'ऐतिहासिक कानूनों से तेज हुई विकास की गति', ओम बिरला बोले- विकास की चुनौतियां दूर करना जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सोमवार को 10वें राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) के पूर्ण सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि समावेशी विकास के मार्ग में आने वाली चुनौतियों और बाधाओं का समाधान करना जनप्रतिनिधियों व विधायी निकायों की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक संस्थाएं कार्यपालिका की जवाबदेही एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करके शासन को अधिक जिम्मेदार व कुशल बनाती हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। संसद भवन परिसर में आयोजित 10वें राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) के पूर्ण सत्र की अध्यक्षता करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विधानमंडलों की कार्यकुशलता और कार्यप्रणाली में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग पर बल दिया। साथ ही कहा कि लोकतांत्रिक संस्थाएं कार्यपालिका की जवाबदेही एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करके शासन को अधिक जिम्मेदार व कुशल बनाती हैं।
उन्होंने कहा कि समावेशी विकास के मार्ग में आने वाली चुनौतियों और बाधाओं का समाधान करना जनप्रतिनिधियों व विधायी निकायों की जिम्मेदारी है। 'सतत एवं समावेशी विकास में विधायी निकायों की भूमिका' विषय पर आयोजित अधिवेशन में लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि भारत का संविधान समावेशी शासन की भावना का सबसे सशक्त उदाहरण है।
'ऐतिहासिक कानूनों से तेज हुई विकास की गति'
उन्होंने कहा कि भारत की संसद द्वारा पारित ऐतिहासिक कानूनों से भारत में विकास की गति तेज हुई है और इससे भारत की प्रगति और अधिक समावेशी हुई है, जिसका लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंच रहा है। विधायी संस्थाओं के सहयोग और समर्थन के बिना आत्मनिर्भर और विकसित भारत का निर्माण संभव नहीं होगा।उन्होंने पीठासीन अधिकारियों और विधायकों से आग्रह किया कि वे इस बात पर चिंतन करें कि पिछले सात दशकों की यात्रा में देश के विधायी निकाय के रूप में वे लोगों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने में कहां तक सफल रहे हैं। इस आत्ममंथन के बिना समावेशी विकास का सपना साकार नहीं हो सकता। इस अवसर पर राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश और राज्य विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारी भी उपस्थित थे।