्रासदी के बीच प्रतिरोध को पुरस्कार
Nobel Peace Prize 2022 रूस-युक्रेन युद्ध की भयावह त्रासदी के बीच नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा कुछ आश्चर्यजनक एहसास देती है। कुछ सवाल भी खड़े करती है कि क्या युद्धरत देशों की स्थितियों में सुधार का पैमाना नोबेल शांति पुरस्कार है।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Tue, 18 Oct 2022 11:08 AM (IST)
डा. कन्हैया त्रिपाठी। हाल ही में इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार विजेताओं के नाम की घोषणा की गई है। इसमें नोबेल शांति पुरस्कार भी शामिल है। विश्व के इस सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार के संदर्भ में समग्र विश्व के लोगों में जानने की रुचि होती है। सबको ऐसा लगता है कि इस बार नोबेल पुरस्कार की जब घोषणा होगी तो कोई सर्वमान्य नाम आएगा। इस वर्ष का नोबेल शांति पुरस्कार दो संस्थाओं और एक व्यक्ति को दिया जाएगा यानी इस साल यह तीन महत्वपूर्ण हस्तक्षेपकर्ताओं को प्रदान किया जाएगा।
रूस का एक सिविल सोसायटी संगठन ‘मेमोरियल’ जिसे वर्ष 2021 के दौरान रूसी अधिकारियों ने अपना कामकाज बंद करने के लिए विवश कर दिया था, उसे इस पुरस्कार के लिए चुना गया है। साथ ही यूक्रेन स्थित एक सिविल स्वतंत्रता केंद्र और बेलारूस में एक मानवाधिकार कार्यकर्ता (एलेस बियालियात्स्की) को यह पुरस्कार दिया जाएगा, जो जेल में बंद हैं। जेल से ही प्रतिरोध के स्वर को जीवित रखने वाले एलेस बियालियात्स्की कैसे इतने ताकतवर हैं, इसका अंदाजा उनके किए गए प्रतिरोध और जनसरोकारों से लगाया जा सकता है। देखा जाए तो ‘मेमोरियल’ को दूसरी बार नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाएगा।
मानवाधिकारों के संरक्षण और उसके प्रति जागरूकता
दरअसल इसके नेतृत्वकर्ता ऐंद्रेई सखारोव को रूस के भौतिक विज्ञानी हैं जिन्हें वर्ष 1975 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया जा चुका है। ऐसा माना जाता है कि मानव जाति के भविष्य के लिए उनके अपने कार्यों के प्रभावों से वे चिंतित थे और उन्होंने परमाणु हथियारों की दौड़ के खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की मांग की। उनके नेतृत्व में मेमोरियल नामक संस्था को इस साल अपने मानवाधिकारों के संरक्षण और उसके प्रति जागरूकता के लिए इस पुरस्कार के लिए चुना गया है।उल्लेखनीय है कि इस वर्ष के आरंभ में रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया। इस दौरान बड़े पैमाने पर लोगों का विस्थापन हुआ है और मानवाधिकारों को रौंदा गया है। ऐसे में एक संस्था सेंटर फार सिविल लिबर्टीज ने रूसी सेना द्वारा मानवाधिकारों के विरुद्ध किए जा रहे कार्यों का लेखा-जोखा तैयार किया गया। लिहाजा इस संस्था को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना गया है। बेलारूस में वहां के नेता एलेक्जेंडर लूकाशेंको के विवादित चुनाव के विरुद्ध भड़के जन आंदोलन के परिणामस्वरूप एलेस बियालियात्स्की को जुलाई 2021 में जेल में बंद किया गया तो इसे एलेक्जेंडर लूकाशेंको ने अपनी जीत मान ली, परंतु इस वर्ष की नोबेल जूरी ने जब उन्हें सम्मान देने की बात की तो सत्याग्रह और मानवता को महत्व देने वाले एलेस बियालियात्स्की दुनिया के लिए मिसाल बन गए और दुनिया भर में यह चर्चा होने लगी कि मनुष्यता के लिए किया जाने वाला कोई भी कार्य एक न एक दिन संज्ञान में लिया जाता है और उसे लोगों को स्वीकृति भी देनी पड़ती है।
