बाढ़ से लेकर भूकंप तक, निस्वार्थ सेवा के लिए तत्पर रहता है NDRF; बालेश्वर दुर्घटना में देवदूत बनकर आए थे कर्मी
ट्रेन दुर्घटनास्थल पर भयावह मंजर था और चारों तरफ से चीख पुकार की आवाज सुनाई दे रही थी। कहीं पर यात्री खून से लथपथ थे तो कोई अपनों की तलाश में सुध बुध खो चुका था। ऐसी परिस्थितियों के बावजूद एनडीआरएफ ने मजबूती के साथ मोर्चा संभाला।
By Anurag GuptaEdited By: Anurag GuptaUpdated: Wed, 07 Jun 2023 09:35 PM (IST)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। ओडिशा के बालेश्वर में तीन ट्रेनें दुर्घटनाग्रस्त हो गईं। इस हादसे के तत्काल बाद राष्ट्रीय आपदा मोचन बल यानी एनडीआरएफ ने त्वरित मोर्चा संभाला। हादसे के महज सवा घंटे के भीतर ही एनडीआरएफ की पहली टीम मौके पर पहुंची और तत्काल प्रभाव से राहत एवं बचाव कार्य शुरू किया।
ट्रेन दुर्घटनास्थल पर भयावह मंजर था और चारों तरफ से चीख पुकार की आवाज सुनाई दे रही थी। कहीं पर यात्री खून से लथपथ थे तो कोई अपनों की तलाश में सुध बुध खो चुका था। ऐसी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद एनडीआरएफ ने बड़े पैमाने पर बचाव कार्य में तेजी दिखाई और देखते ही देखते आठ टीमों ने मोर्चा संभाला।
इस बचाव अभियान में 300 से ज्यादा कर्मी जुटे हुए थे। बीते शुक्रवार को हुए हादसे में 275 लोगों की मौत हो गई, जबकि 1100 से ज्यादा लोग घायल हुए।
भूले से भी भुलाया नहीं जा सकता भयावह मंजर
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक,
हालांकि, इस भयावह मंजर को देख एनडीआरएफ के कर्मी भी सहम गए। जिनमें से एक कर्मी की हालत बेहद गमगीन है, क्योंकि उसे पानी खून की तरह महसूस हो रहा है। ऐसे में इस रिपोर्ट में हम बात करेंगे एनडीआरएफ कैसे काम करती है? उसकी स्थापना कब हुई? विपरीत परिस्थितियों में देवदून बनकर आने वाले कर्मियों को कैसे तैयार किया जाता है? इत्यादिएनडीआरएफ ने 121 शवों को बरामद करने के साथ ही 44 पीड़ितों को भी बचाया था।
बीते दिनों एनडीआरएफ के महानिदेशक (डीजी) अतुल करवाल ने बताया कि ट्रेन दुर्घटनास्थल पर बचाव अभियान में तैनात बल का एक कर्मी जब भी पानी देखता है तो उसे वह खून की तरह लगता है, जबकि एक अन्य बचावकर्मी को अब भूख ही नहीं लग रही है।
ऐसे में राहत एवं बचाव अभियान से लौटे कर्मियों के लिए स्पेशल ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किया गया है। जिसकी बदौलत कर्मी एकदम फिट होकर आपदाओं से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे।बकौल अतुल करवाल एनडीआरएफ कर्मियों के लिए मनोवैज्ञानिक काउंसेलिंग और मानसिक स्थिरता पाठ्यक्रम शुरू किया गया है।
देवदूत बना NDRF
देश के साथ ही विदेशों में भी अपना लोहा मनवाने वाले एनडीआरएफ ने जापान, नेपाल, तुर्किये, सीरिया समेत कई देशों में अपनी सेवाएं दी हैं। जिसकी वजह से एनडीआरएफ की दुनियाभर में जमकर सराहना होती है।अपनी विशेष ट्रेनिंग के दम पर बाढ़, तूफान, भूकंप जैसी हर प्राकृतिक आपदाओं में पीड़ितों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहने वाली एनडीआरएफ ने 17 सालों में देश-विदेश में 2000 से ज्यादा अभियानों को सफलतापूर्वक संपन्न किया है।क्यों पड़ी NDRF की जरूरत?
90 का दशक हो या फिर उसके बाद का दशक देश ने कई आपदाओं को झेला है। जिनमें ओडिशा चक्रवात 1999, गुजरात भूकंप 2001, हिंद महासागर सुनामी 2004 जैसी गंभीर आपदा शामिल हैं। इन्हीं आपदाओं से सीख लेते हुए और त्वरित रिस्पांस के लिए एनडीआरएफ का गठन किया गया था।कब हुई थी NDRF की स्थापना?
- साल 2006 में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत 6 बटालियनों के साथ एनडीआरएफ की स्थापना की गई थी। देश के प्रधानमंत्री एनडीएमए के अध्यक्ष हैं।
- मौजूदा समय में एनडीआरएफ में 12 बटालियन हैं। हर एक बटालियन में 1149 कर्मी मौजूद हैं।
- एनडीआरएफ का प्रमुख महानिदेशक होता है और आईपीएस अधिकारी को यह पद मिलता है। महज 17 साल के अपने सफर में एनडीआरएफ ने मुश्किल से मुश्किल हालात में सफलतापूर्वक अभियानों को पूरा किया। इसी वजह से एनडीआरएफ को भरोसे का दूसरा नाम समझा जाता है।
- एनडीआरएफ ने देश को आपदाओं से निपटने में सक्षम बनाने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए सामुदायिक स्तर पर क्षमता निर्माण के कार्यक्रम आयोजित करने का काम भी बढ़-चढ़कर किया है।
NDRF की भूमिका के महत्वपूर्व तत्व?
- त्वरित प्रतिक्रिया
- अत्याधुनिक उपकरण
- कम्युनिटी आउटरीच
- सुरक्षा एजेंसियों के साथ समन्वय