'किशोरी संग दुष्कर्म करने वाले पुलिस कर्मी को जमानत देना जायज नहीं', पीड़िता की मां की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला
शुक्रवार को दिए आदेश में पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में स्थिति बहुत खराब है। मामले में प्रतिवादी नंबर एक थानाध्यक्ष पर थाने में ही नाबालिग के साथ दुष्कर्म जैसा जघन्य अपराध करने का आरोप लगाया गया है। ऐसे में उसके जमानत देने की प्रार्थना पर HC को और अधिक विचार करना चाहिए था। हमें प्रतिवादी नंबर एक को जमानत देने को सही ठहराने का कोई कारण नहीं मिला।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 13 वर्षीय किशोरी के साथ दुष्कर्म करने के उत्तर प्रदेश के आरोपित पुलिस अधिकारी को जमानत देने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को रद कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि थानाध्यक्ष को जमानत देना उचित नहीं ठहराया जा सकता है। उसने नाबालिग के साथ दुष्कर्म जैसा जघन्य अपराध करने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया।
किशोरी को उसके साथ चार लोगों द्वारा किए गए यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करने के लिए थाने लाया गया था।जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने गत दो मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली पीडि़ता की मां की याचिका पर आदेश दिया।
'वर्तमान मामले में स्थिति बहेद खराब'
शुक्रवार को दिए आदेश में पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में स्थिति बहुत खराब है। मामले में प्रतिवादी नंबर एक थानाध्यक्ष पर थाने में ही नाबालिग के साथ दुष्कर्म जैसा जघन्य अपराध करने का आरोप लगाया गया है। ऐसे में उसके जमानत देने की प्रार्थना पर हाई कोर्ट को और अधिक विचार करना चाहिए था।'जमानत देने को सही ठहराने का नहीं मिला कोई कारण'
हमें प्रतिवादी नंबर एक को जमानत देने को सही ठहराने का कोई कारण नहीं मिला। इसके बाद खंडपीठ ने पीडि़ता की मां की अपील को स्वीकार कर लिया और हाई कोर्ट के आदेश को रद कर दिया। पीठ ने आरोपित को तुरंत आत्मसमर्पण करने को कहा। आत्मसमर्पण न करने की स्थिति में राज्य को उसे पकड़कर न्यायिक हिरासत में भेजने के निर्देश दिए।
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