Move to Jagran APP

पता होने के बावजूद नाबालिग के खिलाफ यौन अपराध की जानकारी न देना गंभीर अपराध: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पता होने के बावजूद नाबालिग के खिलाफ यौन अपराध की जानकारी नहीं देना एक गंभीर अपराध है और यह सीधे-सीधे अपराधियों को बचाने का प्रयास है। अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पाक्सो) एक्ट के तहत अपराध पर त्वरित और उचित संज्ञान लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

By AgencyEdited By: Amit SinghUpdated: Thu, 03 Nov 2022 12:06 AM (IST)
Hero Image
यौन अपराध की जानकारी न देना गंभीर अपराध
नई दिल्ली, प्रेट्र: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि पता होने के बावजूद नाबालिग के खिलाफ यौन अपराध की जानकारी नहीं देना एक गंभीर अपराध है और यह सीधे-सीधे अपराधियों को बचाने का प्रयास है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पाक्सो) एक्ट के तहत अपराध पर त्वरित और उचित संज्ञान लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो यह कानून के उद्देश्य को ही विफल कर देगा। इसी के साथ शीर्ष कोर्ट ने बांबे हाई कोर्ट के पिछले साल अप्रैल के फैसले को रद कर दिया जिसमें उसने एक चिकित्सक के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी और आरोप पत्र को रद कर दिया था।

यौन उत्पीड़न के अपराधियों को बचाने

चिकित्सक ने एक छात्रावास में कई नाबालिग लड़कियों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के बारे में जानकारी होने के बावजूद संबंधित प्राधिकरण को सूचित नहीं किया था। चिकित्सक को इन नाबालिगों के इलाज की जिम्मेदारी सौपीं गई थी। जस्टिस अजय रस्तोगी और सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि यह सही है कि मामले के अन्य आरोपियों के संबंध में प्राथमिकी और आरोप पत्र अभी भी बाकी हैं। पीठ ने अपने 28 पेज के निर्णय में कहा कि जानकारी के बावजूद नाबालिग के खिलाफ यौन हमले की रिपोर्ट न करना गंभीर किस्म का अपराध है और यह स्पष्ट तौर पर यौन उत्पीड़न के अपराधियों को बचाना है।

महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया था मामला

हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी। पीठ ने यह भी कहा कि जांच के दौरान यह पाया गया कि 17 नाबालिग लड़कियों के साथ यौन दु‌र्व्यवहार किया गया था। छात्रावास में लड़कियों के इलाज के लिए चिकित्सक को नियुक्त किया गया था। पुलिस को कुछ पीडि़ताओं ने बयान दिया था कि चिकित्सक को उन पर यौन हमले की सूचना दी गई थी।