सभ्यता के बचाव का अभियान
मानवाधिकार के पैरोकारों, महिला अधिकार के हिमायतियों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और अपने आत्मा की आवाज सुनने वाले पत्रकारों के लिए यह एक संदेश है कि वे अपने समय के हस्ताक्षर बनें। वे सत्य के मार्ग पर चलकर हमारी सभ्यता के बचाव को अपना अभियान बनाएं। ऐसा प्रायः देखा जाता है कि विविध देश चापलूसी की राह पर चलकर विभिन्न रिपोर्ट्स को अपने अनुकूल तैयार करवाते हैं और स्वयं ही अपनी पीठ थपथपाते रहते हैं, जबकि यथार्थ कुछ और होता है। इस प्रकार का कार्य नहीं किया जाना चाहिए, अन्यथा मानवता नहीं बचेगी। लोगों के भीतर हिंसा और आक्रोश झूठे वादों से आते हैं और झूठी रिपोर्ट्स से आक्रोश की लहर संचारित होती है जिससे जनाक्रोश उठने की गुंजाइश होती है।यह हमारे शांति संस्थापकों ने अपने कर्मों से बार-बार चेताया है, किंतु फिर भी ऐसी धृष्टता की जाती रही है जिस पर लगाम लगाना आवश्यक है। बेलारूस में एलेस बियालियात्स्की इसके साक्षात प्रमाण हैं। प्रतिरोधों के बढ़ते स्वर से भी दुनिया में अशांति है। अशांति को शांति में परिवर्तित करने के लिए हमारे भीतर और बाहरी दुनिया में किस तरीके के बदलाव की आवश्यकता है, इसे भी रेखांकित करना होगा। परमाणु हथियारों के प्रयोग की धमकी और युद्ध के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में अधिकांश देशों की ओर से की गई चिंताएं इसकी मिसाल तो हैं ही, परमाणु हथियारों के प्रयोग की सार्वजानिक निंदा और सार्वभौमिक निंदा जब पूरी दुनिया कर रही है तो यह समझा जा सकता है कि हम और हमारे नेतृत्वकर्ता किस ओर बढ़ रहे हैं।
यह अशांति की ओर बढ़ते हमारे कदम हमें ही संकट में डालने वाले हैं और आने वाली पीढ़ी को हम जवाब देने योग्य नहीं रह जाएंगे। बियालियात्स्की जेल से ही एक आवाज दे रहे हैं कि अपने समय के सापेक्ष अपनी रचनात्मक आवाज को बुलंद करो। वे संस्थाएं अपनी आवाज दे रही हैं कि अपनों के लिए संकट खड़ा करना ठीक नहीं है, किंतु विडंबना यह है कि हमारे बीच चुनौतियां कम नहीं हो रही हैं और संकट के बदल छंटने का नाम नहीं ले रहे हैं।
ऐसे में हम प्रतिरोध को ही एक सकारात्मक स्वीकृति की ओर बढ़ने के लिए केवल आवाज न मानें, तो हमें सकारात्मक पहल के लिए आवाज उठानी होगी। उसका माध्यम क्या हो, इसे स्पष्ट करना पड़ेगा। इस वर्ष के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए जिन लोगों को चुना गया है उससे तो यह सोचना और जरूरी हो गया है, क्योंकि प्रतिरोध को भी तो राज्य अपने विरुद्ध समझने और बताने से नहीं कतराते। इसलिए एक सकारात्मक पहल के लिए कोई राह निकल सकेगी जिसे लोग अपने लिए एक मिसाल समझेंगे और मनुष्यता के लिए भी, संभावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता।[राष्ट्रपति के पूर्व विशेष कार्य अधिकारी]