राम मंदिरः ASI की रिपोर्ट मुस्लिम पक्षकारों ने जताई थी ये आपत्तियां, HC ने की थीं खारिज
एएसआइ की रिपोर्ट पर मुस्लिम पक्ष की ओर से आपत्तियां दर्ज कराई गईं थी। हाईकोर्ट ने आपत्तियां नकार दी थीं और एएसआइ रिपोर्ट को साक्ष्य के तौर पर स्वीकार किया था।
By Vikas JangraEdited By: Updated: Tue, 13 Nov 2018 11:37 AM (IST)
नई दिल्ली [जेएनएन]। एएसआइ की रिपोर्ट पर मुस्लिम पक्ष की ओर से आपत्तियां दर्ज कराई गईं थी। हाईकोर्ट ने आपत्तियां नकार दी थीं और एएसआइ रिपोर्ट को साक्ष्य के तौर पर स्वीकार किया था। मुस्लिम पक्षकारों का कहना था कि रिपोर्ट एकतरफा और कुछ पूर्व सिद्धांतों से प्रभावित है। इस तर्क के पक्ष में उन्होंने निम्न आपत्तियां जताईं।
- एएसआइ का पक्षपाती रवैया था क्योंकि खोदाई के विभिन्न गड्ढों में कटे के निशान वाली जानवरों की हड्डियां पाई गईं लेकिन उन पर जान बूझकर विचार नहीं किया गया। अगर उन पर वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन कर विचार किया गया होता तो, एएसआइ के लिए यह राय देना संभव नहीं होता कि पायी गई चीजें उत्तर भारत के दिर से मेल खाती हैं।- खोदाई से जुड़े सारे पेपर्स दाखिल करने का कोर्टका स्पष्ट आदेश होने के बावजूद एएसआइ ने कुछ दस्तावेजों को जमा कराने में देर की साथ ही चीजों के पुरातात्विक अध्ययन के दौरान तैयार किये गए नोट्स भी नष्ट कर दिये जो कि रिपोर्ट की सत्यता पर संदेह पैदा करता है।
- रिपोर्ट में चेप्टर 1 से लेकर 9 तक के लेखकों का जिक्र है लेकिन चेप्टर 10 समरी ऑफ द रिजल्ट’ के लेखक का जिक्र नहीं है। इसलिए चेप्टर 10 को रिपोर्ट की गिनती से बाहर किया जाए और उसे साक्ष्य का हिस्सा न माना जाए- शिकायत पर कोर्ट ने आदेश दिया था कि बीआर मणि खोदाई का नेतृत्व नहीं करेंगे। हरि मांझी को मुखिया नियुक्त किया गया था। लेकिन बीआर मणि खोदाई के काम से जुड़े रहे और उन्होंने रिपोर्ट तैयार करने में भी सह लेखक की भूमिका निभाई
- एएसआइ द्वारा तैयार किया गया कालखंड निर्धारण और घटनाक्रम का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है- खोदाई के गड्ढों में विभिन्न स्तरों पर एक दूसरे के बीच सामंजस्य (सुसंगतता) का न होना रिपोर्ट का आधार संदेहास्पद बनाता है
- रिपोर्ट में बहुत सी विसंगतियां है और ऐसा लगता है कि उसका निष्कर्ष किसी निश्चित थ्योरी का समर्थन करने के लिए तैयार किया गया है।- रिपोर्ट के खंड एक के पृष्ठ 42 सी में दीवार संख्या 16 और 50 खंबो की बात मनगढ़ंत है और स्वीकार करने लायक नहीं है क्योंकि वहां कोई भी खंबे का आधार नहीं था और न ही उनका एक दूसरे के बीच कोई पंक्ति योजना है। वे समान लेबल पर भी नहीं है और न ही उन खंबों में भार सहने की क्षमता है
- विशाल संरचना का सिद्धांत गलत है क्योंकि एएसआइ रिपोर्ट इस बिंदु पर चुप है कि अगर दिवार संख्या 16 पहली दीवार है तो बाकी की तीन दीवारें कहां है- एएसआइ रिपोर्ट में गोलाकार पूजा स्थल जिसमें उत्तर की ओर एक परनाला होने की बात कही गयी है। (जिसे भगवान शिव से संबंधित माना जा सकता है), उससे स्ट्रक्चर के बौद्ध या जैनियों से जुड़े होने की भी संभावना है क्योंकि उसका बहुत संकरा रास्ता और छोटा डायमीटर है जिसके कारण किसी एक अकेले व्यक्ति का भी वहां घुस कर अभिषेक करना संभव नहीं है
- एएसआइ ने बिना किसी पुख्ता आधार के खंडित पत्थर की मूर्ति को युगल देवता बता दिया। ऐसा लगता है कि यह बाद में खोजा गया है क्योंकि इसका जिक्र रोजना रजिस्टर और साइट नोट बुक में नहीं है।- खंबे, दरवाजे चौखट, अष्टकोणीय खंबा, अमलका, युगल देवता, कमल कलाकृति आदि को एएसआइ मंदिर के अवशेष बता रहा है उसका कोई महत्व नहीं है क्योंकि ये चीजें मलबे से मिली हैं
- श्रीवत्सा को जैन घर्म और कमल को बौद्ध व इस्लाम से भी जोड़कर देखा जा सकता है- खोदाई में विभिन्न स्तरों पर पाई गई टेराकोटा की 62 इंसानों और 131 जानवरों की मूर्तियां प्राचीन काल से जुड़ती हैं, उनकी कोई सुसंगतता नहीं है
- चमकीले टाइल्स आदि का मिलना मंदिर होने की थ्योरी के खिलाफ है क्योंकि ये चीजें मध्य सल्तनत काल की हैं- एसके मीरमीरा की इंडियन पॉटरी किताब के मुताबिक ग्लेज टाइल मुस्लिम हैबिटेशन है
- दीवार संख्या 16 में अंदर की ओर मेहराब है जो कि इस्लामिक इमारत का चिन्ह है- न तो किसी हिन्दू देवता की मूर्ति मिली और न ही कोई हिन्दू पूजा का सामान मिला इसलिए एएसआइ का हिन्दू मंदिर के अवशेष कहना ठीक नहीं है।